प्रश्न – ध्यान के दौरान किन–किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर – इस विधि में गुरुदेव के चित्र को आज्ञाचक्र पर सोचकर दिए गए मंत्र का जाप करने से साधक की कुण्डलिनी शक्ति चेतन हो जाती है, एवं शरीर की आवश्यकतानुसार योगिक क्रियाएँ करवाती है, इस दौरान –
- शरीर को पूरी तरह से ढीला छोड दें, आँखें बन्द रखें, चित्र ध्यान में आये या न आये उसकी चिन्ता न करें। मन में आने वाले विचारों की चिन्ता न करते हुए मानसिक जाप करते रहें।
- कम्पन, झुकने, लेटने, रोने, हंसने, तेज रोशनी या रंग दिखाई देने या अन्य कोई आसन, बंध, मुद्रा या प्राणायाम की स्थिति बन सकती है, इससे घबरायें नहीं, इन्हें रोकने का प्रयास न करें। यह मातृशक्ति कुण्डलिनी शारीरिक रोगों को ठीक करने के लिये करवाती है।
- योगिक क्रियायें या अनुभूतियां न होने पर भी इसे बन्द न करें। रोजाना सुबह-शाम ध्यान करने से कुछ ही दिन बाद अनुभूतियां होना प्रारम्भ हो जायेंगी।
- ध्यान करते समय मंत्र का मानसिक जाप करें तथा जब ध्यान न कर रहे हों तब भी खाते-पीते, उठते-बैठते, नहाते धोते, पढ़ते-लिखते, कार्यालय आते जाते, गाड़ी चलाते अर्थात हर समय ज्यादा से ज्यादा उस मंत्र का मानसिक जाप करें। दैनिक अभ्यास में 15-15 मिनट का ध्यान सुबह-शाम करना चाहिये।
जब एक बार कोई व्यक्ति गुरू सियाग से जुड जाता है चाहे उसने मंत्र दीक्षा ली हो या फिर मात्र उनके फोटो से ध्यान की विधि द्वारा ध्यान किया हो, वह उनका शिष्य बन जाता है। दोनों ही सूक्ष्म धरातल पर गुरुदेव से जुड जाते हैं। समय या दूरी चाहे कितनी भी अलग हो उनका आध्यात्मिक सम्बन्ध सूक्ष्म तथा मजबूत बना रहता है। यह दिव्य अनुभूति गुरू सियाग के प्रति पूर्ण समर्पण द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है भेंट- पैसे द्वारा, चालाकी, छल, कपट या दिखावे द्वारा नहीं।
प्रश्न – मैं जब ध्यान करता हूँ, तब गुरुदेव का फोटो नहीं देख पाता| इससे मैं ध्यान में चिंतित हो जाता हूँ और फिर ध्यान नहीं लगता| क्या करू?
उत्तर – जिस प्रकार आप किसी के भी बारे में सोचते हैं उसी प्रकार गुरुदेव का फोटो भी सोचिये | आरम्भ में गुरुदेव का फोटो देखकर ध्यान एवं मंत्र जाप आरम्भ करें, फिर फोटो हट भी जाये तो चिंता ना करें पर मंत्र जाप लगातार करते रहें | अगर मंत्र जाप लगातार चल रहा है तो कई बार आपको ध्यान में भूत-भविष्य की घटनाएँ, या आपकी परेशानियों के हल भी दिख सकते हैं | इसलिए आप फोटो की चिंता ना करते हुए मंत्र जाप सघनता से करते रहें |
प्रश्न – गुरु सियाग के ध्यान के समय क्या-क्या अनुभव हो सकते हैं?
