प्रश्न – अगर मैं बीमार नहीं हूँ और न किसी चीज का आदी हूँ अर्थात मैं स्वस्थ हूँ तो मैं सिद्धयोग द्वारा कैसे लाभान्वित होऊँगा?
उत्तर – आप अपनी आध्यात्मिक यात्रा में तेजी से प्रगति करेंगे, जिसके लक्षण भौतिक जीवन में आपको नजर आने लगेंगे | गुरुदेव मानवता के जिस रूपांतरण की बात करते हैं वह घटित होने लगेगा | जो मानव के विकास को उसके उच्चतम तक ले जाता है | गुरुदेव, जीते जी जिस मोक्ष को पाने की बात करते हैं, उस मार्ग पर तीव्र प्रगति महसूस होने लगेगी |
प्रश्न – गुरु सियाग के सिद्धयोग में मुझे कैसे मालूम होगा कि मेरी कुण्डलिनी जागृत हो गई है?
उत्तर – ये आप स्वयं महसूस करने लगेंगे | स्वतः होने वाली योगिक क्रियायें, दृश्य दिखना, बीमारियों का ठीक होना, व्यक्तित्व में धनात्मक परिवर्तन इत्यादि कुछ लक्षण हैं जिनसे पता लगेगा कि कुण्डलिनी जाग चुकी है। फिर भी कुन्डलिनी के जागने की चिंता भी गुरुदेव पर छोड़ दें | आप गुरुदेव का ध्यान करें और आप पर कृपा ना हो? ये कैसे सम्भव है? ये कुछ इस तरह होगा कि दाल में नमक डालें और नमक का स्वाद ना आये |
प्रश्न – सिद्धयोग को करने के लिए रहने का क्या तरीका व दिनचर्या अपनानी होगी?
उत्तर – आपको अपने वर्तमान रहने के तरीके या दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं करना है और न आपको रहने का कोई नया तरीका अपनाना है। जो कुछ आप ध्यान आरम्भ करने से पहले कर रहे थे, उसे जारी रखें।
प्रश्न – इस योग में क्या मुझे किसी प्रकार की कसरत करनी है?
उत्तर – नहीं, आपको किसी प्रकार की कसरत नहीं करनी है। वे क्रियायें जो आप के शरीर के लिये आवश्यक हैं, वह ध्यान के दौरान कुण्डलिनी जागरण द्वारा स्वतः होंगी।
प्रश्न – जी.एस.वाई. (गुरु सियाग योग) के लिए क्या योग का कोई पूर्व-ज्ञान या वेदों की जानकारी आवश्यक है?
उत्तर – किसी भी प्रकार कि पूर्व जानकारी आवश्यक नहीं है | जरूरत है तो केवल इच्छा-शक्ति की | जैसे – सूर्य, बादल, हवा, पानी आदि अनपढ़ और साइंटिस्ट, दोनों को समान लाभ देते हैं; किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं करते, उसी प्रकार गुरु सियाग सिद्धयोग भी किसी प्रकार की पूर्व शर्त नहीं लगाता |
प्रश्न – क्या मैं किसी को गुरुसियाग सिद्धयोग की सिफारिश कर सकता हूँ? क्या ये कॉपीराइट है?
उत्तर – कोई कॉपीराइट नही है, आप किसी को भी गुरु सियाग के योग के बारे में बता सकते हैं | इस ज्ञान के बार में तो आप जितने ज्यादा लोगों को बताएँगे उतना ही अच्छा है | गुरुदेव का प्रचार करने के लिए आपको किसी से आज्ञा लेने कि जरूरत नहीं है | आप पूरी दुनिया में स्वयं के खर्च पर या स्वयं की व्यवस्थाओं के आधार पर कहीं भी प्रचार करने के लिए स्वतंत्र हैं | गुरुदेव ये ज्ञान मुफ्त बांटते हैं एवं आपको भी आगे इसे मुफ्त ही बाँटना है |
प्रश्न – दीक्षा कार्यक्रम किस भाषा में सम्पन्न होते हैं?
उत्तर – दीक्षा कार्यक्रम पूर्ण रूप से हिन्दी में होते हैं, फिर भी विदेशी नागरिकों के लिये जिन्हें अनुवाद की आवश्यकता है, व्यवस्था की जाती है।
प्रश्न –मैं गुरुदेव की इस कृपा के बदले में क्या कर सकता हूँ? या मैं इस मिशन में किस प्रकार योगदान दे सकता हूँ?
