गुरु सियाग योग

प्रश्न – मैने गुरू सियाग से मंत्र प्राप्त कर लिया है लेकिन मेरी पत्नी/पुत्र/पुत्री/माँ/पिता आदि ने नहीं। क्या मैं उन्हें मंत्र बता सकता हूँ?

उत्तर – बिलकुल नहीं, मंत्र प्राप्त करने की निम्न विधियों में से कोई भी विधि से मंत्र दिलवा सकते हैं. गुरुदेव से दिव्य-मंत्र प्राप्त करने के चार तरीके हैं-

  • टी.वी. द्वारा,
  • विडियो सीडी,
  • वीडियो-क्लिप ई-मेल द्वारा. (२ स्टेप-प्रोसेस)
  • ब्लूटूथ या whatsapp द्वारा
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प्रश्न – क्या इन सभी विधियों में मंत्र गुरुदेव द्वारा दिया जाता है?

उत्तर – जी हाँ! इन सभी विधियों में मंत्र गुरुदेव द्वारा ही दिया जाता है. ये गुरुदेव की आवाज़ है जो सुनने वाले के लिए कार्य करती है. गुरुदेव की आवाज़ एक एनलाईटण्ड (उपलब्ध हुआ) शरीर से आती है, इसलिए सुनने वाले के लिए कार्य करती है. किसी भी तरीके से मंत्र लें, मंत्र हमेशा सबके लिए एक ही रहेगा. लिखकर, या इशारे से किसी को भी मंत्र बताने का प्रयास ना करें जो दीक्षा के समय उपस्थित नहीं है.

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प्रश्न – क्या प्रत्येक मनुष्य के लिये मंत्र अलग-अलग है?

उत्तर – नहीं, प्रत्येक मनुष्य के लिये एक ही मंत्र है|

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प्रश्न – अगर मैं जानबूझ कर मंत्र किसी को बतला दूँ तो क्या होगा?

उत्तर – जानबूझकर गलती करने वाला सिद्धयोग की साधना से लाभ की आशा नहीं कर सकता। साथ ही जिसको आप मंत्र बतलाऐंगे उसका भी इस मंत्र से कोई भला नहीं होगा.

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प्रश्न – मन्त्र गुरुदेव कि आवाज़ में ही क्यों कार्य करता है? लिखा हुआ पड़ने से या किसी अन्य के बताने से कार्य क्यों नहीं करता?

उत्तर – गुरुदेव कि आवाज़ एक एनलाईटण्ड यानि उपलब्ध हुए या पूर्ण रूप से चेतन शरीर से आती है, इसलिए प्रभावी होती है. इसे आप एक उदाहरण से समझें – किसी राजा के राज्य की सीमा के बाहर एक महात्मा आया जो लोगों को “राम” नाम की दीक्षा देता था. मंत्री ने राजा को कहा कि – महाराज आप भी उस महात्मा से राम नाम का मन्त्र ले लें. तो राजा ने कहा कि राम नाम तुमने बता तो दिया अब, महात्मा के पास जाने क्या होगा? अचानक थोड़ी देर बाद मंत्री सैनिकों को राजा की और इशारा करके बोला कि – “इन्हें गिरफ्तार कर लो” पर कोई सैनिक नही हिला, मंत्री १० बार चिल्ला-चिल्ला कर बोला – “इन्हें गिरफ्तार कर लो” पर सैनिकों में से एक भी नही हिला. राजा को बहुत तेज गुस्सा आया और सैनिकों से मंत्री की ओर इशारा करके बोला कि – “इन्हें गिरफ्तार कर लो”, सैनिकों ने तुरंत मंत्री को गिरफ्तार कर लिया. मंत्री बोला – महाराज, “इन्हें गिरफ्तार कर लो” शब्द मैं १० बार बोला, चिल्ला-चिल्ला के बोला, पर एक भी सैनिक नहीं हिला. आपने एक ही बार बोला “इन्हें गिरफ्तार कर लो” सैनिकों ने तुरंत मुझे गिरफ्तार कर लिया. आपने कुछ अतिरिक्त नहीं बोला और मैने कुछ कम नहीं बोला तो फिर ऐसा अंतर क्यों? राजा बोला – क्यों कि समर्थ हूँ, मैं राजा हूँ. इसलिए मेरा बोला हुआ शब्द प्रभावी है. तो मंत्री बोला – महाराज, यही तो मैं कह रहा था कि आप भौतिक समर्थ हैं तो तुरंत एक्शन हुआ, इसी प्रकार राज्य की सीमा पर आया महात्मा अध्यात्मिक रूप से समर्थ है तो उसके मुँह से बोला हुआ राम कम करेगा, मेरे मुँह से सुनाया हुआ नहीं. राजा को तुरंत अपनी भूल का अहसास हो गया. इसी प्रकार गुरुदेव सियाग के मुख से सुना हुआ दिव्य-मन्त्र ही कार्य करता है. आप का बोला हुआ, लिख कर दिया हुआ मन्त्र प्रभावी नहीं होगा.

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प्रश्न – सुबह-शाम के ध्यान के अलावा बाकी समय इस साधना पद्धति का अधिकतम लाभ लेने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? या जब मैं ध्यान न कर रहा होऊँ तब मुझे क्या करना चाहिए?

उत्तर – आप गुरू सियाग द्वारा दिये गये मंत्र का जाप २४सों घन्टे (अर्थात अधिक से अधिक) करें। जाप इस रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ने की चाबी है। मंत्र-जप काम करते, खाते-पीते, घूमते-फिरते, नहाते-धोते, ड्राइविंग करते, फ्रेश होते, मतलब ३० सों दिन हर समय, कहीं भी किया जा सकता है. जितना ज्यादा मंत्र-जाप करेंगे उतना ही जल्दी आपकी समस्या का हल होगा. जब भी परेशानी आए, मंत्र-जाप तीव्र कर दें. आपके सोचने या चिंता करने से परेशानी का हल देर से निकलेगा एवं मंत्र-जाप से परेशानी बहुत जल्दी मिटेगी.