उत्तर – बहुत से साधक स्वतः होने वाली योगिक क्रियायें या शारीरिक हलचल महसूस करते हैं जैसे कम्पन, हिलना डुलना, आगे या पीछे की ओर झुकना, इधर से उधर सिर का हिलाना, पेट का आगे की ओर फूलना या अन्दर की ओर पिचकना, हाथों की अनियमित गति, फर्श पर दण्डवत् लेट जाना, ताली बजाना, हंसना, रोना चिल्लाना आदि।
कई बार ध्यान के दौरान ऐसे हाव-भाव बनते हैं जैसे ईश्वर की आराधना कर रहे हों, कुछ को दिव्य तेज प्रकाश दिखलाई पडता है या सुगन्ध आती है अथवा ध्वनि या नाद सुनाई देता है। ऐसे दृश्य दिखलाई पडते हैं जो या तो पूर्व में घट चुके हैं या भविष्य में वह घटनायें घटित होंगीं।
ध्यान के दौरान बहुत से साधकों को अत्यधिक खुशी एवं उल्लास का अनुभव होता है जो उन्होंने इससे पूर्व पहले कभी अनुभव नहीं किया होता है। कईयों को शरीर के विभिन्न हिस्सों में कम्पन्न (वाइब्रेशन्स) महसूस होते हैं |
इस योग में ध्यान का प्रभाव भिन्न-भिन्न व्यक्तियों पर अलग-अलग होता है कुछ साधकों को ध्यान में गुरुदेव सियाग अथवा अन्य कोई दिव्य सत्ता की तस्वीर दिखलाई पडती है। साधक जैसे-जैसे ध्यान के रास्ते पर आगे बढता जाता है वैसे-वैसे धीरे-धीरे खुमारी एवं समाधि जैसी अवस्था आती जाती है। ब्रह्माण्ड में हमारे चारों ओर जो सूक्ष्म शक्तियाँ कार्यशील होती हैं उन्हें इस अवस्था में साधक ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अनुभव किया जाना महसूस करना आरम्भ कर देता है। यहाँ वह स्थिति पैदा होने लगती है जिसे योगाचार्य श्री अरविन्द ने ‘चेतना की अपूर्व यात्रा‘ कहा है।
प्रश्न – गुरु सियाग सिद्धयोग में ध्यान के समय अलग-अलग अनुभव क्यों होते हैं?
उत्तर साधक इन योगिक क्रियाओं को न इच्छानुसार कर सकता है न नियंत्रित कर सकता है और न रोक ही सकता है। यह क्रियाएँ हर साधक के लिए उसके शरीर की आवश्यकतानुसार अलग-अलग होती हैं | ऐसा इस कारण होता है कि यह दिव्य शक्ति जो गुरु सियाग की आध्यात्मिक शक्ति के नियंत्रण में कार्य कर रही होती है | वह यह अच्छी तरह से जानती है कि साधक को शारीरिक एवं मानसिक रोगों से छुटकारा दिलाने एवं उसे आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढाने के लिये कौनसी विशेष मुद्रायें / क्रियायें आवश्यक हैं। इस कारण सिद्धयोग में योगिक मुद्रायें, अन्य योग संस्थाओ में इच्छानुसार वांछित प्रभाव लाने के लिये किसी क्रम विशेष में व्यवस्थित विधि द्वारा कराई जाने वाली योगिक क्रियाओं के अनुसार नहीं होती हैं।
गहरा ध्यान न सिर्फ मस्तिष्क तथा शरीर का शुद्धीकरण करता है बल्कि चेतना के नवीन विस्तार खोलता है। साधक यह महसूस करने लगता है कि हमारे भौतिक अस्तित्व के बाहर, अस्तित्व के अनेक स्तर हैं यद्यपि हम इन्हें महसूस नहीं करते हैं लेकिन यह चेतना के सूक्ष्म धरातल पर विभिन्न तरीकों से हमसे टकराते हैं। बहुत से मामलों में साधक के शरीर तथा मस्तिष्क पर सिद्धयोग का स्पष्ट और स्पर्श करने योग्य प्रभाव दिखाई पड़ता है | एक दीक्षित व्यक्ति जैसे-जैसे सिद्धयोग के मार्ग पर आगे बढ़ता है शीघ्र ही वह महसूस करता है कि तनाव दूर हुआ है, ध्यान केंद्रित करने की शक्ति बढी है तथा विचार अधिक धनात्मक हुए हैं। ध्यान की अवस्था में बहुत से साधकों को विभिन्न योगिक मुद्रायें तथा क्रियायें स्वतः होती हैं।
सिद्धयोग में लोगों को समूह में ध्यान करते देखकर एक निरीक्षणकर्ता यह देखकर अचम्भित हो जाता है कि भाग लेने वाले लगभग प्रत्येक व्यक्ति की योगिक मुद्रायें भिन्न-भिन्न हैं। बहुत से साधक ध्यान के दौरान उमंग एवं खुशी अनुभव करते हैं जो उन्होंने पहले कभी भी महसूस नहीं की होती है |
प्रश्न – ध्यान के समय कुछ लोग बहुत जोर से चीखते हैं, क्यों?
