प्रश्न – गुरु सियाग योग अध्यात्म को विकासवाद एवं वैज्ञानिक प्रगति से किस प्रकार जोड़ता है?
उत्तर – विकासवाद के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी पर मानव का जन्म और विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए उसके जीवन के विकास चक्र को पूर्ण होने में लाखों वर्ष लगे हैं। पृथ्वी पर लाखों तरह के जीवधारियों में एकमात्र मनुष्य ही वह प्राणी है जो बुद्धिमत्तापूर्वक सोच सकता है तथा विचारों को क्रियात्मक रूप दे सकता है। मनुष्य की इसी बुद्धिमत्ता की शक्ति की वजह से वैज्ञानिकों ने मनुष्य को विकासवाद की सीढ़ी के उच्चतम पर रखा है।
पिछले 100 वर्षों में मनुष्य ने विज्ञान तथा टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में बहुत प्रगति की है। वास्तव में तो यह यह मनुष्य के भव्य विकास के शिखर पर पहुँचने का भ्रम पैदा करती है। भौतिक विकास को उच्चतम विकास समझने कि भूल हो रही है | मनुष्य के मस्तिष्क का विकास, पदार्थ की खोज तक ही सीमित रहा है। यह भौतिक विज्ञान के चमत्कारी विकास के रूप में प्रदर्शित हुआ है जिसने मनुष्य को अन्तरिक्ष में पहुँचाया है तथा विभिन्न खोजों द्वारा मानव शरीर के रहस्यों को उजागर किया है जैसे जीनोम निर्धारण, कोशिकीय जन्तु विज्ञान तथा स्टैम सेल्स (मातृ कोशिकाऐं) आदि।
फिर भी आत्मा की सम्भाव्यताओं के बारे में मानव के कदम मनोभौतिक खोज के क्षेत्र से आगे नहीं बढे हैं। वास्तव में मानव मस्तिष्क की परतों की गहराई से जाँच हमेशा वैज्ञानिकों द्वारा मस्तिष्क की बारीकी से जाँच पर जाकर समाप्त हो जाती है । ऐसा इस कारण है कि आधुनिक विज्ञान यह विश्वास ही नहीं कर सकती है कि मानव शरीर तथा मस्तिष्क, चेतना के भिन्न आयाम से, जो हमारी भौतिक दुनियाँ की सीमाओं से परे हैं, जुड़ सकता है। इसी का परिणाम है कि एक ओर आत्मा तथा दूसरी ओर पदार्थ की सम्भाव्य सम्भावनाओं को धार्मिक आध्यात्मिकता के व्याख्याकारों के लिये छोड़ दिया गया है। इसने वैज्ञानिकों तथा धर्म गुरूओं को स्पष्ट रूप से विभाजित कर दिया है जिसके कारण दोनों एक दूसरे की ओर शत्रुता की सीमा तक शक की निगाह से देखने लगे हैं।
विकसित पश्चिम का, लाभ के लिये भौतिक जगत के उपयोग पर अत्यधिक जोर रहा है जिसके कारण आध्यात्मिक जगत की सम्भाव्यता जो मानव शरीर तथा मस्तिष्क से गहराई के साथ जुड़ी है, प्रभावित हुई है, और लगभग पूरी तरह से उपेक्षित रही है। यही कारण है कि विज्ञान तथा टैक्नोलॉजी से भौतिक सुख सुविधाओं में अत्यधिक प्रगति हुई है लेकिन मानसिक शान्ति नहीं मिल सकी है। नई वैज्ञानिक खोजों से अगर कोई ठोस भौतिक प्रगति हुई है तो उसने मानव समाज के बीच स्पर्धा, विवाद, फूट व परस्पर विनाशकारी झगड़े आदि भी पैदा किये हैं।
