प्रश्न – हम नए साधक हैं एवं अपने एरिया में आश्रम बनाना चाहते है, तो जानना चाहते हैं कि आश्रम बनने पर क्या-क्या समस्याएं आ सकती हैं?
उत्तर – इस बात का निर्णय आप गुरुदेव द्वारा बताई गयी बात से स्वयम करें | गुरुदेव से USA में किसी साधक द्वारा पूछ गया था कि अमेरिका में आश्रम बनाने का कार्य कब से आरम्भ होगा? तो गुरुदेव ने कहा कि – तुम लोग मुझे पत्थर के ढांचों में बांधने की कोशिश मत करो, मेरा आश्रम तो मेरे हर शिष्य के ह्रदय में है | और जिन लोगों ने आश्रम बना दिए हैं, तो मैं जब तक हूँ तभी तक इन आश्रम में लोग आ रहे हैं, मेरे बाद तो इनमे कौए बोलेंगे और ये आश्रम के नाम पर बनाये गए ये ढांचे शादी पार्टी कार्यक्रमों में काम आयेंगे | या इसका ज्यादा अच्छा उत्तर आप पहले से बने हुए आश्रमों में जाकर पता कर सकते हैं| फिर भी कुछ बाते जो जानकारी में आती हैं –
• आश्रम किसी एक ही व्यक्ति की या कुछ व्यक्तियों की इच्छाओं का केन्द्र बन जाता है|
• व्यक्ति पूर्ण रूप से न्यूट्रल नहीं हो पाता, एवं आश्रम के नाम पर गलत परिपाटियां आरम्भ हो जाती हैं|
• प्रभावशाली व्यक्ति के आसपास के चंद लोग ही आश्रम की व्यवस्थाओं को स्वयं की इच्छा से संचालित करना आरम्भ कर देते हैं|
• औपचारिक मीटिंग्स करके पूर्व निर्धारित निर्णय कर लिए जाते हैं, नए साधक या आर्थिक रुप से कमजोर साधक, झेंप के कारण कुछ बोल नहीं पाते हैं|
• ऐसा भी सम्भव है कि कुछ व्यक्ति आश्रम को केवल रहने का स्थान बना लें| फिर ये कौन तय करेगा कि कौन आश्रम में रहेगा और कौन नहीं रहेगा?
• आश्रम बनवाने के कार्य में भाग लेने वाले व्यक्ति कुछ समय बाद खुद को ही आश्रम का मालिक मान कर आने वाले नए साधकों से अनुचित व्यवहार करने लगते हैं|
• अन्य संस्थाओं के आश्रम की तरह, शक्ति परीक्षण के केन्द्र बन जाते हैं| एक प्रकार का ग्रुपिज्म (समूहवाद) आरम्भ हो जाता है|
• नया आने वाला साधक आश्रम कि हर गतिविधि को गुरुदेव से आज्ञा प्राप्त मानता है| जो नए साधक को भ्रमित कर देती है क्यों कि वो मनमानी के कार्य गुरुदेव के आदेश को बता कर किये जाते हैं |
• गुरुदेव कहते हैं कि किसी भी प्रकार के कर्मकांड में उलझने की जरूरत नहीं है सिर्फ नाम जाप व ध्यान करना है, पर आश्रम में रहने वाले व्यक्ति विशेष की इच्छाओं से कई प्रकार की कर्मकांडीय घटनाएं आरम्भ हो जाती हैं |
• उस आश्रम के मठाधीश की इच्छानुसार आश्रम में आरती, दिया, हवन, नारियल, माला, खडाऊ पूजन आदि आरम्भ हो जाता है जो कि गुरुदेव द्वारा बताये गए मार्ग के विपरीत है एवं आने वाले नए साधक को गुमराह करता है |
• कई बार ऐसे स्थानों पर गुरुदेव के नाम पर लोकेट, फोटो, पेन, या विभिन्न प्रकार के सामान बिकना आरम्भ हो जाते है, जिनका उद्देश्य केवल आश्रम को चलाने के नाम पर धन लाभ अर्जित करना होता है |
• कई बार प्रभावशाली व्यक्ति गुरुदेव की आज्ञा के नाम से नए आने वाले साधकों को गुमराह कर देते हैं, नया आदमी आध्यात्मिक डर से उलझ कर रह जाता है |
• आश्रम में होने वाली मीटिंग्स गुरु चर्चा या आध्यात्मिक अनुभवों के आदान-प्रदान के बजाय चंदा कलेक्शन के विभिन्न तरीकों तक सीमित होकर रह जाती हैं |
