गुरुदेव सियाग का जन्म 24 नवम्बर, 1926 को बीकानेर शहर के ग्राम पलाना में एक किसान परिवार में हुआ था। युवावस्था में उन्होंने रेलवे में क्लर्क का नौकरी की | उनके पाँच बच्चे (एक पुत्री तथा चार पुत्र) हुए। 1967 में एक स्थानीय भविष्यवक्ता ने गुरुदेव को बताया कि उन पर मारकेश (ग्रह नक्षत्रों का समूह जो मृत्युकारक होता है) की दशा है| कुछ स्थानीय पुरोहितों ने बतलाया कि गायत्री की आराधना द्वारा मृत्यु से बचा जा सकता है। गुरुदेव ने 1967 के अक्टूबर माह में नवरात्रि के दौरान सवा लाख गायत्री मंत्रों का जाप किया| इसे पूर्ण करने में 3 माह लगे । जिस दिन यह विधान समाप्त हुआ और अगले दिन जैसे ही उन्होंने आँखें खोली उन्होंने अपने पूरे शरीर में एक तीव्र सफेद प्रकाश महसूस किया। वह अपने आन्तरिक अंगो को देख नहीं सके। ऐसा लग रहा था जैसे उनका शरीर मात्र एक खाली खोल था। शीघ्र ही उन्हें भिनभिनाहट की ध्वनि सुनाई पडी, जब उन्होंने ध्वनि की ओर ध्यान केद्रित किया तो उन्होंने महसूस किया कि वह ध्वनि नाभि के केन्द्र स्थल से आ रही है। गायत्री मंत्र आश्चर्यजनक रूप से तेज रफ्तार के साथ जपा जा रहा था | इसके कुछ महीनों बाद भौतिक जीवन से उनकी दिलचस्पी खत्म हो गयी। उनकी ईश्वर में जो यदाकदा आस्था थी धीरे-धीरे वह दृढ़ विश्वास में बदल गयी। अब वह अपना अधिकांश समय ईश्वरीय आराधना तथा ध्यान करने में व्यतीत करने लगे। वह जैसे ही अन्तरमुखी हुए, वह जीवन के बारे में ही आश्चर्य करने लगे। विचार जैसे “वास्तव में मैं कौन हूँ? मैं यहाँ क्यों हूँ? मैं कहाँ जा रहा हूँ ? ” यह उन्हें रात-दिन लगातार सताने लगे। जब उन्होंने गायत्री की साधना के बाद आये अपने इस नजरिये में बदलाव बाबत् पवित्र पुराणों के पारंगत कुछ पण्डितों से परामर्श किया तो उन्हें बतलाया गया कि वास्तव में उन्हें देवी की सिद्धि प्राप्त हुई है। उन्होंने उन्हें भौतिक जीवन में निरन्तर आ रही कठिनाइयों को दूर करने के लिये उस शक्ति का प्रयोग करने का परामर्श दिया। गुरुदेव ने उनकी राय पर ध्यान देने से मना कर दिया।
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