गुरुदेव ने सेवानिवृत्ति की उम्र से लगभग 7 वर्ष पूर्व ऐच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। गुरुदेव ने बाद में टिप्पणी की “ मैं पहले रेलवे की नौकरी करता था अब मैं अपने गुरू की नौकरी करता हूँ यह जीवनभर की नौकरी है, जिसे मैं कभी नहीं छोड़ सकता। मैंने अपने परिवार की भौतिक आवश्यकताओं की चिन्ता पूर्ण रूप से उन पर छोड दी है। मैं अपने गुरू का वफादार नौकर हूँ, जो कुछ भी मैं इस मिशन में प्राप्त करूँ अथवा खोऊँ वह उनकी इच्छानुसार ही होगा ”। बाबा द्वारा गुरूदेव को अन्य लोगों को सिद्धयोग की दीक्षा देने के लिए निर्देश दिये गए। गुरुदेव ने आरम्भ में जोधपुर में तथा राजस्थान के कुछ अन्य शहरों में दीक्षा कार्यक्रमों के द्वारा लोगों को सिद्धयोग की शक्तिपात दीक्षा देनी आरम्भ की। जो गुरुदेव के पास आये और उनके शिष्य बन गये, उन्होंने अपने जीवन में एक आश्चर्यजनक धनात्मक परिवर्तन महसूस किया, उनकी बीमारियाँ/पुरानी व्याधियां ठीक हो गईं तथा इन कार्यक्रमों में गुरुदेव के द्वारा दिये गये दिव्य मंत्र के जाप तथा ध्यान से उन्होंने आध्यात्मिक जागरूकता महसूस की। गुरुदेव के अद्वितीय सिद्धयोग तथा आरोग्यकर शक्तियों की बात चारों ओर तेजी से फैली।
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