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प्रश्न – मंत्र-जाप कब तक करना होगा?

उत्तर – लगातार कुछ समय तक जपने के बाद यह अ-जपा जाप बन जाता है, यानि मंत्र बिना जपे अपने आप जपा जाता है. निर्भर करता है कि आप कितनी लगन से कर रहे हैं. उतना ही जल्दी अजपा शुरू हो जायेगा. आपको अजपा शुरू होने कि चिंता किये बिना पूरे मन से जाप करना है.

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प्रश्न – जब ध्यान कर रहा होऊँ मुझे दिमाग में क्या रखना चाहिए?

उत्तर – केवल दो चीजें, गुरू सियाग के चित्र पर ध्यान केन्द्रित करें तथा बिना जीभ या होठ हिलाए मंत्र का जाप करें, अगर आप दीक्षित नहीं है तो गुरु सियाग के चित्र के साथ किसी अन्य ईश्वरीय नाम का जाप करें।

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प्रश्न – गुरु सियाग एक दिव्य-मंत्र देते हैं वह किस प्रकार कार्य करता है? मन्त्र किस प्रकार परिवर्तन लाता है?

उत्तर – दुनियां के सभी धर्मों में कितनी भी विभिन्नताएं हों पर एक बात पर सभी एकमत हैं कि इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक दिव्य शब्द से हुई है। बाइबल भी कहती है कि- स्रष्टि के आरम्भ में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था, शब्द ईश्वर था. वह शब्द ईश्वर के साथ आरम्भ हुआ था, हर वस्तु ‘उसके’ द्वारा बनाई गई थी और ‘उसके’ बिना कुछ भी बनाना सम्भव नहीं था जो कुछ भी बनाया गया था. ‘उसमें’ ही जीवन था वह जीवन ही इंसान का प्रकाश था।

इस बारे में श्री अरविंद ने पुस्तक ‘चेतना कि अपूर्व यात्रा’ में लिखा है कि “भारत वर्ष में एक गुह्य विद्या विद्यमान है जिसका आधार है नाद तथा चेतना-स्तरों के अनुरूप स्पन्दन-विधि के भिन्न-भिन्न तरीके। उदाहरणतः यदि हम ‘ओम’ ध्वनि का उच्चारण करें तब हमें स्पष्ट अनुभव होता है कि वह मूर्धा के केन्द्रों को घेर लेती है। इसके विपरीत ‘रं’ ध्वनि नाभिकेंद्र को स्पर्श करती है। हमारी चेतना के प्रत्येक केंद्र का एक लोकविशेष के साथ सीधा संबंध होने के कारण, कुछ ध्वनियों का जप करके मनुष्य उनके समरूप चेतना-स्तरों के साथ सम्बंध स्थापित कर सकता है। एक सम्पूर्ण अध्यात्मिक अनुशासन इसी तथ्य पर आश्रित है। वह ‘तांत्रिक’ कहलाता है क्यों कि तंत्र नामक शास्त्र से उसकी उत्पत्ति हुई है। ये आधारभूत या मूल ध्वनियाँ, जिनमे संबंध स्थापित करने की शक्ति निहित रहती है, मंत्र कहलाती हैं। मात्र गुरु द्वारा ही शिष्य को उपदिष्ट ये मंत्र, सदा गोपनीय हैं। मंत्र बहुत तरह के होते हैं (चेतना के प्रत्येक स्तर की बहुत सी कोटियाँ हैं) और सर्वथा विपरीत लक्ष्यों के लिए इनका प्रयोग हो सकता है। कुछ विशिष्ट ध्वनियों के संमिश्रण द्वारा मनुष्य चेतना के निम्न स्तरों पर, बहुदा प्राण-स्तर पर, इनसे समरूप शक्तियों के साथ संपर्क जोड़कर, अनेक प्रकार की बड़ी ही विचित्र क्षमताएं प्राप्त कर सकता है – ऐसे मंत्र हैं जो घातक सिद्ध होते हैं (पांच मिनट के अंदर भयंकर वमन होने लगता है), ठीक-ठीक निशाना बनाकर वे शरीर के किसी भी भाग पर, किसी अंगविशेष पर प्रहार करते हैं, फिर रोग का उपशम करने वाले, आग लगा देने वाले, रक्षा करने वाले, मोहिनीशक्ति डाल वश में करने वाले भी मंत्र होते हैं। इस तरह का जादू-टोना या यह स्पंद-रसायन एकमात्र निम्न-स्पन्दों के सचेतन प्रयोग का परिणाम होता है। किन्तु एक उच्चतर जादू जो कि होता है स्पन्दों के ही व्यवहार द्वारा सिद्ध, किन्तु चेतना के ऊर्ध्व स्तरों पर – काव्य, संगीत, वेदों तथा उपनिषदों के आध्यात्मिक मंत्र अथवा वे सब मंत्र जिनका कोई गुरु अपने शिष्य को, चेतना के किसी विशेष स्तर के साथ, किसी विशेष शक्ति अथवा दिव्य सत्ता के साथ, सीधा सम्बंध स्थापित करने के लिए सहायता करने के उद्देश्य से, उपदेश करता है। अनुभूति और सिद्धि कि शक्ति स्वयं इस ध्वनि में ही विद्यमान रहती है – यह ऐसी ध्वनि होती है जो हमें अंतदृष्टि प्रदान करती है।“

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