क्रोध क्या है? हमारा इसके प्रति क्या रुख होना चाहिए? हम क्रोध के साथ कैसे डील करें ?
सभी प्रकार के क्रोध, परिस्थितियों को कंट्रोल की कोशिश के कारण होते हैं और जब परिस्थितियाँ इच्छानुसार घटित नहीं होती तो हमारे अंदर निराशा और क्रोध उत्पन्न करती हैं | हम अपनी किसी इच्छा को पूरा करने के लिए इतने आतुर हो जाते हैं कि उस इच्छा की पूर्ति न होने पर, हमारी स्वयं की अन्दर की ऊर्जा, अग्नि बन जाती है, ये ही हमें जलाती हैं (क्रोध में लाती है) | गुरु सियाग कहते हैं – मृत्यु के बाद शरीर, अग्नि में जलाया जाता है, अग्नि उसे राख में बदल देती है | लेकिन क्रोध व्यक्ति को जीतेजी जलाता है | हम उस गुस्से में, अपना विवेक खो देते हैं तथा क्रोध में वो सब कर देते हैं या कह बैठते हैं जिसे वापस ठीक नहीं किया जा सकता, जिसके कारण कभी कभी हमेशा के लिए नुकसान हो जाता है | इस वजह से उत्पन्न होने वाले गुस्से के कारण जीवन में गलत निर्णयों की श्रृंखला आरम्भ हो जाती है |
थेरापिस्ट और डाक्टर इस गुस्से से डील करने के लिए कई प्रकार के तरीके बताते हैं – जैसे गुस्से को कंट्रोल करने का बाहरी प्रयास (जो कि अंदर से गुस्से भरा), गुस्से को दबाना या उसे किसी अन्य उपयोगी कार्य में डायवर्ट करने की कोशिश, या ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ द्वारा गुस्सा दबाने की कोशिश | कुछ विशेष स्थितियों में गुस्सा से तुरंत राहत के लिए नींद की दवाई देना या दिमाग नियंत्रित करने की दवाई देना आदि | पर ये सारे तरीके कुछ हद तक ही एवं बहुत ही कम समय के लिए सहायता करते हैं | लेकिन गुस्से की समस्या सामाप्त नहीं होती | दुसरे शब्दों में कहे तो ये तरीके कुछ हद तक उस गुस्से को बाहर फैलने के बजाय अन्दर की तरफ मोड़ देते हैं पर क्रोध स्थायी रूप से समाप्त नहीं होता |
गुरुदेव बताते हैं कि इस प्रकार क्रोध की कभी समाप्त न होने वाली श्रृंखला बन जाती है | तुम अपना गुस्सा किसी और पर निकल देते हो और वो व्यक्ति भी शांति से उस गुस्से को ग्रहण करने वाला नहीं | उस व्यक्ति का गुस्सा किसी और रूप में आप पर या किसी और पर निकलेगा | इस प्रकार क्रोध शांत होने का कोई अंत नहीं है | ये इसी प्रकार है कि किसी पर कीचड़ उछालोगे तो बदले में कीचड़ ही मिलने वाला है | पीढ़ी दर पीढ़ी यही चलता आ रहा है कि अब ये क्रोध, घृणा में बदल चुका है | और कोई इस घृणा – चक्र को तोड़ नहीं पा रहा है | तो इस गुस्से व घृणा के चक्र को तोड़ा कैसे जाये? इसके लिए गुरुदेव बताते हैं कि इस गुस्से को पूरी तरह से गायब करने या घोलने के लिए ध्यान के समुद्र की जरुरत है | गुस्से का कारण किसी दुसरे में तलाश करने करने के बजाय, साधक को इसे होश पूर्वक ओब्जर्ब करना चाहिए तब व्यक्ति पायेगा कि क्रोध एक प्रकार का आवेग है जिसकी जड़े किसी दुसरे व्यक्ति या घटना में नहीं हैं |
ध्यान में तुम किसी से गुस्सा नहीं होते | केवल तुम गुस्से में होते हो | तुम पाओगे कि क्रोध एक एसी उर्जा है जो कि बाहरी है एवं तुमने इसे अपने अंदर घुसने के लिए अनुमति दी है | जब ये तुम्हारे अंदर घुसती है तब एक विशेष रूप ले लेती है | ये क्रोध या तो किसी और की तरफ डायवर्ट हो जाता है या स्वयं को खिसियाहट भरी स्थिति में डाल देता है | ध्यान में उस क्रोध की कोई विशेषता नहीं रहती, जैसे ही गुस्सा महसूस हो, साधक को उसे ध्यान में विसर्जित कर देना चाहिए | इस प्रकार जो गुस्सा तुम्हारी तरफ आया था वो उस ब्रह्माण्ड में फैंक दिया जाता है | जैसे एक नदी जब समुद्र में मिल जाती है तो अपना स्वरूप खोकर समुद्र बन जाती है | इसी प्रकार जब गुस्सा ध्यान में रिलीज़ कर दिया जाता है तब वो उस ब्रह्माण्ड में विलीन हो जाता है | ये एक बार के प्रयास से नहीं होने वाला है | साधक को गुस्सा आते ही कोन्सीयसली ये विधि अपनानी चाहिए | धीरे – धीरे गुस्सा पूरी तरह से गायब हो जायेगा | यदि गुस्सा आने पर ध्यान कर पाना संभव ना हो तो मन्त्र का सघन जाप करना चाहिए | गुरुदेव कहते हैं कि तुम जैसे ही गुस्से की पहली तरंग महसूस करो, तुरंत मन्त्र जाप शुरू कर दो | मंत्र की तरंगे उस गुस्से की तरंग की व्यर्थता का अहसास अपने आप करवाएंगी | गुस्से की वो तरंग तुम्हारे अंदर घुसने की बजाय पास से होकर गुजर जाएगी | तुम गुस्से की उस तरंग से अप्रभावित रहोगे |