उत्तर – ये पूर्णत आपकी श्रद्धा पर निर्भर है | गुरुदेव के इस मिशन को योगदान देने के बहुत तरीके हैं| गुरुदेव कहते हैं कि नियमित ध्यान व नाम जप करें और अपने अनुभव दूसरों को बतायें| इस ज्ञान को अधिक से अधिक लोगों को देश-विदेश में बताने के प्रयास व इच्छा रखें| आप श्रद्धानुसार –
- पैम्फलेट प्रिंट करवाकर अपने क्षेत्र में बाँट सकते हैं |
- आफिस, दुकान या बिजनेस के द्वारा सम्पर्क में आने वाले लोगों को गुरुदेव के बारे में बता सकते हैं |
- अखबार में पैम्फलेट रखवा कर बँटवा सकते हैं|
- सुबह-शाम या छुट्टी के दिन पार्क, मंदिर या पब्लिक प्लेस (सार्वजनिक स्थानों) में जाकर प्रचार कर सकते हैं |
- स्कूल, कॉलेज आदि में प्रिंसिपल से अनुमति लेकर प्रचार कर सकते हैं |
- फैक्ट्री में प्रबंधन से बात कर सिद्धयोग का सेशन करवा सकते हैं |
- विभिन्न संस्थाओं के नोटिस बोर्ड्स पर गुरुदेव के पैम्फलेट लगवा सकते हैं |
- जान पहचान के आधार पर अखबार, टी.वी. या अन्य मीडिया में गुरुदेव के बारे में समाचार निकलवा सकते हैं |
- लोकल केबल से सम्पर्क कर स्ट्रिप चलाई जा सकती है |
- लोकल केबल पर गुरुवार के दिन सी.डी. चलवाई जा सकती है |
- आपके एरिये के फिल्म टॉकीज में गुरुवार की शाम की मन्त्र सी.डी. का प्रचार किया जा सकता है |
- यूनियन से या ऑफिस से अनुमति लेकर बस व ट्रक में गुरुदेव के स्टिकर लगा सकते हैं |
- शहर के ऑटो/टेक्सी यूनियन से बात कर उनके पीछे, फ्लेक्स, स्टिकर आदि लगवा सकते हैं
- एक-एक कर आपके कस्बे या शहर के सारे सरकारी विभाग कवर किये जा सकते हैं | हर विभाग में किसी भी एक को इतना संतुष्ट कर लें कि वो उस विभाग में अन्य लोगों के लिए माध्यम बन जाये |
- शहर के अनाथालय, जेल, नशा-मुक्ति केन्द्रों में सम्पर्क किया जा सकता है |
- जिले के एन.जी.ओ. से मिला जा सकता है |
- होस्पिटल के बाहर स्टॉल लगाया जा सकता हैं |
- शहर के पुलिस-थानों एवं आर्मी (यदि आपके शहर मैं हो तो ) से सम्पर्क कर सकते हैं |
- दोपहर जब शॉप पर ग्राहक संख्या कम होती है तब किसी भी एक मार्केट का चुनाव कर दुकानदारों से सम्पर्क हो सकता है |
- शाम के समय शहर कि आवासीय बस्तियों व कोलोनीज में जाया जा सकता है |
- स्कूल के बच्चों को छुट्टी के समय पैम्फलेट बांटे जा सकते हैं |
- फैक्ट्री से शिफ्ट परिवर्तन के समय घर जाने वाले स्टाफ को सामग्री वितरित की जा सकती है |
- रेलगाडियों के टोइलेटस में स्टिकर लगा सकते हैं |
- रेलवे स्टेशन व बस स्टैंड पर रवाना होने वाले यात्रियों को एवं स्टैंड पर प्रतीक्षालय में बैठे लोगों से सम्पर्क कर सकते हैं |
- साप्ताहिक रूप में हर गुरुवार के दिन टी.वी. पर आने वाले शाम के दीक्षा प्रोग्राम की सूचना रिक्शा या ऑटो रिक्शा से दी जा सकती है |
- हर कॉलोनी में कोई एक ऐसा स्थान जैसे – किसी का घर, मंदिर का प्रांगण, पार्क, निगम की लाइब्रेरी आदि, साप्ताहिक या पाक्षिक मीटिंग के लिए चुना जा सकता है |
