कुण्डलिनी जागरण के दौरान होने वाले आन्तरिक बदलाव के बारे में पोस्ट में बताया गया था, यदि आपको कोई योगिक क्रिया भी नहीं हो रही है, ना ही कोई दिव्य अनुभव आ रहे हैं और ना ही कोई बदलाव व्यवहार, व्यक्तित्व या रोज़मर्रा की जिंदगी में आ रहा है तो ये सोचने का विषय है कि गलती कहाँ हो रही है? यहाँ उन कारणों को जानने की कोशिश करेंगे जो कुण्डलिनी जागरण में या साधना में बाधा डालते है | कुछ ऐसे कारण को डिस्कस करेंगे |
गलत अभ्यास : कई लोग अनजाने में मंत्र का गलत उच्चारण करते हैं या मानसिक जाप के बजाय बोल के जपते हैं | सही उच्चारण एवं ध्वनी मन्त्र में सामर्थ्य देती है | यदि एक शब्द भी गलत है तो मंत्र का प्रभाव नहीं होगा | यदि आपको मंत्र के उच्चारण में कोई शंका हो तो अपना ई-मेल या whatsapp नंबर बताये, आपको मंत्र के सही उच्चारण की ऑडियो या विडियो क्लिप भेज दी जाएगी | उसी प्रकार गुरु सियाग योग के ध्यान का तरीका भी सही प्रकार से पता होना चहिये | यदि आपको ध्यान की विधी का सही तरीका जानना हो तो वो भी आपको भेज दिया जायेगा |
नियमित साधना न करना : गुरु सियाग दो बार सुबह शाम 15 मिनट का ध्यान एवं अधिकतम मन्त्र जाप के लिए कहते हैं | कई साधक दोनों में से किसी एक को छोड़ देते हैं, या 15 मिनट का ध्यान नहीं करते हैं, या ध्यान एक ही समय करते हैं या मंत्र जाप नहीं करते | मंत्र जाप केवल ध्यान के समय करते है एवं बाकी समय मंत्र जाप नहीं करते | गुरुदेव कहते हैं कि मंत्र जाप कुण्डलिनी जागरण की चाबी है | यदि आप पर्याप्त मंत्र जाप नहीं करेंगे तो साधना के परिणाम जल्दी नहीं आयेंगे | उसी प्रकार ध्यान में भी लापरवाही परिणाम नहीं लाएगी |
अपने आप को धोखे में रखना : इस साधना विधि में स्वयं से ईमानदारी और स्पष्ट होना बहुत जरुरी है | अधिकतर साधक ये स्वीकार नहीं करते हैं कि वे साधना के प्रति नियमित नहीं हैं तथा वे GSY की साधना विधि में कमी खोजने लगते हैं | या सब कुछ गुरुदेव की इच्छा पर डालने लगते हैं | ये बहुत हानिकारक व्यवहार है, इसका मतलब ये भी है कि साधक विकास के लिए स्वयम की जिम्मदारी लेने के बजाय सब चीजों की जिम्मेदारी गुरुदेव या योग विधि पर डाल कर स्वयं को मुक्त रखना चाहता है | ऐसे साधक पूरी तरह भरोसा या डिवोशन दिखाए बिना इधर उधर भटकते हैं |
पूर्व ज्ञान की अधिकता : कई व्यक्ति अपने पूर्व ज्ञान योग दर्शन, तंत्र विज्ञान, अन्य ध्यान तकनीके, चक्र, या अन्य प्रचलित विधियों के ज्ञान से भरे हुए होते हैं, और उस ज्ञान को गुरुदेव की साधना से जोड़ने का असफल प्रयास करते हैं | पिछले भौतिक ज्ञान से गुरु सियाग की विधि को बदलने की कोशिश करते हैं | इस कारण उन व्यक्तियों के लिए इस साधना व भोतिक ज्ञान के कारण काफी बड़ा गैप हो जाता है और वो गुरु सियाग की विधि से भटक जाते हैं | वो कुछ विशेष अनुभवों को छांट कर चुन लेते हैं या अपने बनाये गोल सेट कर लेते हैं और उसी पूर्व ज्ञान के अनुसार परिणाम पाने की इच्छा रखते हैं | फिर उस पूर्व निर्धारित परिणाम प्राप्त नहीं होने पर शंकालु हो जाते हैं एवं साधना के कारण होने वाले परिणामों को महसूस नहीं कर पाते | और साधना की विधी में दोष तलाश करने लगते हैं | इस प्रकार के व्यक्तियों के लिए गुरदेव का कहना है कि – इस प्रकार के लोगों ने योग को बहुत उलझा हुआ एवं कठिन बना दिया है | जबकि ये बहुत ही आसन एवं सीधा है | लोग पूर्व ज्ञान के चक्कर में अपने को ही उलझा कर रखते हैं |