“अजपा जाप ” क्या है?
यह संस्कृत का एक शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “बिना जपे ही जपा जाए’ । जब कोई साधक गुरुदेव सियाग द्वारा बताये गए संजीवनी मन्त्र का मानसिक जाप लगातार कुछ सप्ताह तक करता है, तो ऐसा करने पर वह मन्त्र साधक के भीतर बिना प्रयास के ही अनवरत अपने आप जपा जाने लगता है। साधक को केवल अपने भीतर बिना प्रयास के जापे जाने वाले मन्त्र पर केवल ध्यान भर देना होता है। अध्यात्म की भाषा में, मंत्र जाप की इस अवस्था को ही ‘अजपा जाप’ कहते हैं । यह क्रिया साधक की इच्छा और प्रयास के बिना, स्वयं कुण्डलिनी शक्ति संचालित करती है। अजपा जाप, कुण्डलिनी शक्ति द्वारा स्वतः संचालित अनेकों क्रियाओं में से एक है। अजपा जाप उन सभी साधकों को अनुभव होता है जो गुरुदेव सियाग द्वारा बताये गए संजीवनी मन्त्र का समर्पित भाव से लगातार कुछ सप्ताह तक मानसिक जाप करते हैं। मन्त्र का मानसिक जाप आरम्भ करने से लेकर अजपा की अवस्था प्राप्त होने की, वैसे तो कोई निश्चित अवधि नहीं है, क्योंकि प्रत्येक साधक के लिए ये अलग अलग हो सकती है। लेकिन एक बात तय है कि अजपा की अवस्था उन सभी साधकों को अवश्य अनुभव होती है जो हर यथासंभव दिन भर में अधिक से अधिक समय तक संजीवनी मंत्र का मानसिक जाप करते रहते हैं। यदि संजीवनी मन्त्र के मानसिक जाप नियमित रूप से नहीं होता है और बीच में कुछ दिन के लिए रोक दिया जाता है, तो ये असंगत या inconsistent अभ्यास ही माना जायेगा। ऐसे में अजपा जाप का अनुभव होने में, साधक को और भी अधिक समय लग सकता है।
‘जप’ का अर्थ है मन्त्र का जाप। किसी भी साधक के लिए, जो चेतना की ऊंचाई को महसूस करना चाहता है, ताकि मोक्ष की अवस्था तक पहुंचा जा सके, मन्त्र जाप सबसे पहला और सबसे महत्त्वपूर्ण औजार है। साधना के आरंभिक समय में एक साधक को संजीवनी मन्त्र का सतत मानसिक जाप करते रहना होता है। ऐसा अभ्यास इसलिए आवश्यक होता है ताकि साधक के मन में संजीवनी मन्त्र के प्रति सजगता और मन्त्र में छिपी दैवी शक्ति का भान हो सके। संजीवनी मन्त्र के सतत जाप का स्वाभाविक परिणाम ये होता है कि मन्त्र की मानसिक पुनरावृत्ति बिना किसी सजग प्रयास के साधक को होने लगती है। ऐसे में, साधक इस बात से पूर्णतः सजग मन से अवगत हो जाता है कि उसके मन में संजीवनी मन्त्र अनवरत रूप से जपा जा रहा है और विद्यमान है। यह अवस्था साधक को कुछ ही सप्ताह में उपलब्ध हो जाती है, बशर्ते वो दृढ निश्चय लिए हो और समर्पित भाव से संजीवनी मन्त्र का मानसिक जाप कर रहा हो। इसे ही ‘अजपा जाप’ कहा जाता है। ‘जपा’ शब्द से पहले ‘अ’ लगने से बने ‘अजपा’ शब्द का मोटा मोटा अर्थ ये है कि जाप साधक के चेतन या सजग प्रयास के बिना ही, अपने आप जारी है साधक के भीतर।
‘अजपा जाप’ को प्रायः ‘ऑटोमैटिक’ जप की भी संज्ञा दी जाती है। लेकिन वास्तव में होता यह है कि साधक इस बात से पूर्णतः अवगत हो जाता है कि ये दिव्य शब्द (संजीवनी मन्त्र) शाश्वत रूप से यानि हमेशा से विद्यमान है और सभी जीवों की आंतरिक चेतना में स्वतः स्फूर्त (हमेशा ही) ही गूँजता रहता है। अजपा जाप एक तरह की ऐसी दहलीज़ है जिसे पार करने के बाद साधक आध्यात्मिक चेतना के अगले मार्ग की ओर प्रस्थान करता है।
इस अवस्था को पाने के लिए साधक को हर समय संजीवनी मन्त्र का मानसिक जाप करते रहना चाहिए, चलते फिरते, खाते पीते, नहाते धोते, गाड़ी चलाते हुए, खाना बनाते हुए आदि आदि। चूंकि ये मानसिक रूप से किया जाने वाला जाप है, इससे न तो साधक के क्रिया कलापों में कोई व्यवधान उत्पन्न होता है, और न ही ये साधक के आस पास के लोगों को कोई बाधा पहुँचाता है। जब मंत्र का मानसिक जाप समर्पित भाव से (न कि यांत्रिक तरीके से) किया जाता है तो साधक अपनी साधना के आरंभिक समय में ही अपने व्यक्तित्व में सार्थक या महत्त्वपूर्ण परिवर्तन महसूस करने लगता है।