गुरु का मतलब है जिनकी भौतिक उपस्थिति के बिना फोटो मात्र से भी दुनिया के किसी भी कोने में ध्यान लगता है, एवं कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो जाती है | समर्थ गुरु शिष्य पर किसी भी प्रकार का पूजा-पाठ, माला, तिलक, चन्दन, आरती, मिठाई, नारियल, लच्छा, दिशा, दिन, व्रत, उपवास, तीर्थ, मंदिर-मस्जिद आदि का बंधन नहीं लगाते हैं | समर्थ गुरु सर्वव्यापी होता है | जिस प्रकार एक ही सूर्य पूरी दुनिया को प्रकाश देता है उसी प्रकार समर्थ गुरु भी एक युग में एक ही होता है जो पुरे विश्व के किसी भी कोने में शिष्य के द्वारा ध्यान एवं नाम जप करने मात्र से कृपा करना आरम्भ कर देते हैं |
प्रश्न – ध्यान करते समय क्या गुरू सियाग के फोटो पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है? गुरू सियाग के फोटो से ही ध्यान क्यों लगता है?
उत्तर – हाँ, अगर आप कोई अन्य आकृति या चित्र चुनेंगें तो गुरु सियाग सिद्धयोग के लाभ आपको नहीं मिलेंगे। इस युग में केवल गुरु सियाग को ही सगुण साकार (कृष्ण) एवं निर्गुण निराकार (गायत्री) की सिद्धि प्राप्त है, मानवता के इतिहास मे यह पहली घटना है जब दोनों तरह की सिद्धियां एक ही जन्म में किसी मनुष्य को प्राप्त हुई हैं | इसलिए केवल गुरुदेव के फोटो से ही कुण्डलिनी जागृत होती है | गुरुदेव के फोटो पर ध्यान करने का मतलब, उनकी (गुरुदेव की) उर्जा शक्ति का आव्हान करना है क्यों कि इस शक्ति पर उनका प्रभुत्व है इस कारण आपकी जागृत कुन्डलिनी पर गुरु का नियंत्रण रहता है | हो सकता है कि ध्यान तो आपका किसी अन्य माध्यम से लग जाये पर, गुरु सियाग के फोटो के बिना कुन्डलिनी जागरण नहीं होगा | दुनियां में ध्यान तो बहुत लोग लगाते हैं पर उस ध्यान से कुण्डलिनी जागरण नहीं होता |
प्रश्न – किसी अन्य गुरु का मंत्र भी साथ-साथ करते रहे तो कोई नुकसान है क्या?
उत्तर – नुकसान नहीं तो मनवांछित फायदा भी नहीं होगा | जैसे माना की आपको किसी डॉक्टर का इलाज फायदा नहीं कर रहा है और आप किसी दूसरे डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते हो | नया डॉक्टर आपको दवाई लिखता है और अगर आप उस दवा के साथ पिछले डॉक्टर की दवाई भी लेते रहोगे तो या तो आपको रिएक्शन या नुकसान होगा, और नहीं हुआ तो फायदा भी नहीं होगा | सही फायदा लेने के लिए पिछली दवा तो बंद करेंगे तो निश्चित रूप से ज्यादा फ़ायदा होगा |
प्रश्न – तो क्या दुसरे गुरु, गुरु नहीं हैं?
उत्तर – बिलकुल हैं, गुरु तो बहुत सारे हैं, पर समर्थ गुरु नहीं हैं | वर्तमान काल में समर्थ गुरु केवल श्री रामलालजी सियाग हैं | समर्थ गुरु एक युग में एक ही होता है, जिनका कुण्डलिनी पर पूर्ण नियंत्रण होता है.
प्रश्न – पहले से जो गुरु बना रखे हैं उनको कैसे छोड़े?
उत्तर – ये आपको सोचना है, पर इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है – पांचवी, आठवीं, दसवीं, बारहवीं आदि की गणित पढ़ाने वाले सारे ही गुरु हैं, पर अगली कक्षा में जाते समय पिछली कक्षा वाले गुरु को छोड़ना होता है, एवं उसे धन्यवाद देना होता है कि – हे गुरु आपके दिए ज्ञान के कारण ही हम इस कक्षा को पास कर सके एवं अब अगली कक्षा में जा रहे हैं | अगर हम पिछली कक्षा के गुरु से ही चिपके रहेंगे तो अगली कक्षा में नहीं जा पायेगें | वैसे भी पिछली कक्षा का गुरु अगली कक्षा की सभी समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता | इसी प्रकार आध्यात्मिक गुरु यदि शिष्य की सभी समस्याओं का समाधान नहीं कर सके तो उसे शिष्य को अगले गुरु के पास जाने के लिए प्रेरित करना चाहिए, शिष्य को डराना नहीं चाहिए, तभी वो सच्चा गुरु है | अगर कोई गुरु आपकी समस्याओं का समाधान नहीं कर सके तो उसको पकड़े रखने से कोई फायदा नहीं | आगे बढ़ने के लिए अगली सीढ़ी पर पैर रखना हो तो पिछली सीढ़ी से पैर हटाना होता है |