दुनियाँ भर में बडे शहरों तथा छोटे कस्बों में रहने वाले अनगिनत लोग तनावपूर्ण जीवन जीते हुए किसी ऐसी औषधि की तलाश में रहते हैं जो उन्हें तनाव तथा सभी प्रकार की बीमारियों से, जिन पर वर्तमान औषधियाँ काम नहीं करती, छुटकारा दिला सके। कुछ लोग सनातन सत्य तथा परमात्मा की हार्दिक तलाश में हैं। इसमें से बहुत से लोग अपने इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु योग अपनाते हैं। कुछ समय बाद धीरे-धीरे उनका उत्साह कमजोर पडना आरम्भ हो जाता है क्योंकि उनमें से अधिकांश लोग यह जान जाते हैं कि या तो समय की कमी या फिर कार्य के अनियमित घन्टे होने के कारण रोजाना योग के थका देने वाले खानपान व रहन सहन संबंधी नियम अधिक समय तक बनाये रखना आसान नहीं है। इसके अलावा योग की विभिन्न क्रियाऐं जैसे आसन, बन्ध ,मुद्रायें, प्राणायाम आदि बहुत से लोगों के लिये करना आसान नहीं हैं, अधिकांश केसेज में गुरू अथवा योगा टीचर की निगरानी के बिना आरम्भ में योग की मुद्रायें करने का परामर्श नहीं दिया जाता है। जिनके पास समय व धन की कमी है उनके लिये योग की कक्षाओं में जाना या तो अव्यवहारिक होता है या अधिक खर्चीला होता है। क्या इसका यह मतलब है कि योग जनसाधारण के लिये नहीं है? जिनके पास या तो समय की कमी है या जो साधन सम्पन्न नहीं हैं, जो नियमानुसार योग के प्रशिक्षण में पहुँच सकें। सामान्यतः उत्तर होगा, हाँ योग सबके लिये सम्भव नहीं है। गुरू सियाग एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू हैं जो अपने शिष्यों के लिये जिम में जाये बिना या घर पर योग के थका देने वाले गहन प्रशिक्षणों के किये बिना ही सियाग योग के द्वारा योग के सर्वोत्तम लाभ उपलब्ध करा देते हैं। सियाग योग में, एक इच्छुक व्यक्ति को गुरू सियाग से शक्तिपात दीक्षा लेनी होती है तथा उनके बताये अनुसार ध्यान एवं मंत्रजाप करना होता है।
प्रश्न – क्या गुरु सियाग योग निःशुल्क है? या किसी प्रकार का रजिस्ट्रेशन है?
उत्तर –गुरु सियाग योग पूर्णतः निःशुल्क है। किसी भी प्रकार का रजिस्ट्रेशन नहीं है.
प्रश्न – क्या गुरुसियाग योग किसी धर्म विशेष के लिये ही है?
उत्तर – नहीं, यह सभी धर्मों , जातियों, पंथों, वर्गो, सम्प्रदायों आदि के लिये है। इस गुरु सियाग योग का सम्बन्ध किसी विशेष धर्म से नहीं है| जिस तरह गणित या विज्ञान का सम्बन्ध किसी धर्म विशेष से नहीं होता, उसी प्रकार गुरु सियाग योग भी अध्यात्म का एक विज्ञान है, यह सम्पूर्ण मानवता के लिये है।
प्रश्न – क्या गुरु सियाग योग के कोई दुष्प्रभाव होते हैं? इसे करने के लिए कोई उम्र विशेष जरुरी है ?
उत्तर – बिलकुल भी नहीं। गुरु सियाग के योग से कुन्डलिनी शक्ति जागृत हो जाती है, एवं कुन्डलिनी शक्ति मातृ-शक्ति होती है. जिस प्रकार माँ, कभी भी बच्चे का नुकसान न तो चाहेगी ओर ना ही होने देगी, उसी प्रकार गुरु सियाग योग से जागृत कुण्डलिनी शक्ति कभी भी आपका नुकसान नहीं होने देगी. इस योग को 5 वर्ष से लेकर किसी भी उम्र के व्यक्ति कर सकते हैं |
प्रश्न – यदि मैं गुरु सियाग योग नियमित रूप से नहीं करता हूँ क्या इसका मुझ पर विपरीत प्रभाव पडेगा?