- आपके शहर के प्याऊ, चाय, व पान की दुकानों पर गुरुदेव के स्टिकर्स चिपकाये जा सकते हैं |
- हर शहर में कई प्रकार की जातियों के समाज, महासभाएं होती हैं उनकी कार्यकारिणी के मेम्बर्स को जाकर बताया जा सकता है कि गुरु सियाग सिद्धयोग मानवता के लिए है, न कि किसी जाति या धर्म का | इस प्रकार विभिन्न समाज के बहुत सारे लोग एक साथ एक मंच पर एकत्रित हो सकते हैं |
- प्रबुद्ध वर्ग के लोगो से कुछ समय नियमित सम्पर्क द्वारा उन्हें लम्बे समय तक जोड़ कर रखा जा सकता है |
- महानगरों में लोकल न्यूज़ पेपर्स, लोकल एरिये के लोगों को किसी स्थान पर एकत्रित कर सकते हैं | लोकल न्यूज़ पेपर्स में छोटा सा विज्ञापन देने से वे गुरुदेव पर आर्टिकल भी निकालने को तैयार हो जाते हैं |
- जहाँ भी जायें – आफिस, कालेज, इंडस्ट्री, समाज, कम से कम एक व्यक्ति को पूरा समय देकर गुरुदेव का दर्शन भली-भांति समझाएं | वो व्यक्ति बाद में उस स्थान पर उत्प्रेरक का कार्य करेगा |
- गांवों में ग्राम प्रधान या सरपंच से मिलकर लोगों को एकत्र कर गुरुदेव के बारे में बताया जा सकता है |
- गांव की चौपाल एवं चाय की दुकानों पर आने वालों से गुरुदेव के बारे में चर्चा की जा सकती है |
- आसपास के इलाकों के मेले में या त्यौहारों के अवसर पर स्टाल लगा सकते हैं |
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प्रश्न – मैं कई वर्षों से गुरु सियाग का नियमित ध्यान व नाम – जप कर रहा हूँ, फिर भी वांछित परिणाम नजर नहीं आ रहे | परेशानियां कम नहीं हो रही? समझ नहीं आ रहा कि गलती कहाँ हो रही है? जबकि मैं गुरुदेव की साधना के अलावा कुछ भी नहीं मानता हूँ |
जैसे- दूध में शक्कर डालते जायें फिर भी दूध मीठा न हो, तो ये कैसे सम्भव है? या इसका मतलब है शक्कर (जिसे हम शक्कर समझ रहे हैं), शक्कर ही नहीं है| इसी प्रकार क्या हम ये सोचते हैं या कहना चाहते हैं कि ये ध्यान व नामजप सही नहीं है या हम मन से करते हैं पर रिजल्ट नहीं आता | सच्चाई तो ये है कि आपके भौतिक जीवन में होने वाले फायदे इतने सहज रूप से होते हैं कि आपको अंदाजा ही नहीं होता कि गुरुदेव की शक्ति कितनी सहज रूप से कार्य कर रही है| पौधे या बच्चे कब धीरे-धीरे बड़े होते जाते हैं पता नहीं लगता पर, हर पल बड़े होते जाते हैं| इसी प्रकार हर ध्यान व नाम जप से आप में आने वाला परिवर्तन आपको महसूस नहीं होता |
एक कारण और भी हो सकता है जिसे आपको स्वयं ढूँढना है, इसे आप एक उदाहरण से भी समझ सकते हैं – दो व्यक्तियों ने एक शाम नाव से किसी दूसरे स्थान पर जाने का प्लान बनाया | जाने के सामान की तैयारी के साथ उन्होंने खूंटे से बंधी नाव की रस्सियाँ खोलकर चप्पू चलाना आरम्भ किया और रात-भर चलते रहे | सुबह होने पर रोशनी में देखा कि नाव तो वहीं की वहीं है | जबकि रस्सियाँ सभी खोल दी थीं | कारण ढूंढा तो पता लगा कि नाव के पेंदे में बंधी एक जंजीर खोलना भूल गए थे और रात-भर मेहनत करने के बाद भी परिणाम नहीं मिला |
