परमपिता का अर्द्धनारीश्वर भाग शक्ति कहलाता है यह ईश्वर की पराशक्ति है (प्रबल लौकिक ऊर्जा शक्ति) । जिसे हम राधा, सीता, दुर्गा, माता, अम्बा, पार्वती या काली आदि के नाम से पूजते हैं। पूर्व में लोगों ने ध्यान – साधना के दौरान कुण्डलिनी शक्ति के अलग-अलग रूप देखे एवं उन्हें चित्र या मूर्ति के रूप में ढालने का प्रयास किया | उन शक्तियों के अलग-अलग नाम राधा, सीता, दुर्गा, अम्बा, काली, संतोषी, पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती आदि दिए गए | यानी ये सभी शक्तियां इंसान के अंदर हैं, इसीलिए लोगों को ध्यान में दिखी | पर कलियुग के प्रभाव के कारण लोगों ने इन शक्तियों को अंदर के बजाय बाहर मूर्तियों में ढूँढना आरम्भ कर दिया | आज भी ये सब शक्तियाँ मानव मात्र में सुषुप्तावस्था में विद्यमान हैं | गुरुदेव इन्हीं सोई हुई शक्तियों को जगाने का मार्ग बताते हैं |
इन शक्तियों को ही भारतीय योगदर्शन में कुण्डलिनी कहा गया है। यह दिव्य शक्ति मानव शरीर में मूलाधार (रीढ़ की हड्डी का निचला हिस्सा) में सुषुप्तावस्था में रहती है। यह रीढ़ की हड्डी के आखिरी हिस्से के चारों ओर साढ़े तीन आँटे लगाकर कुण्डली मारे, सोए हुए सांप की तरह सोई रहती है। इसीलिए यह कुण्डलिनी कहलाती है। जब कुण्डलिनी जागृत होती है तो यह सहस्रार में स्थित अपने स्वामी से मिलने के लिये ऊपर की ओर उठती है। जागृत कुण्डलिनी पर समर्थ सद्गुरु का पूर्ण नियंत्रण होता है, वे ही उसके वेग को अनुशासित एवं नियंत्रित करते हैं। गुरुकृपा रूपी शक्तिपात दीक्षा से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर 6 चक्रों का भेदन करती हुई सहस्रार तक पहुँचती है। कुण्डलिनी द्वारा जो योग करवाया जाता है उससे मनुष्य के सभी अंग पूर्ण स्वस्थ हो जाते हैं। साधक का जो अंग बीमार या कमजोर होता है मात्र उसी की योगिक क्रियायें ध्यानावस्था में होती हैं एवं कुण्डलिनी शक्ति उसी बीमार अंग का योग करवाकर उसे पूर्ण स्वस्थ कर देती है।
इससे मानव शरीर पूर्णतः रोगमुक्त हो जाता है तथा साधक ऊर्जा युक्त होकर आगे की आध्यात्मिक यात्रा हेतु तैयार हो जाता है। शरीर के रोग मुक्त होने के सिद्धयोग ध्यान के दौरान जो बाह्य लक्षण हैं उनमें योगिक क्रियाऐं जैसे दायें – बाएँ हिलना कम्पन, झुकना, लेटना, रोना, हंसना, सिर का तेजी से घूमना, ताली बजाना, हाथों एवं शरीर की अनियंत्रित गतियाँ, तेज रोशनी या रंग दिखाई देना या अन्य कोई आसन, बंध, मुद्रा या प्राणायाम की स्थिति आदि मुख्यतः होती हैं। साधक की कुण्डलिनी चेतन होकर सहस्त्रार में लय हो जाती है, इसी को मोक्ष कहा गया है। प्रश्न – ध्यान के दौरान कुन्डलिनी जागरण से शरीर अपने आप योगिक क्रियाएँ करता है? ये क्या है? कई बार दूसरे साधकों की योगिक क्रिया देख कर भय लगता है कि आगे क्या होगा? अपने आप नहीं रुकी तो क्या होगा ?