उत्तर – नहीं, गुरु सियाग योग में विपरीत असर कभी नहीं होते | लेकिन नियमित न करने से गुरु सियाग योग के फायदे आपको बहुत ही धीमी गति से (ना के बराबर) अनुभव होंगे।
प्रश्न – इसे GSY गुरु सियाग योग क्यों कहा जाता है ?
शक्तिपात केवल समर्थगुरु की कृपा द्वारा ही प्राप्त होता है इसलिए इसे गुरु सियाग योग कहा जाता है। जागृत कुन्डलिनी पर समर्थगुरु का पूर्ण नियंत्रण होता है | समर्थगुरु ही उसके वेग को अनुशासित एवं नियंत्रित करते हैं | सियागयोग नाथ-मत के योगियों की देन है, इसमें सभी प्रकार के योग सम्मलित हैं इसलिए इसे पूर्णयोग या महायोग भी कहा जाता है | योग का मूल उद्देश्य मोक्ष है, पर मानव को उस स्थिति तक विकसित होने के लिए उसके त्रिविध-ताप – शारीरिक, मानसिक, एवं नशे आदि मिटना आवश्यक हैं | यह केवल सियाग योग से पूरी तरह सम्भव हैं | जिन रोगों को चिकित्सा जगत असाध्य मानता है उन रोगों से मुक्ति सियाग योग दिला सकता है | कई हजार वर्ष पूर्व प्राचीन ऋषि मत्स्येन्द्रनाथ जी ने प्रतिपादित किया तथा एक अन्य ऋषि पातंजलि ने इसे लिपिबद्ध कर नियम बनाये जो ‘योगसूत्र‘ के नाम से जाने जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार मत्स्येन्द्रनाथ जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस योग को हिमालय में कैलाश पर्वत पर निवास करने वाले शास्वत सर्वोच्च चेतना के साकार रूप भगवान शिव से सीखा था। ऋषि को, इस ज्ञान को मानवता के मोक्ष हेतु प्रदान करने के लिये कहा गया था। ज्ञान तथा विद्वता से युक्त यह योग गुरू शिष्य परम्परा में समय-समय पर दिया जाता रहा है। यह योग (सियाग योग) नाथमत के योगियों की देन है इसमें सभी प्रकार के योग जैसे भक्तियोग, कर्मयोग, राजयोग, क्रियायोग, ज्ञानयोग, लययोग, भावयोग, हठयोग आदि सम्मिलित हैं, इसीलिए इसे पूर्ण योग या महायोग भी कहते हैं इससे साधक के त्रिविध ताप आदि दैहिक (फिजीकल) आदि भौतिक (मेन्टल) आदि दैविक (स्पिरिचुअल) नष्ट हो जाते हैं तथा साधक जीवनमुक्त हो जाता है। महर्षि अरविन्द ने इसे पार्थिव अमरत्व की संज्ञा दी है। पातंजलि योगदर्शन में साधनापाद के २१ वें श्लोक में योग के आठ अंगों यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि का वर्णन है। बौद्धिक प्रयास से इस युग में उनका पालन करना असम्भव है। परन्तु गुरू-शिष्य परम्परा में शक्तिपात-दीक्षा से कुण्डलिनी जागृत करने का सिद्धान्त है। गुरु सियाग साधक की शक्ति (कुण्डलिनी) को चेतन करते हैं। वह जागृत कुण्डलिनी साधक को उपर्युक्त अष्टांगयोग की सभी साधनाएं स्वयं अपने अधीन करवाती है। इस प्रकार जो योग होता है उसे सियाग योग कहते हैं। यह शक्तिपात केवल समर्थ सदगुरु गुरु सियाग की कृपा द्वारा ही प्राप्त होता है इसलिये इसे गुरु सियाग योग कहा जाता है जबकि अन्य सभी प्रकार के योग मानवीय प्रयास से होते हैं।