तो इस प्रकार जब साधक कहते हैं कि हम गुरुदेव के ध्यान व नाम-जप के अलावा कुछ नहीं करते, फिर भी कोई फायदा नहीं हो रहा, तो हमें स्वयं मनन करके अपने अंदर बंधी वह जंजीर ढूंढनी है कि हम अंदर से किसी पुरानी परिपाटी या आडम्बर या कर्मकांड से चिपके हुए हों एवं आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं | बाहर से आडम्बरों या कर्मकांडों से मुक्ति पाने का दिखावा एवं अंदर से आडम्बरों या कर्मकांडों से मुक्ति पा जाने में काफी अंतर है |
इसके आलावा वह जंजीर कई रूपों में बहुत सूक्ष्म रूप से आपको बांध कर रखे हो सकती है | जैसे आप योग की दूसरी विधि भी अपना रहे हों, गुरु सियाग के साथ-साथ अन्य गुरु भी बना रखे हों, आप किसी तांत्रिक, फकीर, या पंडित के पास उपचार के लिए जाते हों, दूसरे गुरु का मन्त्र या कोई भी अन्य पूजा भी कर रहे हों, कोई धागा, ताबीज, लच्छा, स्टोन पहन रखा हो, कोई व्रत, उपवास, पाठ करते हों, गुरुदेव के प्रसाद के अलावा, हर प्रकार, हर जगह का प्रसाद ग्रहण कर लेते हों | ये आपको ढूंढना है कि गुरुदेव के प्रति समर्पण में कमी कहाँ है ? आप स्वयं जाँच करें कि आप क्या कर रहे हैं | वांछित परिणाम अवश्य मिलेंगे |
प्रश्न – मेरा मित्र नियमित रूप से गुरुदेव का ध्यान करता है उस पर किसी ने कुछ तंत्र-मंत्र किया हुआ है जो उसे परेशान करता है | ध्यान व नाम-जप के अलावा वह और किस बात का ध्यान रखे ताकि वह इस परेशानी से जल्दी से जल्दी मुक्ति पा सके?
उत्तर – आप एक बात का बहुत ध्यान रखें कि जिस दिन से आप गुरुदेव का ध्यान एवं नाम-जप आरम्भ करते हैं उसी दिन से आपको किसी की भी तांत्रिक क्रिया परेशान नहीं कर सकती| किसी का कुछ भी किया आप पर असर नहीं करेगा | किसी पर ऊपरी हवा होगी वो भी छोड़कर चली जायेगी| भूत-प्रेत का असर भी नहीं होगा | अगर आप इन से पीड़ित हों तो इतना जरूर ध्यान रखें कि –
- शरीर पर कोई ताबीज, धागा, लच्छा, स्टोन आदि हो तो उन्हें शरीर से हटा दें|
- किसी भी पंडित, ज्योतिष, तांत्रिक, फकीर, व्रत, उपवास आदि के चक्कर में न पडें|
- घर में किसी का दिया भस्म, भभूत या अन्य कुछ हो तो उसे हटा दें |
- पीड़ित व्यक्ति के सामने गुरुदेव की फोटो लगा दें |
- बाहरी या अनजान लोगों से किसी भी प्रकार का प्रसाद ग्रहण नहीं करें| खाने-पीने की वस्तुओं के माध्यम से बाहरी शक्तियों द्वारा नुकसान पहुंचाने की सम्भावना अधिक होती है |
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प्रश्न – मैं ध्यान करने बैठता हूँ पर मुझे लगता है कि मेरा ध्यान नहीं लगता, कोई मूवमेंट भी नहीं होता तो क्या मेरी साधना सही नहीं चल रही? या मैं कोई गलती कर रहा हूँ?