भौतिक विकासवाद के सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य ने प्रथम चार कोषों को चेतन करने में सफलता पा ली है | अन्तिम तीन कोषों को वह किस प्रकार चेतन करेगा? श्री अरविन्द ने अपनी फ्रैन्च सहयोगी शिष्या के साथ, जो माँ के नाम से जानी जाती थीं, अपनी ध्यान की अवस्थाओं के दौरान यह महसूस किया कि अन्तिम विकास केवल तभी हो सकता है जब लौकिक चेतना (जिसे उन्होंने कृष्ण की अधिमानसिक शक्ति कहा है) पृथ्वी पर अवतरित हो।
गुरुदेव बताते हैं कि, प्रथम चार कोष जो मानवता में चेतन हो चुके हैं वहाँ विद्या पर अविद्या का आधिपत्य है। शेष तीन आध्यात्मिक कोश जो मानवता में चेतन होना बाकी हैं यहाँ अविद्या पर विद्या का प्रभुत्व है। उपरोक्त सातों कोषों के पूर्ण विकास को ही ध्यान में रखकर महर्षि श्री अरविन्द ने भविष्यवाणी की है कि “आगामी मानव जाति दिव्य शरीर (देह) धारण करेगी”। हमारे ऋषियों ने मनुष्य शरीर को विराट स्वरूप प्रमाणित करके उसके अन्दर सम्पूर्ण सृष्टि को देखा, इसके जन्मदाता परमेश्वर का स्थान सहस्त्रार में और उसकी पराशक्ति (कुण्डलिनी) का स्थान मूलाधार के पास है। साधक की कुण्डलिनी चेतन होकर सहस्त्रार में लय हो जाती है, इसी को “मोक्ष” कहा गया है।
प्रश्न – महर्षि अरविन्द ने काफी समय पूर्व ही कुछ भविष्यवाणियों की थी, वो किस प्रकार गुरुदेव पर सही प्रतीत होती हैं?
उत्तर – श्री अरविन्द तथा माँ, दोनों ने मानवता को आने वाले विनाश से बचाने हेतु अपने आपको अत्यन्त कठिन योग की साधना में अनेक वर्षों तक समर्पित कर दिया, जिससे उस शक्ति के अवतरित होने के लिये उपयुक्त आध्यात्मिक वातावरण तैयार हो सके। उनका समर्पण फलीभूत हुआ। 24 नवम्बर 1926 को श्री अरविन्द के कुछ शिष्यों के सामने माँ ने घोषणा की कि कृष्ण की अधिमानसिक शक्ति मानव रूप में पृथ्वी पर अवतरित हो चुकी है। यह वही दिन था जब गुरू सियाग ने जन्म लिया। श्री अरविन्द तथा माँ दोनों सहमत थे कि जो व्यक्ति भौतिक जगत में कृष्ण चेतना को प्रदर्शित करने के लिये चुना गया है स्वयं अन्तिम तीन अवस्थाओं आनन्द, चित् और सत् से गुजरेगा। जिन आध्यात्मिक विकास की अवस्थाओं से वह गुजर चुका होगा उसे दूसरों में लाना उसका मिशन होगा।
श्री अरविन्द और माँ यह भी मानते थे कि पृथ्वी पर यदि एक भी व्यक्ति में पूर्ण आध्यात्मिक क्रान्ति हो गई तो यह दिव्य रूपान्तरण प्रायोगिक रूप से अन्य लाखों लोगों में भी सम्भव हो सकेगा, यदि वह उसी मार्ग को अपनाते हैं जिसे उस एक चुने हुए व्यक्ति ने अपनाया है। दोनों ही इस बात को भी जानते थे कि “चुने हुए के” उस विकास को उन सभी परीक्षणों एवं संकटों से गुजरना होगा जो प्रत्येक मानव जीवन का एक हिस्सा हैं। वे जानते थे कि अन्ततः चुने हुए को पृथ्वी पर उसके वास्तविक मिशन के बारे में पूरी तरह से सचेत कर दिया जायेगा।
यद्यपि गुरू सियाग अब अपने वैश्विक मिशन के लिये कार्य कर रहे हैं, वह हर कदम पर अनभिज्ञता, उदासीनता, यहाँ तक कि शत्रुता का सामना करते हैं जैसे मोजैज तथा जीसस जैसे पैगम्बरों ने किया था। लेकिन गुरू सियाग अविचलित हैं। कृष्ण की दिव्य चेतना, जो उनके अन्दर कार्य कर रही है, असफल नहीं हो सकती। पश्चिम, विश्व की भौतिक प्रगति का अगुआ है। गुरू सियाग अपने सिद्धयोग को पश्चिम में भी ले जाना चाहते हैं जिससे लौकिक चेतना पर आधारित आध्यात्मिक आन्दोलन आरम्भ हो। वह विश्वास करते हैं कि केवल एक ऐसा आन्दोलन ही पूर्व की आध्यात्मिकता और पश्चिम की भौतिकता को अन्ततः एक करेगा जो मानवता में सच्ची धार्मिक क्रान्ति का परिचायक होगा।
