गुरु सियाग योग

खेचरी मुद्रा

गुरु सियाग योग में, साधक एक विशेष प्रकार की मुद्रा (आध्यात्मिक मुद्रा) की अनुभूति करते हैं, उसे खेचरी मुद्रा कहा जाता है. इस मुद्रा में, जीभ मुँह के भीतर पीछे की और खिंचती है और तालु से चिपक जाती है और तालु में स्थित एक बिंदु को स्पर्श करती है. जीभ जब उस बिंदु को स्पर्श करती है तो उस बिंदु से फूलों के शहद जैसा एक तरल पदार्थ रिसता है.

नाथ सम्प्रदाय के प्राचीन योगी गोरख नाथ जी ने इसे अमृत की संज्ञा दी है. एक दोहे में उन्होंने कहा है

गगन मंडल में उँधा कुआँ, ताहं अमृत का वासा
सुगरा होवे भर भर पीवे, निगुरा जाये प्यासा

जिसे इस अमृत का पान करने का सौभाग्य प्राप्त होता है, उसे ये ज्ञान हो जाता है कि वो अमर है. और यदि ये अमृत है तो फिर दूसरा जन्म क्यों होगा!

संत कबीर ने मानव शरीर को पानी से भरे हुए एक मिट्टी के घड़े की संज्ञा दी है. उन्होंने कहा है कि
जल विच कुम्भ, कुम्भ विच जल है, बाहर भीतर पानी
विघटा कुम्भ, जल जल ही समाना, ये गति विरले ने जानी

भीतर भी पानी है, और बाहर भी पानी है, जब ये कुंभ या घड़े रुपी शरीर समाप्त होता है तो बाहर और भीतर का पानी एक जो जाता है. इस ‘एकात्म’ की पहचान गुरु कृपा से ही संभव है. ये शरीर जिसे हम इतना महत्त्व देते हैं, एक न एक दिन तो नष्ट होना ही है, यदि इसे दुबारा नहीं बनने देना चाहते तो फिर नाम ही जपो. जन्म मरण के बंधन से मुक्त होने के लिए गुरुदेव ने सतत नाम जप करने की सलाह दी है. गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस में कहा है “कलियुग केवल नाम आधारा, सुमरि सुमरि नर उतरहिं पारा”.

नाम जप के विषय में नानक देव जी ने भी कहा है कि ” भाँग धतूरा नानका, उतर जाय परभात, नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन रात”

कबीर दास जी ने भी कहा है –

नाम अमल उतरे न भाई,
और अमल छिन छिन चढ़ि उतरे,
नाम अमल दिन बढे सवाया”

गुरुदेव सियाग ने इसीलिए कहा है कि संजीवनी मन्त्र का सतत जाप करते रहिये, तो आपको बिना नशा किये ही नशा चढ़ा रहेगा! ये राम के नाम का नशा है, इसके आगे और सभी नशे फीके पड़ जाते हैं.

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