उत्तर – अगर आप नियमित ध्यान एवं नाम-जाप करते हैं तो आपको ध्यान लगने या न लगने की चिंता नहीं करनी चाहिए | केवल मूवमेंट (योगिक क्रियाएँ) होना ही ध्यान लगने की निशानी नहीं है | योगिक क्रियाएँ शरीर की आवश्यकतानुसार होती हैं | भौतिक जीवन में दिखने वाले लाभ भी ध्यान व नाम-जप का ही परिणाम होते हैं | कई साधक सोचते हैं कि उनको कोई मूवमेंट नहीं हो रहा तो क्या उनका ध्यान नहीं लग रहा? गुरुदेव कहते हैं कि केवल योगिक क्रिया होना ही ध्यान लगने का संकेत नहीं है | अगर आप नियमित ध्यान व मंत्र-जाप करते हो यही बहुत है | बाकि मातृशक्ति के हाथों में छोड़ दीजिए | गुरु सियाग सिद्धयोग का साधक जब कुछ समय तक नियमित रूप से ध्यान करता रहता है तो वह प्रत्यक्ष धनात्मक परिवर्तन पाता है। लम्बे समय तक चलने वाली परेशानियों तथा बीमारियों का प्रभाव धीरे-धीरे कम होना आरम्भ हो जाता है और स्थिति यहाँ तक आ जाती है कि वह यह महसूस करने लगता है कि जिस दर्द एवं परेशानियों ने वर्षों तक उसे परेशान कर रखा था उनसे वह पूर्ण रूप से मुक्त हो गया है। इसी प्रकार जो लोग नशे या शराब के आदी हैं अथवा विभिन्न प्रकार की मानसिक समस्याओं जैसे स्कीजोफ्रेनियां, भय, तनाव, अनिद्रा आदि से पीडत हैं, मुक्त हो जाते हैं। जो स्वस्थ हैं, वह आध्यात्मिकता के मार्ग पर तेजी के साथ प्रगति करते हैं और उन्हें अपने बारे में सत्यता का ज्ञान होता है, उनके पृथ्वी पर होने का क्या उद्देश्य है? तथा वह ईश्वर की प्रत्यक्षानुभूति कैसे कर सकते हैं? गुरू सियाग के प्रति पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण, सिद्धयोग से वांछित परिणाम प्राप्त करने की चाबी है।
प्रश्न – सब कुछ अच्छा चलते हुए भी मन अचानक विचलित होने लगता है या उदासी घेर लेती है? ऐसा क्यों होता है?
उत्तर – जब ध्यान व नामजप से साधना आगे बढ़ती है तो चेतना का स्तर बढ़ने लगता है | आत्मा का स्वरूप पहचान में आने लगता है| अपने इस जन्म का लक्ष्य समझ आने लगता है| दुनिया की भौतिकता से मन ऊबने लगता है इसलिए कई बार कुछ भी अच्छा नही लगता | फिर आस-पास का वातावरण उसी भौतिकता में ले जाना चाहता है | जो मित्र या पारिवारिक सदस्य ध्यान व नामजप नहीं कर रहे होते हैं वे वापस भौतिकता में खींचने का प्रयास करते हैं| क्या करें क्या न करें, का मानसिक द्वंद चलने लगता है| ऐसे समय में विचलित नहीं होना चाहिए एवं ध्यान व नाम जप तीव्र कर देना चाहिए| किसी से भी गुरु चर्चा आरम्भ कर देनी चाहिए या किसी नए व्यक्ति को गुरुदेव का दर्शन बताना चाहिए| कुछ समय बाद अपने आप सब सामान्य हो जायेगा|
ऐसा साधना के आरम्भ में कई बार होता है फिर ऐसा विचलन होने की आवृत्ति धीरे-धीरे घटती जाती है | ऐसी स्थिति लगभग हर साधक के साथ कभी न कभी आती है,पर बिलकुल भी चिंता न करें | गुरुदेव की कृपा से ऐसी स्थिति से बाहर निकलने के बाद हर बार आप नए चेतना स्तर की और आगे बढ़ेंगे |
आप एक बात और ध्यान रखें कि अगर आप किसी चिंता के कारण परेशान होते हैं तो उस समय आप मन से नाम-जप करें, क्यों कि किसी भी परेशानी या चिंता के बारे में सोचने से वह परेशानी कम नहीं होगी, लेकिन नियमित नाम-जप करने से या तो परेशानी आएगी ही नहीं या आने वाली परेशानी कम हो जायेगी |
प्रश्न – जब से ध्यान आरम्भ किया है ऐसा लगता है कि परेशानियां बढ़ने लगी हैं | कई बार ऐसा भी लगता है कि अचानक बिना बात ही नुकसान हो रहा है |
