प्रश्न – हमने देखा है कि कई लोगों को गुरुदेव की इस साधना से बहुत जल्दी फायदा होता है, हमें ऐसा फायदा क्यों नहीं होता? हम पूजा-पाठ व अन्य कर्म-कांड करने के साथ-साथ गुरुदेव की साधना भी पूरे मन से कर रहे हैं | कृपया स्पष्ट उत्तर दें |
उत्तर – आप मनन करेंगे तो पायेंगे कि जितना प्रतिशत या भाग आप गुरुदेव के अलावा दूसरी पद्धतियों या पूजा-पाठ में उलझे हुए हैं उतने ही भाग के बराबर आपकी श्रद्धा बंटी होने के कारण फायदा धीरे या कम होगा | अगर आप दो में बँट जायेगे तो फ़ायदा भी आधी गति से होगा | गुरुदेव कहते हैं कि आप लोग ध्यान व नाम-जप के अलावा बाकी सब मेरे पर छोड़ दो और कुछ करने को नहीं कहते | तो आप स्वयं मनन करें कि आप क्या कर रहे हैं? पुराने साधकों के अनुभवों के आधार पर आप स्वयं निष्कर्ष निकालें कि आपको वांछित परिणाम धीरे, कम क्यों मिल रहे हैं?
एक ही प्रकार की बीमारी के 3 साधकों ने अपने अनुभव बताए | पहले ने कहा कि मैं 2 साल से गुरुदेव का नियमित ध्यान करता हूँ फिर घर के मंदिर में पूजा करता हूँ | मेरी बीमारी 2 साल में, 20 प्रतिशत ठीक हुई है | दूसरे साधक नें बताया कि मैं एक साल से गुरुदेव का नियमित ध्यान करता हूँ, और कोई खास पूजा तो नहीं करता पर सबको अगरबत्ती लगा लेता हूँ, मेरी बीमारी एक साल में 50 प्रतिशत ठीक हुई है |
तीसरे साधक ने बताया कि – मैं 3 महीने से गुरुदेव का नियमित ध्यान कर रहा हूँ एवं मेरी बीमारी में 3 महीने में 90 प्रतिशत आराम आ गया है | उसने पूजा-पाठ के बारे में पूछने पर बताया कि – अगर उन चीजों (पुरानी पद्धतियों) से अगर फायदा हो रहा होता तो गुरुदेव की साधना करने की जरूरत ही क्या थी? फिर तो उन्हीं सब कर्म-कांड में उलझे रहना ज्यादा अच्छा था | अब तो मैं सब कुछ छोड़कर सारे भगवान व पूजा-पाठ इन्हीं गुरुदेव में देखता हूँ | सब कुछ अच्छे-बुरे की चिंता इन्हीं गुरुदेव पर छोड़ दी है | गुरुदेव ने पूजा-पाठ बंद करने के लिए नहीं कहा, तो ये भी नहीं कहा कि करो | अब तक जो भी पूजा पाठ किया उसमें कोई बुराई नहीं है क्यूँ कि गुरुदेव का कहना है कि निर्गुण निराकार तक पहुँचने के लिए सगुण साकार (मूर्ति पूजा पाठ) का मार्ग भी आता है।
अब आप स्वयं निर्णय करें कि उपरोक्त तीनों साधकों को अलग-अलग परिणाम क्यों मिल रहे हैं? जिसकी जितनी श्रद्धा बँटी हुई है उसी अनुसार परिणाम आ रहे हैं | आपको आपके प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा | गुरु के प्रति जितना समर्पण उतना ही परिणाम | आप ये भी ध्यान रखें कि जब कोई कार्य नहीं करना हो तो उसके लिए एक नहीं दस बहाने बनाये जा सकते हैं और कार्य करना हो तो केवल इच्छा ही बहुत है | इसी प्रकार किसी भी पुराने कर्म-कांड या आडम्बर को निरंतर जारी रखने के लिए एक नहीं, बीस बहाने बनाए जा सकते हैं, और इन्हें छोड़ना हो तो केवल गुरुदेव का ध्यान एवं नाम-जप की एकमात्र इच्छा ही बहुत है |