प्रश्न – अधिकांश साधक गुरु सियाग योग करने से होने वाले फायदों को दूसरों के साथ शेयर करना चाहते हैं | कुछ अपने घरों पर छोटे – छोटे ध्यान कार्यक्रम रखते है | कुछ चाहते हैं कि गुरुदेव के प्रोग्राम बड़े स्तर पर किये जाएँ ताकि गुरु सियाग योग का फायदा अधिक लोगों को मिल सके | लेकिन इस प्रकार के कार्यक्रमों के लिए धन की आवश्यकता होती है | तो उनको समझ नहीं आता की इस प्रकार के प्रोग्राम कैसे मेनेज किये जाएँ ? और धन व्यवस्था हेतु उनके दिमाग में चंदा कलेक्शन ही आता है | इस स्थिति में क्या किया जाये?
उत्तर – इसमें कई बातें ध्यान में रखी जा सकती हैं –
गुरुदेव ने एक बार कुछ शिष्यों को प्रचार के लिए जाने से पहले कहा था कि तुम लोग जब मेरे मिशन को फ़ैलाने के लिए कार्य करते हो (गुरुदेव ने अपने कुर्ते की पॉकेट की तरफ इशारा करते हुए कहा) तो पैसे की चिंता कभी मत करना, एक रूपये का काम हो या एक करोड़ का, तुम्हारा काम कभी नहीं रुकेगा | यानि हम सब साधकों को ये बात अच्छी तरह समझ आ जानी चाहिए कि गुरु कार्य करने के लिए केवल गुरुदेव की कृपा चाहिए, बाकी सारी व्यवस्थाएं अपने आप होंगी |
इस बात को गुरुदेव हमेशा स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देकर समझाते हैं:- स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने, स्वामी विवेकानंद को विश्व-धर्म सम्मेलन में हिन्दू धर्म की जानकारी देने के लिए अमेरिका जाने का आदेश दिया | स्वामी विवेकानंद की आर्थिक परिस्थिति कमजोर थी, उनके पास अमेरिका जाने के पैसे नहीं थे | लेकिन स्वामी जी ने किसी से कुछ नहीं कहा | गुरुदेव से प्रर्थना करते रहे | अचानक एक राजा जो उनके गुरु परमहंस के शिष्य थे, अपने आप सामने आये, उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद के समुद्री मार्ग द्वारा यात्रा की व्यवस्था वो ही करेंगे | इस प्रकार स्वामी जी अमेरिका पहुँच गए | राजा ने केवल यात्रा की व्यवस्था की|
स्वामीजी के अमेरिका पहुचने के बाद स्वामीजी को रहने – खाने की चिंता हुई, क्यों कि वहां पर उनका कोई भी परिचय नहीं था| गुरु से प्रार्थना करते रहे, क्यों कि वो भारतीय पोषक में थे, जो वहां के लोगों के लिए विचित्र थी, अचानक एक महिला ने उत्सुकतावश उनसे पूछा कि आप कहाँ से आये हो? एवं क्या करने आये हो – तब स्वामीजी ने अपना परिचय देकर अपने गुरु का आदेश बताया | विवेकानंदजी की बातों से प्रभावित होकर, वो महिला स्वामीजी को आग्रह करके अपने घर ले गयी | इस प्रकार स्वामीजी पर उनके गुरुदेव की कृपा से अमेरिका में रहने की व्यवस्था केवल प्रार्थना से अपने आप हो गयी |
गुरुदेव द्वारा बताई गयी इस घटना से सिद्ध होता है कि गुरु की कृपा, शिष्य की हर प्रकार से मदद करती है, खास तौर से जब शिष्य गुरु कार्य कर रहा हो एवं उसमे उसका कोई भी व्यक्तिगत हित न हो|
गुरदेव के कुछ शिष्यों ने गुरुदेव का बड़ा प्रोग्राम करने का तय किया था, तो कुछ शिष्यों ने कहा कि कुछ धनी गुरुभाइयों से सम्पर्क कर (टेंट, लाइट, प्रचार सामग्री, पानी, गुरुभाइयों के रुकने का स्थान, भोजन व्यवस्था, प्रचार वाहन, आदि आदि) पैसे की व्यवस्था करनी पड़ेगी| भौतिक रूसे बात भी सही है, पर कुछ अन्य शिष्यों ने कहा कि जैसा गुरुदेव ने विवेकानंद के बारे सुनाया है उस आधार पर कार्य शुरू करें | पैसे की चिंता पहले से क्यूँ करें? तो अंततः तय हुआ कि कार्य शुरू किया जाये, देखें गुरु की कृपा कैसे कार्य करती है, तब उस नए शहर में लोगों से मुलाकात आरम्भ होते ही, प्रोग्राम का उद्देश्य जानकर बिलकुल नए लोग सामने आने लगे | संक्षिप्त में – एक