उत्तर – इसके कई कारण हो सकते हैं,
- व्यक्ति को गले की समस्या हो सकती है |
- प्राणायाम का एक प्रकार हो सकता है, कुण्डलिनी जोर से चीख निकलवाकर शरीर के किसी हिस्से को ठीक कर रही होती है |
- कई लोग परिस्तिथियोंवश अपनी भावनाओं को दबाकर रखते हैं, जो ध्यान के समय अपने आप प्रकट होती हैं| इनमे से कई लोग बाद मे बताते हैं कि उन्हें बहुत हल्कापन महसूस हो रहा है|
- कुछ लोग बताते हैं कि उनके अंदर कोई ऊपरी हवा (बुरी शक्ति, भूत- प्रेत या आत्मा) होती है जो गुरुदेव के सामने ध्यान करते समय परेशान करती है क्यों कि उसे उस व्यक्ति का शरीर छोड़ना पड़ता है | इसको इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि- कुछ किरायेदार बड़ी शांति से रहते हैं, पर जब उन्हें मकान खाली करने के लिए कहा जाता है तो वे कोई न कोई उपद्रव मचाते हैं एवं आसानी से मकान खाली नहीं करते | इसी प्रकार ये ऊपरी शक्तियाँ आराम से शरीरों के माध्यम से अपनी इच्छाएँ पूरी करती रहती हैं | पर गुरुदेव या गुरुदेव के फोटो के सामने उन्हें वो शरीर छोड़ कर जाना होता है, तो वे उपद्रव मचाती हैं उस संघर्ष एवं विरोध के कारण चीख-चिल्लाहट होती है | इस बात को इस तरह भी समझा जा सकता है कि कई बार व्यक्ति ऐसा व्यवहार कर जाता है जो उसे स्वयं समझ में नहीं आता कि उसने ऐसा क्यों किया एवं वो उसके लिए बाद में पछताता भी है | कई बार अचानक क्रोध में आकर गलत निर्णय ले लेता है, फिर कहता है पता नही मुझे क्या हो गया था? तो ये कई बार उस व्यक्ति में प्रविष्ट ऊपरी ताकतों के कारण होता है |
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प्रश्न – क्या मैं किसी और के लिये भी ध्यान कर सकता हूँ?
उत्तर – हाँ, आप उस व्यक्ति के लिये ध्यान कर सकते हैं जो आपके दिल के बहुत करीब हो, जिसके बारे में आप बहुत चिन्ता करते हों, अगर वह किसी कारणवश ध्यान करने योग्य न हो, उदाहरणार्थ – एक बच्चा, एक बेहोश व्यक्ति और कोई व्यक्ति जो किसी कारण ध्यान न कर पा रहा हो। यदि परिवार में कोई ध्यान नहीं करता है तो आपके नियमित ध्यान करने से कुछ समय बाद वो व्यक्ति भी अपने आप ध्यान आरम्भ कर देगा |
प्रश्न – मैं मांस खाता हूँ व शराब पीता हूँ, अगर मैं किसी वस्तु का आदी हूँ जैसे सिगरेट, ड्रग्स, तम्बाकू इत्यादि तो क्या ध्यान के लिए कोई बंधन है? ध्यान आरम्भ करने से पहले क्या मुझे इनका सेवन छोड़ना होगा? तभी ध्यान कर सकता हूँ?
