स्वामी विवेकानन्द को पढ़ा तो गुरुदेव ने गुरू की तलाश आरम्भ की। उन्हें ध्यान के दौरान जामसर (एक छोटा सा गाँव जो बीकानेर से 27 कि.मी. दूर है) में स्थित आश्रम को देखने की उत्कट इच्छा हुई और अप्रैल 1983 में वह जामसर आश्रम गये | कुछ दिनों बाद उन्हें बाबा का पवित्र स्थान देखने की पुनः इच्छा हुई, अप्रैल 1983 में बाबा से यह उनकी दूसरी मुलाकात थी जब गुरुदेव झुके तथा बाबा के चरणस्पर्श किये तब बाबा ने गुरुदेव केसरपर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। जिस क्षण बाबा ने गुरुदेव को स्पर्श किया उन्होंने विद्युत गुजरने जैसी अत्यधिक तीव्र तरंगें शरीर में महसूस की। सिद्धयोग की अद्वितीय विधि द्वारा यह बाबा का गुरुदेव को दीक्षित करने का तरीका था। गुरुदेव शीघ्र ही आश्रम से वापस लौट आये, कुछ भी शब्दों का आदान प्रदान नहीं हुआ। तब गुरुदेव ने माना कि उन्हें जिस गुरू की तलाश थी वह मिल चुका था, तथा उनका जीवन एकबार फिर से बदल चुका था।
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