नया व्यक्ति सामने आया और बोला कि मेरा टेंट-लाइट का काम है वो मेरी तरफ से रहेगा, आप लोग फ्री कार्य कर रहे हो तो मुझे भी गुरु सेवा का मौका मिलना चाहिए | उसका कोई मित्र बोला कि मेरे पास प्रचार के लिए वाहन है, कोई सामने आया मेरे फार्म हाउस में आप सबके रुकने की व्यवस्था रहेगी, तो अन्य बोला कि आप सब लोग रुके वहां हो तो भोजन व्यवस्था मेरी तरफ से रहेगी | किसी ने उस प्रोग्राम के लिए जगह की परमिशन दिलवाई, आदि आदि | अब देखिये गुरुदेव के पूरे प्रोग्राम की व्यवस्था अपने आप हुई | किसी से कुछ मांगना नहीं पड़ा | व्यवस्थाये आगे होकर अपने आप आयीं |
अब आपको क्या लगता है कि ये सब पैसे के बल पर हुआ ? जी नहीं, ये गुरुदेव की अहेतुकी कृपा के बल पर हुआ, उस आध्यात्मिक ताकत ने जिस प्रकार स्वामी विवेकानंदजी के लिए व्यवस्थाएं की, उसी प्रकार गुरुदेव के कार्य के लिए व्यवस्थाये अपने आप हुई | हम सभी को गुरुदेव का कार्य करने के लिए अपने आप को यन्त्र मानना चाहिए | हमें सच्चे मन से कार्य करने की इच्छा करनी है और अपने आप को उस कार्य के लिए प्रस्तुत करना है| कोई सोचे कि गुरुदेव का कार्य केवल धनी लोगों से ही चलता है या गरीब लोग गुरु कार्य के लिए धनी लोगों पर निर्भर हैं, एसा नहीं है, या चंदा कलेक्शन किये बिना गुरुकार्य संभव नहीं है | गुरुदेव में भरोसा रखने वाले लोगों को ये सोच बदलनी चाहिए | ये सारे कार्य गुरुदेव की आध्यात्मिक शक्ति द्वारा होते हैं, ना कि चंदा कलेक्शन द्वारा |
गुरु सियाग योग पूर्णतः फ्री है, इसलिए दुनिया का हर नया व्यक्ति इस कारण से जरूर प्रभावित होता है| लेकिन कुछ समय बाद ही, कुछ गुरुभाई किसी न किसी सहयोग के नाम से उससे चंदा मांगने लगते हैं जो इस मिशन के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है| गुरुदेव इस मिशन में कार्य करने वालों से कभी भी पैसा नहीं मांगते| यही आपको भी करना है | अगर कोई गुरुभाई स्वेच्छा से आपसी सहयोग में कार्य करना चाहे तो ये उनका निजी मामला है | आपको पता होना चाहिए कि अगर आपने गुरुदेव का कोई कार्य हाथ में ले रखा है तो वह बिना मांगे पूरा होगा |
अगर आपने कोई प्रचार कार्य या निर्माण कार्य स्वयं की इच्छा से निर्धारित किया है तो उसे पूरा करने के लिए किसी से भी पैसा नहीं मांगे| ऐसा करना इस संस्था को एवं गुरु सियाग योग को अन्य संस्थाओं की श्रेणी में खड़ा कर देता है| जिसमे कुछ प्रभावशाली या अवसरवादी लोग स्वयं की इच्छा से योजनायें बनाकर, उन्हें फलीभूत करने के लिए दूसरों से चंदा मांग-मांग कर उन्हें शर्मिंदा करना (या मानसिक रूप से दबाब डालना) आरम्भ कर देते हैं| अगर कार्य आपने हाथ में लिया है तो ये भरोसा रखें कि गुरुदेव कि कृपा उसे अवश्य पूर्ण करेगी | आपके द्वारा मांगी गयी आर्थिक मदद किसी को भी असमंजस में डाल देती है |
कई बार कुछ साधक मिलकर कोई भी प्रोग्राम तय कर लेते हैं और उस कार्य को करने के लिए दुसरे साधकों से कलेक्शन मांगना शुरू कर देते हैं | अन्य साधक या नए साधक धर्मसंकट में फंस जाते हैं, और पैसा देने के लिए मना करना ख़राब लगता है | हो सकता है वो साधक अपनी हैसियत के हिसाब से गुरुकार्य कर रहा हो | पर प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा पैसे मांगे जाने पर उसे मना करना मानसिक अशांति का कारण बन जाता है | गुरुदेव का प्रचार के लिए हमेशा कहना रहा है कि “जितनी चादर हो उतने पैर फैलाओ”, प्रचार के लिए शक्ति मदद के कई रास्ते बिना मांगे निकलेगी | चंदा मांग – मांग के प्रचार किया तो फिर अन्य गुरुओं और गुरु सियाग के शिष्यों में अंतर ही क्या रहा ?