उत्तर – नहीं, कुण्डलिनी शक्ति जो सिद्धयोग से जागृत होती है वह अच्छी तरह जानती है कि आप के शरीर को क्या चाहिए और क्या नहीं चाहिए? वह बिना किसी प्रयास के (केवल इच्छा करने से) आपको उस वस्तु से दूर कर देती है जो आप के शरीर के लिये हानिकारक है| संक्षेप में, आपको वस्तुओं को छोड़ने की आवश्यकता नहीं है, वस्तुऐं आपको छोड़कर चली जायेंगी। जितना ज्यादा एवं समर्पण से नाम-जप करेंगे उतनी ही जल्दी नशे छूट जायेंगे |
आप बिना चिंता किये कुछ भी खाने-पीने के लिए स्वतंत्र हैं | आप बस पूरे मन से नाम-जप व ध्यान करते रहें | गुरुदेव कहते हैं नाम व नशा साथ नहीं चलेगा | ईश्वरीय शक्ति किसी प्रकार का बंधन नहीं लगाती | इस ध्यान में शक्ति होगी तो गलत चीजें अपने आप छोड़ जाएँगी |
इसे इस प्रकार समझा जा सकता है कि सूरज, हवा, पानी, बादल, फूल आदि प्राकृतिक चीजे कभी कोई बंधन नहीं लगाती | आप चाहे मांस खाएं, शराब पीएं, अच्छा-बुरा करें, फिर भी सूरज, हवा, पानी, बादल, फूल आदि आपको किसी भी चीज से वंचित नहीं करते तो फिर ईश्वरीय शक्ति आप पर बंधन क्यों लगायेगी? इसलिए गुरुदेव भी आप पर किसी भी बात का बंधन नहीं लगाते | महिलाएं भी इस ध्यान को महीने के तीसों दिन कर सकती हैं |
प्रश्न – क्या ध्यान का एक खास या उपयुक्त समय है?
उत्तर – नहीं, ध्यान आप किसी भी समय, जो आपको सुविधाजनक हो, कर सकते हैं। फिर भी सुबह-शाम का समय गुरुदेव के द्वारा बताया जाता है |
प्रश्न – मुझे ध्यान कितनी देर तक करना है?
उत्तर – आरम्भ करने वालों के लिये, गुरू सियाग १५ मिनट के ध्यान की राय देते हैं। अगर आप आरामदायक महसूस करते हैं तो आप धीरे-धीरे ध्यान के समय की सीमा बढ़ा सकते हैं। ठण्ड के समय या ठन्डे प्रदेशों में ध्यान ३० मिनट तक किया जा सकता है |
प्रश्न – एक दिन में मुझे कितनी बार ध्यान करना चाहिए?
उत्तर – कोई निश्चित संख्या नहीं है। फिर भी गुरूदेव एक दिन में कम से कम दो बार सुबह-शाम ध्यान करने की राय देते हैं। ठंडे प्रदेशों में ध्यान अधिक समय तक या दो बार से अधिक भी किया जा सकता है |
प्रश्न – क्या हमें ध्यान पर बैठने से पहले अलार्म लगाना चाहिए?
उत्तर – नहीं, ध्यान पर बैठने से पहले मन ही मन १५ मिनट या जितने समय के लिये आप ध्यान करना चाहते हैं, उतने समय के लिये गुरुदेव से अपनी शरण में लेने हेतु प्रार्थना करें । आपका ध्यान स्वतः ही उतने समय बाद हट जायेगा। अगर ध्यान जल्दी हटे या देर तक लगे रहे तो भी चिंता नहीं करनी चाहिए |
प्रश्न – अगर कोई बात अचानक मेरा ध्यान खींचना चाहती है तो क्या मैं ध्यान के मध्य में उठ सकता हूँ?
उत्तर – हाँ आप उठ सकते हैं, अपना कार्य समाप्त करें और तब पुनः ध्यान के लिये बैठ सकते हैं |
प्रश्न – क्या मैं खाने के बाद ध्यान कर सकता हूँ? खा पीकर करने से क्या नुकसान है?
उत्तर – तत्काल नहीं, ३-४ घन्टे गुजर जाने दें तब ध्यान करें। यथा-सम्भव भरे पेट ध्यान न करें। कई बार ध्यान के समय यदि प्राणायाम होने लगे या शीर्षासन लगे तो भरा पेट बहुत असुविधाजनक हो जायेगा |
प्रश्न – गुरु सियाग का ध्यान करने हेतु मैं कहां बैठ सकता हूँ?