• उस आश्रम को चलाने के लिए हर माह पैसे की आवश्यकता होगी, जिस कारण चंदा एकत्रित करना मजबूरी बन जायेगा| ज्यादा अच्छा होगा कि हर महीने आश्रम को चलाने के लिए दिया जाने वाला चंदा प्रचार कार्यों में काम लिया जाये |
• आश्रम बनने में लाखों रूपये खर्च होते हैं, इस बजट से कई स्थानों पर गुरुदेव के दर्शन को बहुत अच्छी तरह से फैलाया जा सकता है |
• आपको आश्रम बनाता देखकर किसी भी नए शहर में जुड़ने वाले नए लोग भी प्रचार की कम और आश्रम बनाने के लिए चंदा एकत्रित करने की चिंता ज्यादा करने लगेंगे |
• अगर आप गुरुदेव का आश्रम, मंदिर या समाधी स्थल बनाने का प्रयास करेंगे तो गुरुदेव द्वारा बताई गयी मूल साधना से भटक कर उस स्थान को चढ़ावा एवं अन्धविश्वास का केंद्र बना देंगे |
एक पत्रकार द्वारा गुरुदेव से पूछा गया था कि एक तरफ तो आप आश्रम बनाये जाने के समर्थन में नहीं हैं फिर भी राजस्थान में आपके कई स्थानों पर आश्रम बने हुए हैं? इसका क्या कारण है?
इसका गुरुदेव द्वारा दिया गया उत्तर – बहुत वर्षों पूर्व जब मेने दीक्षा देने का कार्य शुरू ही किया था तब मेरे एक मित्र ने मुझे कहा कि अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं व्यक्तिगत लोगों से नहीं बल्कि संस्थाओं या ट्रस्ट के माध्यम से बात करती हैं | इस वजह से मेने मेरी ट्रस्ट बनाई, फिर शिष्यों ने कहा कि ट्रस्ट का कोई ऑफिस होना चाहिए तब जोधपुर आश्रम की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य केवल प्रचार प्रसार ही है |”
अतः हम समझ सकते हैं कि किसी भी आश्रम का उद्देश्य केवल और केवल गुरुदेव के कार्य का प्रचार प्रसार ही होना चाहिए, ना कि धन कमाने का केंद्र, या विभिन्न सामान बेच कर व्यवसाय करना, या दूसरों को नियन्त्रण में लेने का प्रयास करना या मठाधीश बनके मनमानी करना या परिवारवाद को बढ़ावा देना या चमचागिरी एवं महत्वाकांक्षां को बढ़ावा देना |
• ज्यादा उचित होगा कि आप अपने शहर में खूब प्रचार करें; आपका मुख्य कार्य गुरुदेव के कार्य को लोगों के बीच फैलाना है न कि आश्रम खड़ा करना | आश्रम खड़ा करने में लग जाएंगे तो प्रचार कार्य करने के बजाय केवल चंदा मांगने का कार्य मुख्य हो जायेगा| लोग जुड़ने के बजाय दूर जाने लगेंगे, सोचेंगे कि पहले तो ये गुरु के बारे में सब कुछ फ्री है कहकर बताते हैं और फिर रसीद कटवाने कि बात करने लगते हैं या नई रसीद बुक थमा देते हैं |
• जब बहुत सारे लोग जुड़ जायेंगेतो हर कॉलोनी में कोई न कोई घर केंद्र के रूप में उपयोग आएगा |
• यदि आप बिना जनसमूह जोड़े आश्रम आरम्भ कर देंगे तो नए लोग कैसे जोडेंगे? जिसके पास भी जायेंगे, गुरुदेव के बारे में बताते हुए भी अंदर से चलता रहेगा कि पता नहीं कितना चंदा देगा? या पैसे लेने कि बात कैसे आरम्भ करें?
• वैसे भी आप सोचें कि – अवतार या भगवान या किसी भी प्राकृतिक शक्ति के कार्य आश्रमों से नहीं चलते| इनके कार्य मानव मात्र के हृदय में स्थित गुरुदेव के आश्रम से होते हैं|
• वैसे भी गुरुदेव की साधना पद्धति में आश्रम हर व्यक्ति के हृदय में होना चाहिए| एक बार साधना की विधि बताने के बाद हर व्यक्ति को अपने घर पर रहते हुए साधना करनी होती है| बिना आश्रम के भी व्यक्ति निरंतर व्यक्तियों को जोड़ना आरम्भ रख सकता है|