मई, जून 1983 तक गुरुदेव ने मानसिक व्यवधान और भी अधिक बढा हुआ महसूस किया। यह स्थिति आश्रम जाने के बाद भी लगातार बनी रही। 31 दिसम्बर 1983 की सुबह 5 बजे एक बडा झटका लगा। तेज भूकम्प से समूचा उत्तरी-पश्चिमी भारत हिल गया, पृथ्वी हिली उसके कुछ सैकेण्ड पहले उस सुबह प्रातः ही एक अज्ञात धक्के से गुरुदेव गहरी नींद से झटके के साथ उठ गये थे। गुरुदेव ने बाद में जाना कि उस क्षण बाबा गंगाईनाथ जी गुजर चुके थे। फिर शीघ्र ही, बाद में बाबा की समाधि पर जाने की एक अज्ञात आन्तरिक माँग उन्हें महसूस हुई जिसे उन्होंने दिमागी चाल समझकर स्थगित कर दिया। फिर एक स्थानीय युवक ने कहा, कि आपको जामसर बाबा की समाधि पर लाने के लिये बाबा गंगाईनाथ जी उसे कई बार कहते हैं। जब गुरुदेव ने युवक से कहा कि बाबा अब जीवित नहीं है, इसलिये उसे बाबा कैसे मिल सकते हैं? तो युवक ने कहा कि वह संत उसके स्वप्न में आकर उसे आदेश देते हैं। इसे ईश्वरीय बुलावा समझकर गुरुदेव बाबा की समाधि पर गये तथा वहाँ प्रार्थना की। बाबा ने शीघ्र ही गुरुदेव को यह एहसास करा दिया की वह पूर्व निर्धारित सांसारिक जीवन व्यतीत करने के लिये नहीं हैं। गुरुदेव को सम्पूर्ण मानवता के रूपान्तरण के लिये धार्मिक क्रान्ति की अगुआई करने की व्यवस्था करनी थी। गुरुदेव का स्वयं का जो रूपान्तरण हो रहा था उसका अभिप्राय वास्तव में उन्हें आगे आने वाले कठिन कार्य के लिये तैयार करना था।
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