प्रश्न – गुरु सियाग सिद्धयोग से नाम–जप करने से शरीर में ऐसे क्या बदलाव आ जाते हैं कि नशे आदि अपने आप छूट जाते हैं?
उत्तर – नियमित ध्यान व नामजप से मनुष्य कि वृत्तियों में परिवर्तन आ जाता है | इंसान को निरंतर नाम – जप से नाम का ऐसा नशा चढ़ा रहता है कि उन वस्तुओं का नशा लेने की जरूरत ही समाप्त हो जाती है | जिससे अखाद्य वस्तुएँ व नशे अपने आप छूट जाते हैं | नशा आप नहीं, आपके अंदर की तामसिक वृत्ति मांगती है | इस ध्यान से तामसिक वृत्ति, सात्विक वृत्ति में परिवर्तित हो जाती है एवं अवांछित या शरीर के लिए अनुपयोगी / हानिकारक वस्तु अपने आप छोड़ जाती है | इस संबंध में स्वामी विवेकानन्द जी ने अमेरिका में कहा था “कि मनुष्य उन वस्तुओं को नहीं छोडता वे वस्तुऐं उसे छोडकर चली जाती हैं।”
सभी प्रकार के नशों जैसे शराब, अफीम, स्मैक, हेरोइन, भाँग, बीडी, सिगरेट, गुटखा, जर्दा आदि से बिना परेशानी के छुटकारा मिल जाता है| किसी भी खाद्य-पदार्थ पर से मजबूरी जैसी निर्भरता अपने आप हट जायेगी और कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होगा | जैसे कोई भी मोटापा नहीं चाहता, पर खाने की लत (वास्तव में शरीर की डिमांड) नहीं छूटती, तो ये ध्यान व नाम-जप अपने आप वज़न घटाने में मदद करने लगेगा | खाना-पीना अपने आप कंट्रोल होने लगेगा | ऐसी कोई भी लत / व्यसन जिसे आप छोड़ना चाहते हैं इस ध्यान व जप से, स्वतः छूट जायेगी | आज सम्पूर्ण विश्व में भयंकर तनाव व्याप्त है | अतः आज विश्व में मनोरोगियों की संख्या सर्वाधिक है, खासतौर से पश्चिमी जगत में। भौतिक विज्ञान के पास मानसिक तनाव शान्त करने की कोई कारगर विधि नहीं है। भौतिक विज्ञानी मात्र नशे के सहारे, मानव के दिमाग को शान्त करने का असफल प्रयास कर रहे हैं। दवाई का नशा उतरते ही तनाव पहले जैसा ही रहता है, तथा उससे सम्बन्धित रोग यथावत रहते हैं। वैदिक मनोविज्ञान अर्थात अध्यात्म विज्ञान, मानसिक तनाव को शान्त करने की क्रियात्मक विधि बताता है। भौतिक विज्ञान की तरह भारतीय योगदर्शन भी “नशे” को पूर्ण उपचार मानता है, परन्तु वह “नशा” ईश्वर के नाम का होना चाहिये, किसी भौतिक पदार्थ का नहीं। हमारे सन्तों ने इसे “हरि नाम की खुमारी” कहा है। इस सम्बन्ध में संत सदगुरुदेव श्री नानक देव जी महाराज ने कहा हैः
भांग धतूरा नानका उतर जाय परभात। “नाम-खुमारी” नानका चढी रहे दिन रात।
यही बात संत कबीर दास जी ने कही हैः
“नाम-अमल” उतरै न भाई।और अमल छिन-छिन चढ उतरें।“नाम-अमल” दिन बढे सवायो।।
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने “योगी” की स्थिति का वर्णन करते हुए, पांचवे अध्याय के २१ वें श्लोक में नाम खुमारी को “अक्षय-आनन्द” कहा है, तथा छठे अध्याय के १५,२१,२७ व २८वें श्लोक में इसे परमानन्द पराकाष्ठावाली शान्ति, इन्द्रीयातीत आनन्द, अति-उत्तम आनन्द तथा परमात्मा की प्राप्ति रूप अनन्त-आनन्द कहा है। इस युग का मानव भौतिक सुख को ही आनन्द मानता है, यह भारी भूल है
