प्रश्न – गुरु सियाग जो दिव्य-मंत्र देते हैं वह किस प्रकार कार्य करता है? मन्त्र (नाम-जप) किस प्रकार परिवर्तन लाता है? ये मंत्र लेना क्यों जरूरी होता है? अगर मंत्र नहीं लिया है और किसी भी ईश्वरीय शक्ति का नाम-जप करके ध्यान करते हैं तो साधना में क्या अंतर पडेगा?
उत्तर – यदि आप केवल गुरुदेव का ध्यान करते हैं पर गुरुदेव का दिया मंत्र नहीं करते है तो आपकी समस्याओं का निदान या आध्यात्मिक विकास केवल ध्यान की अवधि के दौरान ही होगा | यानि प्रगति बहुत धीरे होगी | और अगर आपने गुरुदेव से मंत्र प्राप्त किया है एवं निरंतर मंत्र-जाप भी करते हैं तो प्रगति ध्यान के समय के अलावा मंत्र-जाप करते-करते भी होती रहेगी | प्रगति की रफ्तार बहुत तेज हो जायेगी | आप गुरुदेव की शक्ति से निरंतर सम्पर्क में रहेंगे | जिस प्रकार बिजली के स्विच से उपकरण तक तार जुड़ा होने से उपकरण चलता रहता है उसी प्रकार निरंतर नाम-जप आपके अंदर के विकास को लगातार आगे बढ़ाता है | एवं उस नाम-जप के कारण शक्ति, ध्यान के समय के अलावा भी लगातार आपके साथ कार्य करती रहती है इसलिए हर परेशानी का जल्दी समाधान होता है |
दुनियां के सभी धर्मों में कितनी भी विभिन्नताएं हों पर एक बात पर सभी एकमत हैं कि इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक दिव्य शब्द से हुई है। बाइबल भी कहती है कि स्रष्टि के आरम्भ में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था, शब्द ईश्वर था | वह शब्द ईश्वर के साथ आरम्भ हुआ था, हर वस्तु ‘उसके’ द्वारा बनाई गई थी और ‘उसके’ बिना कुछ भी बनाना सम्भव नहीं था जो कुछ भी बनाया गया था, ‘उसमें’ ही जीवन था वह जीवन ही इंसान का प्रकाश था।
इस बारे में श्री अरविंद ने लिखा है कि “भारत वर्ष में एसी विद्या विद्यमान है जिसका आधार है नाद तथा चेतना-स्तरों के अनुरूप स्पन्दन-विधि के भिन्न-भिन्न तरीके। हमारी चेतना के प्रत्येक केंद्र का एक आंतरिक लोकविशेष के साथ सीधा संबंध होने के कारण, कुछ मंत्रों का जाप करके मनुष्य उसी समानता के चेतना-स्तरों के साथ सम्बंध स्थापित कर सकता है। एक सम्पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान इसी बात पर आधारित है।
ये शब्द, जिनमे उस ईश्वरीय शक्ति से संबंध स्थापित करने की शक्ति रहती है, मंत्र कहलाती हैं। मात्र समर्थ गुरु द्वारा ही शिष्य को दिए मंत्र, सदा गोपनीय हैं। समर्थ गुरु अपने शिष्य को, चेतना के किसी विशेष स्तर के साथ, किसी विशेष शक्ति अथवा दिव्य सत्ता के साथ, सीधा सम्बंध स्थापित करने के लिए सहायता करने के उद्देश्य से, दिव्य मंत्र देते हैं। अनुभूति और सिद्धि की शक्ति इस मंत्र में ही विद्यमान रहती है – यह ऐसा मंत्र होता है जो हमें अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।“