प्रश्न – मैं कई वर्षों से गुरु सियाग का नियमित ध्यान व नाम-जप कर रहा हूँ, फिर भी वांछित परिणाम नजर नहीं आ रहे | परेशानियां कम नहीं हो रही? समझ नहीं आ रहा कि गलती कहाँ हो रही है?
जैसे- दूध में शक्कर डालते जायें फिर भी दूध मीठा न हो, तो ये कैसे सम्भव है? या इसका मतलब है शक्कर (जिसे हम शक्कर समझ रहे हैं), शक्कर ही नहीं है| इसी प्रकार क्या हम ये सोचते हैं या कहना चाहते हैं कि ये ध्यान व नामजप सही नहीं है या हम मन से करते हैं पर रिजल्ट नहीं आता| सच्चाई तो ये है कि आपके भौतिक जीवन में होने वाले फायदे इतने सहज रूप से होते हैं कि आपको अंदाजा ही नहीं होता कि गुरुदेव की शक्ति कितनी सहज रूप से कार्य कर रही है| पौधे या बच्चे कब धीरे-धीरे बड़े होते जाते हैं पता नहीं लगता पर, हर पल बड़े होते जाते हैं| इसी प्रकार हर ध्यान व नाम जप से आप में आने वाला परिवर्तन आपको महसूस नहीं होता |
एक कारण और भी हो सकता है जिसे आपको स्वयं ढूँढना है, इसे आप एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं – दो व्यक्तियों ने एक शाम नाव से किसी दूसरे स्थान पर जाने का प्लान बनाया| जाने के सामान की तैयारी के साथ उन्होंने खूंटे से बंधी नाव की रस्सियाँ खोलकर चप्पू चलाना आरम्भ किया और रात-भर चलते रहे | सुबह होने पर रोशनी में देखा कि नाव तो वहीं की वहीं है | कारण ढूंढा तो पता लगा कि नाव के पेंदे में बंधी एक जंजीर खोलना भूल गए थे और रात-भर मेहनत करने के बाद भी परिणाम नहीं मिला | तो आप कहते हैं कि ये छोड़ दिया वो छोड़ दिया पर फ़ायदा नहीं हो रहा, तो आपको भी वो ज़ंजीर खोजनी है जो आपकी प्रगति रोक रही है।
तो इस प्रकार जब साधक कहते हैं कि हम गुरुदेव के ध्यान व नाम-जप के अलावा कुछ नहीं करते, फिर भी कोई फायदा नहीं हो रहा, तो हमें स्वयं मनन करके अपने अंदर बंधी वह जंजीर ढूंढनी है कि हम अंदर से किसी पुरानी परिपाटी या आडम्बर या कर्मकांड से चिपके हुए हों एवं आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं | बाहर से आडम्बरों या कर्मकांडों से मुक्ति पाने का दिखावा एवं अंदर से आडम्बरों या कर्मकांडों से मुक्ति पा जाने में काफी अंतर है |
इसके आलावा वह जंजीर कई रूपों में बहुत सूक्ष्म रूप से आपको बांध कर रखे हो सकती है | जैसे आप योग की दूसरी विधि भी अपना रहे हों, गुरु सियाग के साथ-साथ अन्य गुरु भी बना रखे हों, आप किसी तांत्रिक, फकीर, या पंडित के पास उपचार के लिए जाते हों, दूसरे गुरु का मन्त्र या कोई भी अन्य पूजा भी कर रहे हों, कोई धागा, ताबीज, लच्छा, स्टोन पहन रखा हो, कोई व्रत, उपवास, पाठ करते हों, गुरुदेव के प्रसाद के अलावा, हर प्रकार, हर जगह का प्रसाद ग्रहण कर लेते हों | यदि आप उपरोक्त में से कुछ भी कर रहे हैं तो कहीं न कहीं गुरुदेव के प्रति समर्पण में कमी है | आप स्वयं जाँच करें कि आप क्या कर रहे हैं | वांछित परिणाम अवश्य मिलेंगे |