ध्यान के प्रति लगन में कमी, शिष्यों द्वारा प्राय: सुनने में आता है कि – जब गुरु सियाग योग आरम्भ किया तब बहुत उत्साह था, बहुत मन से नाम जप व ध्यान होता था | लेकिन कुछ महीनों बाद से लगता है कि ध्यान व मंत्र में पहले वाला उत्साह नहीं रहा है | कई बार नाम जप करने का याद नहीं आता और कई बार ध्यान करना याद नहीं रहता, या आलस लगता है | एसा क्यों होता है?
एसा होने के निम्लिखित में से कई कारण हो सकते हैं –
· किसी भी कार्य से कुछ समय बाद बोरियत होना मानवीय स्वभाव है | अगर कोई बहुत ही मन से और लगन से इस ध्यान व जाप को किसी इच्छा विशेष से आरम्भ करता है या बहुत ही लापरवाह ढंग से आरम्भ करता है तो साधना नियमित नहीं होगी | इसको आप इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि वीणा या सितार के तार बहुत टाइट होंगे या बहुत ढीले होंगे तो दोनों ही परिस्थितियों में वीणा नहीं बजेगी|
· पहले केस में, यदि साधना बहुत ही आर्मी स्टायल, में बहुत सीरियस होकर, करेंगे तो मन में एक प्रकार का तनाव होने लगता है | इस प्रकार के साधक अपने आपको सामाजिक रूप से अकेला पाते हैं, और बहुत सीरियस होकर एकदम किसी निश्चित समय पर ध्यान करते हैं, ध्यान करने के लिए सुबह बहुत जल्दी उठेंगे, ध्यान के हर अनुभव की काफी चर्चा करेंगे, कोई ध्यान के समय आवाज़ या शोर हो जाये तो उन्हें क्रोध आएगा, या जाप करने के लिए अपने को अकेला कर लेंगे | हालाँकि उनके प्रयासों को गलत नहीं कहा जायेगा, पर इस प्रकार की साधना को आर्मी स्टाइल में लम्बे समय तक किया जाना संभव नहीं है | इस प्रकार के साधक अध्यात्मिक थकान अनुभव करने लगते हैं | और उन्हें इस कार्य से कुछ समय आराम की आवश्यकता होगी |
· दूसरी ओर कई साधक इस साधना के प्रति काफी लापरवाह होते हैं, उनका ध्यान का कोई समय निश्चित ही नहीं होता, कई बार वे नियमित ध्यान को मिस कर जाते हैं और उस ध्यान को वीक एंड्स में या छुट्टी के दिन उस मिस हुए ध्यान के बदले में करते हैं | कई बार वे ध्यान करना भूल ही जाते हैं | कई बार दोस्तों या रिशेदारों के यहाँ होने पर बाकी सब कुछ करते हैं पर ध्यान नहीं करते और उस समय मन्त्र जाप तो याद ही नहीं आता | स्पष्ट है कि इस प्रकार के साधक अपने व्यक्तित्व में बदलाव भी महसूस नहीं करते, इस कारण साधना से भी उनका लगाव कम होता जाता है |
· उपरोक्त दोनों प्रकार की अति साधना के लिए अच्छी नहीं हैं | साधक को मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए, यानि साधना नियमित हो परन्तु आर्मी स्टाइल में नहीं | मानसिक रूप से अपने आप को सुबह व् शाम ध्यान करने के लिए याद रखें | ध्यान का समय आगे पीछे होने की चिंता न करें | लेकिन अन्य कार्यों की भांति ध्यान को दिनचर्या का हिस्सा बना लें | फिर भी याद ना रहे तो कुछ समय के लिए फोन में अलार्म लगा लें | कुछ ऐसे चिन्ह निर्धारित कर लें कि उन्हें देखते ही जाप करने का याद आये |
· साधना की शिथिलता से बचने का एक अन्य उपाय ये है कि आप ऐसे व्यक्तियों के सम्पर्क में रहें जो गुरु सियाग की साधना से सम्बन्धित हों और उनके विचार से आप भी सहमत हों | तो इस प्रकार के व्यक्तियों के साथ आध्यात्मिक अनुभवों के आदान प्रदान से काफी मानसिक मदद मिलती है | कई बार (जैसे विदेश में) साधकों के पास उनके आध्यात्मिक अनुभवों को समझने के लिए या चर्चा करने के लिए, या साधना में आने वाली बाधाओं के विषय में जानने के लिए कोई आस पास नहीं होता तो वे अकेलापन एवं निराश अनुभव करते हैं | कई बार साधक, साधना इसलिए छोड़ देते हैं कि उनके पास कोई इस बारे में बात करने वाला नहीं होता | समाज में कम्युनिटी फीलिंग बहुत होती है इस कारण अपने देखा होगा कि लोग सामूहिक धार्मिक आयोजन करते हैं ताकि अकेलेपन से बाहर आ सकें | गुरु सियाग के विश्व के अन्य भागों में आश्रम नहीं हैं लेकिन उनके देशों में साधना करने वालों का नेटवर्क है यदि आप उन लोगों से सम्पर्क करना चाहें तो कृपया मेसेज, मेल या कॉल करें तो जितना संभव होगा उस देश के साधक से आपका सम्पर्क करवाने का प्रयास किया जायेगा |
