गुरुदेव कहते हैं “ये एसा नहीं है कि मैं तुम में कुछ बाहर से प्रवेश कराऊंगा, ये दीक्षा तो योग मार्ग में नाथ मत की देन है | ये शक्तिपात दीक्षा कहलाती है | साधरणतया लोग मानते है कि शक्तिपात का मतलब, बाहर से कोई शक्ति प्रवेश कराना | साधारण शब्दों में कहा जाये तो ये इस प्रकार है कि – एक जलते हुए दीपक से दूसरा दीपक जलाना | तुम एक बिना जले दीपक हो जिसमे तेल – बाती सब कुछ है, बस तुमको एक दुसरे दीपक की जरूरत है जो तुम्हारे दीपक को जला दे | जब तुम एक जलते हुए दीपक के सम्पर्क में आओगे तो खुद भी दूसरों के लिए प्रकाश के स्रोत्र बन जाओगे | ये मेरा शक्तिपात देने का तरीका है |
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