हिन्दू धर्म के अनुसार 10 वाँ अवतार या दैवीय अवतार चार युगों:- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के चक्र को समाप्त करने वाला अन्तिम होगा। यह 10 वाँ अवतार ही है जो संपूर्ण मानवता को सही अर्थ में विकास के शिखर तक पहुँचाने में मदद करेगा। वैदिक दर्शन के अनुसार मानव शरीर सात मूल कोषों से बना है, अन्न, प्राण मन, विज्ञान, आनन्द, चित् व सत्। मानव विकास प्रथम चार कोषों से गुजरता हुआ मानव की वर्तमान प्रगति तक पहुँच चुका है, फिर भी मानव अन्तिम तीन कोषों आनन्द, चित् और सत् (हिन्दू शब्दावली में सत्, चित् और आनन्द से जाना जाता है) के द्वारा, बिना ईश्वरीय शक्ति के सहारे के प्रगति नहीं कर सकता। ऐसा इसिलिये है कि यह तीनों कोष भौतिक जगत के राज्य से बाहर आत्मा की दुनियाँ में हैं। हिन्दू धर्म- ग्रन्थों की भविष्यवाणियाँ कहती हैं कि केवल 10 वाँ अवतार ही मानवता की चेतना को अन्तिम तीन कोषों को पार कर स्वयं ही ईश्वर बन जाने में सहायता करेगा।
श्री अरविन्द अपने इस दृढ़ विश्वास के प्रति आश्वस्त थे कि भविष्यवक्ता तथा साधु एवं अन्य धार्मिक योगी विश्व में स्थायी शान्ति तक स्थिरता लाने में अब तक असफल सिद्ध हुए हैं। फिर भी वह समान रूप से सहमत थे कि हिन्दू धर्म ग्रन्थों में 10 वें अवतार ने वादा किया था कि वह अकेला पृथ्वी पर स्थायी शान्ति स्थापित करने तथा इस विश्व को पूर्ण विनाश से बचाने में सक्षम साबित होगा। इसीलिये उन्होंने लगभग 40 वर्ष तक इस भविष्यवाणी को सही साबित करने की परमेश्वर से प्रार्थना करते हुए अपने अद्वितीय प्रकार के आन्तरिक योग का अभ्यास किया । उनकी कठिन आराधना एक दिव्य आशीर्वाद लाई। उन्होंनें कहा “मैने ईश्वर से मानवता के लिये इतना बड़ा वरदान प्राप्त किया है जो पृथ्वी कभी माँग सकती थी”। श्री अरविन्द के लिये यह वरदान स्वीकारते हुए भगवान श्री कृष्ण ने कहा “शीघ्र ही चेतना की ऊपरी दुनियाँ से एक रहस्यमयी शक्ति अवतरित होगी जो मृत्यु और झूठ के बुरे साम्राज्य को हरायेगी और अपने परमेश्वर के राज्य को स्थापित करेगी”।
श्री अरविन्द भाग्यशाली थे जिन्होंने इस दैवीय शक्ति को पृथ्वी पर एक विजन (दृश्य) के द्वारा नजदीक से अवतरित होते हुए देखा। उन्होंने बाद में घोषणा की कि मानव के रूप में 24 नवम्बर, 1926 को इस पृथ्वी पर वह दिव्य-शक्ति जन्म ले चुकी है। उन्होंने इसे कृष्ण का भौतिक जगत में मानवता के दिव्य रूपान्तरण हेतु अवतरण कहा। उन्होंने भविष्यवाणी की कि यह दिव्य शक्ति, लगभग एक गुमनाम जीवन व्यतीत करते हुए 20 वीं सदी के अन्त तक अपने मिशन के साथ प्रकट हो जायेगी (अरविन्द अपने विषय में, 29.10.1935) | गुरू सियाग का जन्म 24 नवम्बर 1926 को हुआ।