उत्तर – आरम्भ करने वाला कभी-कभी स्वैच्छिक होने वाली योगिक क्रियाओं से यह सोचकर साधक भयभीत हो जाता है कि या तो कुछ गलत हो गया है या फिर किसी अदृश्य शक्ति की पकड़ में आ गया है लेकिन यह भय निराधार है। वास्तव में यह योगिक क्रियायें या शारीरिक हलचलें गुरुदेव कि दिव्य शक्ति द्वारा नियंत्रित हैं और प्रत्येक साधक के लिये भिन्न-भिन्न होती हैं। ऐसा इस कारण होता है कि इस समय दिव्य शक्ति जो गुरू सियाग की आध्यात्मिक शक्ति के माध्यम से कार्य कर रही होती है वह यह भली भाँति जानती है कि साधक को शारीरिक एवं मानसिक रोगों से मुक्त करने के लिये क्या विशेष योगिक क्रियाएँ जैसे, आसन, बंध, प्राणायाम, मुद्रायें आवश्यक हैं। यह क्रियायें कोई भी हानि नहीं पहुँचाती | शरीर-शोधन के दौरान असाध्य रोगों सहित सभी तरह के शारीरिक एवं मानसिक रोगों से पूर्ण मुक्ति मिल जाती है यहां तक कि वंशानुगत रोग जैसे हीमोफिलिया से भी छुटकारा मिल जाता है। सभी तरह के नशे छूट जाते हैं। साधक बढा हुआ अन्तर्ज्ञान, भौतिक जगत के बाहर अस्तित्व के विभिन्न स्तरों को अनुभव करना, अनिश्चित काल तक का भूत व भविष्य देख सकने की क्षमता आदि प्राप्त कर सकता है। आत्मसाक्षात्कार होने के पश्चात आगे चल कर साधक को सत्यता का भान हो जाता है जो उसे कर्मबन्धनों से मुक्त करता है और इस प्रकार कर्मबन्धनों के कट जाने से दुःखों का ही अन्त हो जाता है। कुण्डलिनी के सहस्रार में पहुँचने पर साधक की आध्यात्मिक यात्रा पूर्ण हो जाती है। इस अवस्था पर पहुँचने पर साधक को स्वयं के ब्रह्म होने का पूर्ण एहसास हो जाता है इसे ही “मोक्ष” कहते हैं। फिर भी यदि कोई साधक इन क्रियाओं से अत्यधिक भयभीत है तो वह इन्हें रोकने हेतु गुरू सियाग से प्रार्थना कर सकता है | प्रार्थना करने पर क्रियायें रुक जायेंगी। वैसे आप ध्यान में बैठने से पहले जितनी देर के लिए गुरुदेव से ध्यान के समय की प्रार्थना करते हैं, ठीक उतने समय बाद वे योगिक क्रियायें भी अपने आप रुक जाती हैं |
प्रश्न – मैने कई संतों से व लोगों से सुना और पढ़ा है कि कुण्डलिनी का जागना अत्यन्त खतरनाक है; क्या यह सच है?
उत्तर – अगर हठ योग से या औषधि के प्रयोग से जगाने के प्रयास किये जाएँ तो खतरनाक हो सकता है | पर गुरु सियाग एक समर्थ गुरु हैं, कुण्डलिनी एक सिद्ध (समर्थ) गुरू, गुरू सियाग द्वारा जागृत की गई है। एकमात्र वे ही उसकी प्रगति का अवलोकन तथा नियंत्रण करते हैं। इस प्रकार यह पूर्णतः सुरक्षित है। कुन्डलिनी मातृशक्ति है एवं जिस प्रकार माँ कभी अपने बच्चे को नुकसान नहीं पंहुचाती उसी प्रकार मातृशक्ति कुन्डलिनी के लिए हम सब बच्चे कि तरह हैं, वह हमें कभी भी नुकसान नहीं पहुँचाएगी |
प्रश्न – गुरुदेव का ध्यान आज्ञा-चक्र पर करते हैं तो कुन्डलिनी जागरण से आज्ञा चक्र चेतन होता है | पर बाकी के चक्रों का क्या होगा?
उत्तर – पहले के युगों में साधना के अलग प्रकार थे, एवं हर चक्र को पार करने के लिए साधना करनी होती थी | इस कलियुग में गुरुदेव ने साधना को बहुत ही सरल बना दिया है | केवल ध्यान व नाम-जप से ही उद्धार हो रहा है | गुरुदेव आज्ञाचक्र पर ध्यान करने के लिए कहते हैं, इस प्रकार नीचे के चक्र ध्यान एवं नामजप से (गुरुदेव की शक्ति से) अपने आप चेतन होते जाते हैं, जिनकी चिंता आपको नहीं करनी है | कई बार आपको बहुत अच्छे विचित्र अनुभव होते हैं, या होने वाली घटनाओं का आभास होने लगता है, दूसरों के विचार जानने लगते हैं, आपका सोचा या बोला हुआ घटित होने लगता है | ऐसा विभिन्न चक्रों के चेतन होने से जुड़ी हुई सिद्धियों के कारण होता है पर आपको इनमें उलझना नहीं है, इनमें उलझने का लालच आगे की आध्यात्मिक यात्रा में रुकावट पैदा करता है | इन सिद्धियों के लालच में नहीं उलझना है | ये मार्ग में आने वाले चांदी, सोने, या हीरे के टुकड़ों के समान हैं जिनके लालच में उलझ कर आगे की यात्रा रुक जाती है |