कुण्डलिनी जागरण द्वारा सम्पूर्ण विश्व में मानवता का आध्यात्मिक विकास एवं दिव्य रूपान्तरण। इसके लिए गुरुदेव का कहना है कि – मैं, एक भगवे वस्त्रधारी “आई पंथी” नाथ का शिष्य हूँ। मेरे मुक्तिदाता सद्गुरुदेव, बाबा श्री गंगाईनाथ जी योगी के दिशा-निर्देशों के अनुसार सम्पूर्ण विश्व के लोगों को “शक्तिपात दीक्षा” देने हेतु विश्व में निकला हूँ। भारत में मेरे शिष्यों की संख्या लाखों में है। उनमें विज्ञान के हजारों इन्जीनियर, डॉक्टर एवं वैज्ञानिक सम्मिलित हैं। इस योग से सभी प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक रोग पूर्ण रूप से नष्ट हो रहे हैं। क्यों कि यह परिवर्तन सम्पूर्ण मानव जाति में समानरूप से हो रहा है अतः इसमें “जाति-भेद” एवं “धर्म परिवर्तन” जैसी कोई समस्या नहीं है। इसमें साधक अपने स्वयं के धर्म में रहता हुआ इस योग की साधना कर सकता है। गुरुदेव कहते हैं कि जब तक वह पश्चिमी जगत के लोगों तक पहुँचकर उन्हें आध्यात्मिक पथ पर, जो बाबा गंगाईनाथ जी ने दिखलाया है, आने हेतु सहमत नहीं कर लेते विश्व में वास्तविक शान्ति एवं समृद्धि नहीं आयेगी। गुरुदेव कहते हैं “पूरब की आध्यात्मिकता को पश्चिम की भौतिकता से हाथ मिलाने की आवश्यकता है जिसके बिना दुनियाँ में संघर्ष व मतभेद खत्म नहीं हो सकते। यह पूरब तथा पश्चिम की आध्यात्मिक एकता है, जिसे मैं परिपूर्ण करने निकला हूँ, जो विश्व में स्थायी शान्ति की परिचायक होगी। गुरुदेव सियाग का कथन है– “मानवता में सतोगुण का उत्थान तथा तमोगुण का पतन करने संसार में अकेला ही निकल पडा हूँ। मुझ पर किसी भी जाति-विशेष, धर्म-विशेष तथा देश-विशेष का एकाधिकार नहीं है”।
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