उत्तर – सबसे पहली बात तो, हो सकता है कि गुरुदेव आपके धैर्य की परीक्षा ले रहे हों, कि आप किस स्तर तक गुरुदेव पर भरोसा रखते हुए कोई शिकायत नहीं करते |
दूसरा, परेशानियां बढ़ने का तो सवाल ही नहीं है, आपको केवल ऐसा लगता है | इसका पहला कारण हो सकता है कि आप पूरे मन से ध्यान या सघन नाम-जप न कर पा रहे हों | इसिलिए परेशानियां घटती प्रतीत नहीं होतीं |
तीसरा कारण – गुरुदेव कहते हैं जो भी होगा इसी जन्म में होगा, इसी जन्म में जीते-जी मोक्ष हो जायेगा; यानि पिछले सब जन्मों के पाप-पुण्य का हिसाब इसी जन्म में हो जायेगा | आपक अगला जन्म नहीं लेना पड़ेगा | गुरुदेव जब आपको अपनी शरण में लेते हैं तो आपके द्वारा पिछले जन्मों में जाने अनजाने में किये गए गलत कर्मों की सजा भी आंशिक रूप में (जैसे – पिछले जन्मों की 100 गलतियों की सजा, इस जन्म में 5 गलतीयों की सजा के बराबर) इसी जन्म में भुगतवा देते हैं | गलत किया है तो सजा तो भुगतनी पड़ेगी, पर गुरुदेव की कृपा से पिछले जन्म की बड़ी गलती की सजा इस जन्म में छोटे रूप में मिलकर आपको मुक्ति की ओर ले जाती है | जैसे- माना कि पिछले जन्म में कोई ऐसी गलती की है जिसकी सजा के रूप में, इस जन्म में हाथ टूटना लिखा था, तो पता पड़ेगा कि अचानक ही कोहनी में किसी चीज के टकराने से चोट लग गयी | आप सोचोगे अचानक ऐसा क्यों हुआ, मैं तो गुरुदेव का नियमित ध्यान व नामजप करता हूँ और कुछ गलत भी नहीं करता, फिर चोट क्यों लगी? पर गुरुदेव की कृपा से किसी बड़ी गलती की सजा छोटी सी ! पर भुगतनी तो पड़ेगी |
इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं कि इस जन्म में यथासम्भव अच्छा करने के बाद भी परेशानी या सजा क्यों मिलती प्रतीत होती है? माना कि किसी व्यक्ति ने चिड़िया को मारने के लिए तीर चलाया और तीर छोड़ने बाद उसे किसी कारण से आत्म-ज्ञान हुआ और वो दुनिया को बताने लगा कि जीव-हत्या गलत कार्य है | लोग उसकी बातें सुनेगे पर जब थोड़ी देर बाद उस व्यक्ति के छोड़े हुए तीर से वो चिड़िया मरेगी तो वो ही लोग कहेंगे कि एक तरफ तो आप तो ज्ञान कि बात कर रहे हो और ये आपके ही द्वारा छोड़े हुए तीर ने चिड़िया मार दी, तो व्यक्ति कहेगा कि वो तीर तो मैने आत्म-ज्ञान होने से पहले छोड़ा था | ये गलत कार्य पूर्व में अनजाने में किया गया था |
इसी प्रकार हम सब भी पूर्व जन्मों या इस जन्म में गुरुदेव से मिलने से पहले जाने-अनजाने में कई गलत कार्य करते आये हैं पर इस जन्म में गुरुदेव की कृपा से आत्म-ज्ञान होने के बाद भी पिछला किया हुआ आंशिक रूप से तो भुगतना पड़ेगा | इसीलिए गलतियों की सजा तो मिलेगी पर गुरुदेव कि कृपा से बहुत थोड़ी सी मिलेगी यानी नियमित ध्यान व नाम-जप करते हुए अगर परेशानियां आ रही हैं तो भी आप बिलकुल परेशान न हों | समझ लें कि गुरुदेव ने आपको पूरी तरह शरण में लिया हुआ है |
इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि कुछ किरायेदार वैसे बड़ी शांति से रहते हैं, पर जब उन्हें मकान खाली करने के लिए कहा जाता है तो वे कोई न कोई उपद्रव मचाते हैं एवं आसानी से मकान खाली नहीं करते | इसी प्रकार जब आप गुरु के बताए मार्ग पर चलते हैं तो नकारात्मक वृत्तियाँ आपको परेशान करने लगती हैं और आपको साधना के मार्ग से भटकाना चाहती हैं | ताकि आप सोचें कि इस मार्ग पर चलने से परेशानियां आ रहीं हैं |
प्रश्न – कई बार बोला हुआ सत्य हो जाता है, दूसरों के विचार समझ में आने लगते हैं, लेकिन कुछ समय बाद सब रुकता हुआ लगता है?
