गुरुदेव के कई नए शिष्यों को एक समस्या आती है कि उनका खुद का ध्यान अच्छा लग रहा है पर जब वे किसी नए व्यक्ति को इस दर्शन के बारे में बताते हैं तो कोई उनकी बात को गंभीर रूप से नहीं लेता | इस कारण वे हताश हो जाते हैं | कुछ के परिवार में तो घर के सदस्य ही उनकी बात नहीं मानते जैसे – किसी के माता–पिता, या उनके पति, या उनकी पत्नी, या उनके बच्चे आदि | नए शिष्यों को लगता है कि जब घर वाले ही मानते तो बाहर वाले क्यों मानेगे ? नए लोग, दर्शन बताने वाले साधक को ही उल्टे–सीधे प्रश्न पूछ कर कन्फ्यूज़ कर देते हैं | नये साधकों के पास एसा कोई अनुभव नहीं होता जिसका वे ठोस रूप में प्रत्यक्ष उदाहरण दे सकें |
तो इस बारे में एक उदाहरण लिया जाये कि PMT की परीक्षा पास करते ही कोई डॉ नहीं बन जाता | उसके लिए कई वर्ष मेहनत करनी पड़ती है | मेडिकल का प्रथम वर्ष का विद्यार्थी मेडिकल की टर्म्स समझने लगता है परन्तु हॉस्पिटल में बैठकर इलाज नहीं कर सकता या मरीजों के ऑपरेशन नहीं कर सकता | उसी प्रकार ड्राइविंग सीखते ही हाईवे पर ड्राइविंग में भी रिस्क बहुत है, ड्राइविंग की जा सकती है पर एक्सीडेंट के चांस भी उतने ही ज्यादा होंगे | उसी प्रकार कुछ नए साधकों को भी आरम्भ में किसी नए इन्सान को समझाना मुश्किल लग सकता है|
वैसे तो कोई भी साधक किसी भी समय से, किसी भी प्रकार से गुरुदेव के दर्शन का प्रचार करने के लिए स्वतंत्र है पर प्रचार करने में परेशानी आने की स्थिति में नए साधक को प्रचार कार्य शुरू करने से पहले कुछ समय तक सघन साधना करनी चाहिए | साधना से उसमे स्वयं में जो बदलाव आयेंगे उससे न केवल नए व्यक्ति, बल्कि पारिवारिक सदस्य भी होने वाले पोजिटिव बदलावों से प्रभावित होकर साधना आरम्भ कर देंगे | गुरुदेव का कथन है कि साधना से होने वाले परिवर्तन स्वयं को तो क्या दुनियां को भी पता लगेंगे | लेकिन ये बदलाव कितने समय में दूसरों को महसूस होते हैं ये पूरी तरह से आपकी साधना व् समर्पण पर निर्भर हैं | जब तक आप अन्दर से पूरे तैयार नहीं हैं तब तक नये व्यक्ति को इतना कहा जा सकता है कि मैंने ये साधना (मंत्र व् ध्यान) अभी नया आरम्भ किया है एवं कुछ अच्छा महसूस किया है, कई लोगों को अत्यधिक फायदे हुए हैं, मैं भी प्रयासरत हूँ आप भी कोशिश करकर देख लीजिये |