प्रश्न – गुरुदेव तीन प्रकार की वृत्तियों की बात करते हैं; ये वृत्तियाँ क्या होती हैं? इन वृत्तियों का हमारे ऊपर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर – वैदिक धर्मशास्त्र, ब्रह्म के द्वैतवाद को स्वीकार करते हैं जिसमें एक ओर वह आकार रहित, असीमित, शास्वत तथा अपरिवर्तनशील, अतिमानस चेतना है तो दूसरी ओर उसका चेतनायुक्त दृश्यमान तथा नित्य परिवर्तनशील भौतिक जगत है। यह चेतना भौतिक जगत के सभी सजीव तथा निर्जीव पदार्थों पर, जो तीन गुणों के मेल से बने हैं, अपना प्रभाव डालती है। सात्विक (प्रकाशित, पवित्र, बुद्धिमान व धनात्मक) रजस (आवेशयुक्त तथा ऊर्जावान) और तमस (ऋणात्मक, अंधकारमय, सुस्त तथा आलसी)।
- सत्व संतुलन की शक्ति है। सत्व के गुण अच्छाई, अनुरूपता, प्रसन्नता तथा हल्कापन हैं।
- राजस गति की शक्ति है। राजस के गुण संघर्ष तथा प्रयास, जोश या क्रोध की प्रबल भावना व कार्य हैं।
- तमस निष्क्रियता तथा अविवेक की शक्ति है। तमस के गुण अस्पष्टता, अयोग्यता तथा आलस्य हैं।
मनुष्यों सहित सभी जीवधारियों में यह गुण (वृत्ति) पाये जाते हैं। फिर भी ऐसे विशेष स्वभाव का एक भी नहीं है जिसमें इन तीन लौकिक शक्तिओं में से मात्र एक ही हो। सभी में यह तीनों ही गुण (वृत्ति) होते हैं; परिस्तिथियों अनुसार तीनों गुण (वृत्ति) कम ज्यादा होते रहते हैं यह निरन्तर एक दूसरे पर प्रभावी होने के लिये प्रयत्नशील रहते हैं। यही वजह है कि कोई व्यक्ति सदैव अच्छा या बुरा, बुद्धिमान या मूर्ख, क्रियाशील या आलसी नहीं होता है। कभी-कभी बहुत अच्छा व्यक्ति अचानक ही बुरा (अहं, लालच, मूर्खता या गुस्से का) व्यवहार कर जाता है, तो कभी बुरा, मुर्ख या गुस्से वाला व्यक्ति, बहुत अच्छा, समझदारी का, या प्यार भरा व्यवहार करता है | वृत्तियों के बदलने के आधार पर व्यक्ति कि आदतें व व्यवहार भी बदलते रहते हैं |
जब किसी व्यक्ति में सतोगुणी वृत्ति प्रधान होती है तो अधिक चेतना की ओर उसे आगे बढाती है जिससे वह अतिमानसिक चेतना की ओर, जहाँ उसका उद्गम था, वापस लौट सके और अपने आपको कर्मबन्धनों से मुक्त कर सके। राजसिक या तामसिक वृत्ति प्रधान व्यक्ति सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु के समाप्त न होने वाले चक्र में फँसता है। नियमित ध्यान व नाम-जप द्वारा व्यक्ति निरंतर सात्विकता कि स्थिति में बना रह सकता है | सिद्धयोग की साधना, सात्विक गुणों का उत्थान करके अन्ततः मोक्ष तक पहुँचाती है जो अन्तिम रूप से आध्यात्मिक मुक्ति है।
प्रश्न – वृत्ति परिवर्तन से बुरी आदतें कैसे छूट जाती हैं?
उत्तर – इसी प्रकार निरन्तर नाम जप व ध्यान से वृत्ति परिवर्तन भी होता है। मनुष्य में मूलतः तीन वृत्तियाँ होती हैं। सतोगुणी, रजोगुणी एवं तमोगुणी। मनुष्य में जो वृत्ति प्रधान होती है उसी के अनुरूप उस का खानपान एवं व्यवहार होता है। निरन्तर नाम जप के कारण सबसे पहले तमोगुणी (तामसिक) वृत्तियाँ दबकर कमजोर पड जाती हैं बाकी दोनों वृत्तियाँ प्राकृतिक रूप से स्वतंत्र होने के कारण क्रमिक रूप से विकसित होती जाती हैं। कुछ दिनों में प्रकृति उन्हें इतना शक्तिशाली बना देती है कि फिर से तमोगुणी वृत्तियाँ पुनः स्थापित नहीं हो पाती हैं। अन्ततः मनुष्य की सतोगुणी प्रधानवृत्ति हो जाती है। ज्यों-ज्यों मनुष्य की वृत्ति बदलती जाती है दबने वाली वृत्ति के सभी गुणधर्म स्वतः ही समाप्त होते जाते हैं। वृत्ति बदलने से उस वृत्ति के खानपान से मनुष्य को आन्तरिक घृणा हो जाती है। इसलिये बिना किसी कष्ट के सभी प्रकार की बुरी आदतें अपने आप छूट जाती हैं।