· कुछ साधक अपनी पूर्व की आध्यात्मिक प्यास के कारण बहुत तरीकों की बुक्स, पोस्ट्स, या योग के अन्य मार्गों के बारे में पढ़ते हैं | इससे आध्यात्मिकता के बारे में उनकी अपेक्षाएं बहुत ज्यादा हो जाती हैं | जब वो साधक गुरु सियाग योग आरम्भ करते हैं तो उनका मन उस पूर्व जानकारी के आधार पर एकदम सब कुछ पाने के लिए प्रयास करने लगता है | वे अपनी अपेक्षाएं इस ध्यान के माध्यम से तुरंत पूरी होते देखना या अनुभव करना चाहते हैं | उस समय वे भूल जाते हैं कि ध्यान में होने वाले अनुभव व् अनुभूतियाँ पिछले जन्मों में की गयी साधना से भी लिंक हैं | इसीलिए अनुभव एवं अनुभूतियां कोई एक निश्चित पैटर्न के आधार पर नहीं होती, वे सभी के लिए अलग अलग होती हैं | लेकिन जब साधक को उसकी उम्मीदों के अनुसार परिणाम प्राप्त नहीं होते तो साधक गुरु सियाग साधना से विमुख होने लगता है | इसका मतलब ये भी नहीं है कि अन्य योग की अन्य किताबें ना पढ़ी जाएँ | लेकिन पढ़ते समय ये जरुर ध्यान रखा जाये कि वो सभी बातें गुरु सियाग योग के लिए लागू हो ये बिलकुल भी जरुरी नहीं है| हर योग विधि का अपना तरीका है, अतः उनके अनुभव भी उसी आधार पर अलग प्रकार से होंगे | लेकिन गुरु सियाग की योग विधि के फायदे पूरी तरीके से अनुभव करने के लिए पूर्व ज्ञान को कुछ समय के लिए अलग हटा दें तो ज्यादा जल्दी परिणाम आयेंगे |
· कुछ साधक कहते हैं कि गुरु सियाग योग आरम्भ करते ही अच्छे अनुभव हुए | प्रत्येक ध्यान के अलग अलग अनुभव होते हैं | विभिन्न प्रकार की योगिक क्रियाएँ, अनुभूतियाँ, अनुभव आदि आदि | लेकिन ये निरंतर नहीं चलता और कुछ समय बाद धीरे धीरे कम हो जाता है या एक ही प्रकार का अनुभव या योगिक क्रिया निरंतर होती रहती है | अन्य अनुभव भी जब कभी या बहुत कम हो जाते हैं | साधक को निराशा होने लगती है कि ये सब अनुभव बंद या कम क्यों हो रहे हैं | फिर साधक को साधना बोरियत भरी लगने लगती है | इस सब के बारे में जब एक साधक ने गुरुदेव से पूछा तो गुरुदेव ने बताया कि “साधक की आध्यात्मिक प्रगति उसके शरीर छोड़ने के साथ रूकती नहीं है, ये तो केवल भौतिक शरीर है जो विलीन हो जाता है, अगले जन्म में जब भी साधक योग करता है तो उसकी यात्रा वहीं से शुरू होती है जहाँ उसने पिछले जन्म में छोड़ी थी | जब ये कनेक्शन इस जन्म में जुड़ता है तो चेतना के स्तर अचानक ही खुलने लगते हैं और अनुभूतियों और अनुभवों का अचानक फ्लो या बहाव आता है और शक्ति अपना अहसास करवाती है | एक बार जब ये सम्पर्क नियमित साधना से मजबूती से स्थापित हो जाता है तो साधक चेतना के उच्च स्तरों की ओर अग्रसर होता है, तब उसे फिर अनुभूतियों के उस आवेग की जरूरत नहीं रहती | लेकिन साधक इसे साधना कमजोर मानकर निराश होने लगता है | जबकि वास्तव में तो साधक चेतना के अगले स्तर पर पहुँच जाता है | सच तो यह है कि साधक को इन अनुभूतियों का लालच किये बिना निरंतर अभ्यास जारी रखना चाहिए |” गुरु सियाग का दर्शन बताता है कि अनुभूतियाँ होना तो केवल आध्यात्मिक यात्रा आरम्भ होने का संकेत मात्र है | निरंतर प्रगति के लिए साधक को अंत:करण से गुरुदेव से प्रार्थना एवं नियमित साधना करनी चाहिए | दुसरे शब्दों में जिस प्रकार हम पढाई में, व्यापार में, नौकरी आदि में मेहनत करते हैं उसी प्रकार का समर्पण और लगन आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए आवश्यक है | गुरुदेव का कहना है कि मुक्ति कोई बच्चो का खिलौना नहीं है जो गुरु ऐसे ही दे देगा | इसे पाने के लिए साधक को समर्पण, फोकस, कड़ी मेहनत और लगन की आवश्यकता होती है |
· कुछ साधक ऐसे होते हैं जिनको कोई भी अनुभूति या अनुभव नहीं होता | वो साधना इसलिए नहीं करते क्यों कि वो देखते हैं कि उनके आसपास के लोगों को योगिक क्रियाएँ, मुद्राएँ, बीमारी ठीक होना या दुसरे फायदे होने जैसा हो रहा है और उन्हें स्वयं कुछ भी नहीं हो रहा | इस बारे में उन्हें जो करना चाहिए, वह फेसबुक के पिछले पोस्ट में लिखा जा चुका है |
· कुछ साधक ये कहकर कि ध्यान ही नहीं लगता, साधना रोक देते हैं, या साधना बेमन से करते हैं | इस बारे में फेसबुक पर विस्तृत पोस्ट पढ़ सकते हैं |