उत्तर – कहीं भी, वैसे तो आपको फर्श पर बैठ कर ध्यान करना चाहिये, लेकिन आप परिस्थिति के अनुसार कुर्सी के ऊपर, सोफे, या बिस्तर पर बैठकर भी ध्यान कर सकते हैं। आरम्भ में हो सके तो कोई सहारा ना लें | कई बार ध्यान के समय सिर या शरीर पीछे की तरफ जाना चाहता है, तो इस मूवमेंट में कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए | कई लोगों के अनुभव हैं कि जब वे सहारा लेकर बैठ कर ध्यान करते थे तो सिर में भारीपन आ जाता था | आपका शरीर चारों ओर से मूवमेंट के लिए स्वतंत्र होना चाहिए | इसलिए सामूहिक ध्यान के समय लोगों को अलग-अलग दूरी पर बैठने के लिए कहा जाता है |
प्रश्न – गुरुदेव का ध्यान करने के लिए किस दिशा की ओर मुँह करके बैठें?
उत्तर – किसी भी दिशा की ओर, जो आपको सुविधाजनक हो। ऐसा कोई बंधन नहीं है | ईश्वरीय शक्ति हर दिशा में विद्यमान है |
प्रश्न – गुरुदेव के ध्यान के लिये क्या एकान्त में बैठना आवश्यक है?
उत्तर – आरम्भ में एकांत हो तो अच्छा है, पर आवश्यक नहीं | कुछ समय बाद आप कहीं पर भी ध्यान कर पाएंगे | आरम्भ में ध्यान करने वालों के लिये अपने ध्यान को गुरू सियाग के फोटो पर केन्द्रित करने में कठिनाई होती है साधक जिस स्थान पर बैठकर ध्यान करता है उस स्थान के बाहर यदि वाहनों के हॉर्न की आवाज आती है या पास ही कहीं जोर से गानों की आवाज आ रही है या रेडियो, टीवी, जोर से चल रहा है, या पडोस में मशीनों के चलने की घरघराहट हो रही है या जोर से कोई बोल रहा है अथवा तेज हवा चलने से खिडकी दरवाजे आवाज कर रहे हैं या फिर छत पर जोर से बारिश होने की आवाज हो रही है, तो इन सब बातों से ध्यान करने वाले व्यक्ति को ध्यान करने में व्यवधान होता है। इससे भी ज्यादा व्यवधान दिमाग में तेजी से चलने वाले विचारों से होता है। फिर भी, साधक को धैर्यपूर्वक ध्यान करते रहना चाहिए। शीघ्र ही वह महसूस करेगा कि उसको ध्यान केन्द्रित करने में तेजी से सफलता मिल रही है एवं बाहरी ध्वनियाँ व विचार ध्यान में अब उतने बाधक नहीं हैं।
प्रश्न – क्या मैं दूसरे व्यक्तियों के साथ एक समूह में ध्यान कर सकता हूँ?
उत्तर – जी हाँ। पर गैप बनाकर बैठना चाहिए | ताकि योगिक क्रिया होने पर कोई किसी से भी व्यवधान ना हो | सामूहिक ध्यान का ये फायदा भी है कि ध्यान के पश्चात साधक अपने अनुभव एक दूसरे के साथ बाँट सकते हैं | किसी के भी अनुभव अन्य के उत्साह वर्धन के लिए आवश्यक हो सकते हैं |
प्रश्न – गुरुदेव का ध्यान करने योग्य होने के लिये क्या उम्र होनी चाहिए?
उत्तर – कोई भी ५ वर्ष या इससे ज्यादा का ध्यान कर सकता है। इसका मतलब है बालक, युवा, अधेड़ उम्र या बुजुर्ग ध्यान कर सकते हैं।
प्रश्न – घर पर ध्यान करने के लिये क्या मुझे एक खास तरह के कपडे पहनने होंगे?
उत्तर – नहीं, जब ध्यान करें आप जो भी चाहें पहन सकते हैं।