गुरु सियाग योग

प्रश्न – गुरुदेव कहते हैं कि ईश्वर प्रत्यक्षानुभूति एवं साक्षात्कार का विषय है, कथा प्रवचन का नहीं, इससे क्या तात्पर्य है? क्योंकि आजकल तो कई चैनल्स पर आध्यात्मिकता के नाम पर कथा-प्रवचन होते ही नजर आते हैं |

उत्तर – भगवान, गौड, अल्लाह आदि क्या हैं? कहाँ रहते हैं? कैसे मिलेंगे? आदि अनेक प्रश्न दिमाग में आते रहते हैं | इनका उत्तर पाने के लिए मंदिर, मस्जिद, चर्च जाकर या घर पर पूजा–पाठ इत्यादि करते रहते हैं | बचपन से देखते आये हैं कि दादा, पिता, माता आदि नियमित पूजा–पाठ, माला फेरना, व्रत-उपवास, कथाएँ सुनना, रामायण पाठ, हनुमान चालीसा, नमाज़, प्रेयर, माता की पूजा आदि करते आये हैं | इनके कहने पर एवं देखा-देखी हमने भी यह कार्य चालू कर दिए | परन्तु इतना करने के बाद भी भगवान के बारे में न तो पता चला और ना ही यह समझ आया कि क्या करें?

प्राचीनकाल में अधिकांश मनुष्य विभिन्न दैवीय शक्तियों के स्वामी थे, जब कि शारीरिक रूप से वे हमारे समान ही थे | भूत-भविष्य की घटनाएँ देखना, सुनना, इच्छा मात्र से ध्यान, समाधि में चले जाना, सोचा हुआ घटित हो जाना आदि; ये कोई जादुई शक्तियाँ नहीं थी, ये उस काल के मनुष्यों की आन्तरिक दैवीय शक्ति, कुन्डलिनी शक्ति जागृत अवस्था में होने के कारण था | उस काल के लिए ये साधारण क्रियाएँ मात्र थी | इसके कई उदाहरण रामायण, महाभारत, कुरान, बाइबल, गीता आदि में मौजूद हैं | कुन्डलिनी हम सब में भी है, पर कलियुग के गुणधर्म के कारण सोई हुई है| इस कारण हम सब प्रकार की शक्तियों से हीन हो गए हैं | तामसिक शक्तियाँ सब ओर से हावी हो गयीं हैं | विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ भी, इन आन्तरिक शक्तियों की क्षीणता का परिणाम हैं |

आज विभिन्न शारीरिक कसरतों को योग का नाम दिया जाता है, जब कि इस योग का, वैदिक दर्शन में वर्णित योग से कोई सम्बन्ध नहीं है | सिद्धयोग दर्शन में शरीर, समर्थ गुरु के ध्यान के दौरान, आवश्यकतानुसार अपने आप आसन एवं प्राणायाम करता है | आज के धर्माचार्य अतीत का गुणगान करते हुए त्रेता एवं द्वापर युग के कथा-प्रवचन सुनाते हैं | कुन्डलिनी की केवल बातें करते हैं | इन कथा-प्रवचनों से, न तो सुनने वाले को और ना ही सुनाने वाले को ईश्वरीय शक्ति का अहसास हुआ है, इसे वे भली-भांति जानते हैं | कथा-प्रवचन करने वाले आपको कई प्रकार से डराते हैं | ईश्वर के नाम से तो भय दूर भागता है, और मनुष्य हर प्रकार के बंधन से मुक्त हो जाता है | पर इस समय पाप-पुण्य, स्वर्ग-नर्क रूपी काल्पनिक बन्धनों से बांधकर, भय से भगवान की अनुभूति करवाते हुए, मोक्ष को समझाने का असफल प्रयास किया जा रहा है |

समर्थ गुरु ईश्वर का साक्षात्कार एवं प्रत्यक्षानुभूति करवा देते हैं ना कि कथा, किस्से, कहानियां सुनाकर मनोरंजन करवाते हैं | जिस प्रकार पानी के बारे में केवल बातें करने से प्यास नहीं बुझती, उसी प्रकार कुण्डलिनी की बातें करना, पुरातन काल में हुई घटनाओं को तोड़-मरोड़ कर जनता को हंसाना, मनघड़न्त किस्से – कहानियाँ सुनाना एवं मनोरंजन करवाने से ईश्वर की प्रत्यक्षानुभूति एवं साक्षात्कार नहीं होता या सुनने वाले को ईश्वरीय शक्ति का अहसास नहीं होता |
गुरुदेव किसी भी प्रोग्राम में, या उनके केवल फोटो पर ध्यान करने से मनुष्य की कुन्डलिनी जागृत करवाकर ईश्वर की प्रत्यक्षानुभूति करवा देते हैं | गुरुदेव कोई किस्से कहानियां नहीं सुनाते, वे प्रत्यक्ष प्रमाण देते हैं |

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