कई बार कोई साधक हो सकता है कि 100 रूपये आश्रम में देने के बजाय श्रद्धानुसार पैम्फलेट छपवाना चाहे, तो उससे आश्रम के नाम से चंदा मांगना उचित प्रतीत नहीं होता | आपके या किसी प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा मांगने पर देना उस साधक की मजबूरी जैसी हो जाती है | अगर गुरु सियाग के शिष्य / साधक भी रसीद बुक लेकर चंदा कलेक्शन करने जैसे कार्य में लिप्त हो जायेंगे तो ये गुरुदेव के मूल दर्शन के खिलाफ है जिसमे उन्होंने कहा कि इस ज्ञान को पाने के लिए अगरबत्ती की सींक भी नहीं लगी, ये पूर्णतः फ्री है | तो फिर इस गुरु सियाग योग साधना के मार्ग में किसी भी प्रकार का कलेक्शन (किसी से पैसे मांगना) बिलकुल ही गलत परम्परा है |
कई साधक ग्रुप में कार्य करने के बजाय स्वयं के हिसाब से प्रचार कार्य में लगे रहते हैं | इसलिए भी साथ नहीं आते | क्यों कि सबका कार्य करने का अपना अपना तरीका होता है | ज्यादा उचित होगा कि आप अपने शहर में खूब प्रचार करें; आपका मुख्य काम गुरुदेव के कार्य को लोगों के बीच फैलाना है | चंदा कलेक्शन में लग जाएंगे तो प्रचार कार्य करने के बजाय केवल चंदा मांगने का कार्य मुख्य हो जायेगा| लोग जुड़ने के बजाय दूर जाने लगेंगे, सोचेंगे कि पहले तो ये गुरु के बारे में सब कुछ “फ्री है, फ्री है” ,कहकर बताते हैं और फिर रसीद कटवाने की बात करने लगते हैं या नई रसीद बुक थमा देते हैं | फिर आप नए लोग कैसे जोड़ेंगे ? जिसके पास भी जायेंगे, गुरुदेव के बारे में बताते हुए भी अंदर से चलता रहेगा कि पता नहीं कितना चंदा देगा? या पैसे लेने कि बात कैसे आरम्भ करें | ज्यादा उचित होगा कि जो भी कार्य योजना बनायें, उसे स्वयं की क्षमताओं के आधार पर करें | उस कार्य के बारे में सबको सूचित कर दें परन्तु पैसा कलेक्शन का भाव रख कर नहीं | अन्यथा उस कार्य का उद्देश्य पूर्ण नहीं होगा |
चंदा कलेक्शन का एक और नुकसान होता है कि, नया साधक देखता है कि पुराने साधक भी अगर पैसे के बल पर या चंदे के बल पर गुरु कार्य कर रहे हैं तो गुरु सियाग योग में उन नए लोगों को अध्यात्मिक शक्ति का महत्व कभी भी समझ नहीं आएगा और कोई भी विवेकानंद की भांति गुरु पर भरोसा करते हुए कार्य नहीं कर पायेगा|