उत्तर – ऐसा अलग-अलग चक्रों के चेतन होने से, एवं उनसे जुड़ी हुई शक्तियों के चेतन होने के कारण होता है | आपको इनमें उलझना नहीं है | हर चक्र के चेतन होने के साथ, एवं आगे बढ़ने के साथ सिद्धियों का आना-जाना चलता रहेगा | आप बिना कोई चिंता किये केवल नाम-जप व ध्यान करते रहें | अगर आप उन सिद्धियों को दूसरों से तारीफ पाने के लिए प्रचारित करेंगे तो ये आपके आगे के विकास को अवरुद्ध करेगा |
इसे आप इस प्रकार समझें कि आप एक दौड़ में हिस्सा ले रहे हैं जिसमें आपको रास्ते में चांदी का टुकड़ा पड़ा दिखता है तो आप उस पर से पैर रखकर निकल जाएँ, अगर उस टुकड़े के लालच में उलझ गए तो आगे की यात्रा रुक जायेगी | आगे सोने का टुकड़ा पड़ा मिलेगा, उस पर से भी पैर रखकर दोड़ते जायें | आगे हीरा पड़ा होगा उसका भी लालच ना करें, उसको भी पार कर जाएँ, आगे हीरों की खान मिलेगी | इसी प्रकार गुरुदेव के ध्यान के इस मार्ग में आपको चांदी, सोने, हीरे के रूप में, हर चक्र से सम्बन्धित सिद्धियाँ मिलेंगी | आगे आपको इतना मिलेगा कि आपने सोचा भी नहीं होगा | आपको उनमें उलझना नही है, अगर आप उनका दुरूपयोग करना या अपनी शान दिखाना आरम्भ कर देंगे तो आपकी आगे की आध्यात्मिक यात्रा, आपके लालच के कारण रुकने लगेगी |
प्रश्न – ध्यान से तो परिवार में शांति आनी चाहिए | पूरे परिवार के ध्यान करने के बाद भी पारिवारिक क्लेश बढ़ते हुए प्रतीत होते हैं | क्यों?
उत्तर – अगर पूरा परिवार ध्यान कर रहा है तो आप क्लेश होने पर भी चिंता ना करें | ऐसा कई बार चेतना के स्तर में अंतर होने के कारण होता है | वर्तमान में भले ही हम एक ही परिवार के सदस्य हों पर पूर्व-जन्मों की यात्रा सबकी अलग-अलग है | इसलिए इस जन्म में साधना के बाद चेतना के अलग स्तरों को लगभग एक जैसे स्तर पर आने में समय लगता है | इस कारण वैचारिक भिन्नता स्वाभाविक है एवं एक दूसरे को गलत ठहराने की या जबरदस्ती समझाने की कोशिश ना करें | आप केवल धैर्य-पूर्वक ध्यान एवं नाम-जप करते रहें | परिस्थितियों को स्वयं कंट्रोल करने की कोशिश न करें, बल्कि गुरुदेव पर छोड़ दें |
गुरुदेव से दीक्षा लेकर आपका दूसरा जन्म होता है | जब तक गुरुदेव से नहीं मिले थे तब तक अज्ञानतावश या संस्कारवश स्थितियों को स्वयं कण्ट्रोल करने की कोशिश करना समझा जा सकता है, पर गुरुदेव से दीक्षा लेने के बाद से केवल ध्यान, नामजप व प्रार्थना पर भरोसा रखना चाहिए | जब जन्म एवं मृत्यु आपके नियंत्रण में नहीं हैं तो बीच के जीवन काल की परिस्थितियों का नियंत्रण भी गुरुदेव पर छोड़ देना चाहिए | जब आप परिस्थितियों को दिमाग लगाकर नियंत्रित करने की कोशिश बंद कर देंगे, तब महसूस करेंगे कि गुरुदेव की शक्ति हर पल आपकी मदद कर रही है |
प्रश्न – परिवार के कुछ सदस्य इस ध्यान पद्धति के विरुद्ध हैं | क्या करें?
उत्तर – आप उनको एक बार समझाने के बाद बार-बार समझाने का प्रयास न करें | आप स्वयं पूरे मन से ध्यान व नाम जप करते रहें | कुछ समय बाद आपके अंदर होने वाले परिवर्तनों एवं फायदों को देखकर वे स्वयं ध्यान करना आरम्भ कर देंगे |