शक्तिपात शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है – शक्ति (फीमेल डिवाइन ऊर्जा) एवं पात (ऊर्जा प्रवाह) | एक प्रकार से शक्तिपात का अर्थ है – फीमेल डिवाइन ऊर्जा का एक व्यक्ति से दूसरे में प्रवाह | लेकिन गुरु सियाग योग में शक्तिपात शब्द का अर्थ थोड़ा बदल जाता है, क्यों कि वैदिक ज्ञान के आधार पर यह फीमेल डिवाइन ऊर्जा मानव मात्र में उपस्थित है, पर इस युग में यह ऊर्जा सुषुप्तावस्था में है | इसलिए गुरु सियाग योग में फीमेल डिवाइन ऊर्जा का एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवाह जैसी बात नहीं है |
गुरु सियाग योग में शक्तिपात ऐसा तरीका है जिसमें सिद्धगुरु (समर्थ गुरु) साधक की सोई हुई फीमेल डिवाइन ऊर्जा (जिसे कुंडलिनी शक्ति कहते हैं) को जागृत करते हैं | जिसके पश्चात साधक को गुरु सियाग योग में दीक्षित शिष्य कहा जाता है | इसलिए गुरुदेव कहते भी हैं कि वे कुछ लेते-देते नहीं है, वे केवल उस सोई हुई कुन्डलिनी शक्ति को जागृत करने का तरीका बताते हैं |
इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि गुरु सियाग के रूप में एक एनलाईटण्ड दीपक, दूसरे दीपक को जला देता है | जैसे कि हमारे पास दीपक, तेल, बत्ती तो है पर लौ नहीं है, हम बुझा हुआ दीपक हैं, तो समर्थ गुरु द्वारा शक्तिपात दीक्षा से हमारा बुझा हुआ दीपक जल उठता है अर्थात गुरु सियाग की कृपा से हमारी सोई हुई कुन्डलिनी शक्ति जागृत हो जाती है एवं साधक का आध्यात्मिक उत्थान आरम्भ हो जाता है |
सिद्धगुरु निम्न 4 विधियों में से किसी भी विधि से साधक की कुन्डलिनी शक्ति को जागृत कर देते हैं |
- शरीर छूकर – सिद्धगुरु साधक के शरीर को छूकर उसकी कुन्डलिनी शक्ति को जागृत कर देते हैं | जैसे गुरु साधक के सिर पर हाथ रखकर या माथे पर छूकर सोई हुई शक्ति को जागृत कर देते हैं | ग्रन्थ महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गले लगाकर, उसकी सोई हुई शक्ति को चेतन कर दिया था | पुराणों के अनुसार कृष्ण ने अपने शंख से बालक ध्रुव के गाल को छूकर उसे चेतन कर दिया था |
- दृष्टि से – गुरु किसी किसी भी साधक को चेतन करने की इच्छा से, साधक की आँखों में झांककर उसकी कुन्डलिनी शक्ति को चेतन कर देते हैं | दृष्टि द्वारा शक्तिपात से चेतन करने के कई उदाहरण ग्रंथों में मिलते हैं |
- दिव्य-मंत्र द्वारा – इस विधि में गुरु साधक को एक दिव्य मंत्र देते हैं, उस मंत्र को, साधक को मन ही मन दोहराना होता है | यह मंत्र गुरु की शक्ति द्वारा चेतन किया हुआ होता है, इस कारण मंत्र को दिव्य-मंत्र कहा जाता है | इस दिव्य मंत्र की शक्ति से साधक की सोई हुई कुन्डलिनी शक्ति चेतन होना आरम्भ हो जाती है |
- साधक की संकल्प शक्ति से – यद्यपि इसके उदाहरण बहुत कम हैं पर इस विधि में साधक दीक्षा के लिए गुरु के पास नहीं जाता है | साधक दृढ इच्छा शक्ति द्वारा गुरु से ले लेता है (एक प्रकार से जबरदस्ती) और गुरु बैठा देखता रह जाता है | शिष्य के संकल्प की शक्ति गुरु तक पंहुच जाती है और बिना गुरु के पास जाये शिष्य दीक्षित हो जाता है | पर ये इतना आसान नहीं है, ये तभी सम्भव होता जब शिष्य पूर्ण रूप से अपने अहं का त्याग कर गुरु के प्रति समर्पित हो जाता है | ग्रन्थ महाभारत में एकलव्य इसका उदाहरण है, जिसने गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर ही उनसे ज्ञान प्राप्त कर लिया था | एक प्रकार से एकलव्य ने गुरु द्रोण की इच्छा के बिना ही उनसे ज्ञान प्राप्त कर लिया था |
गुरु सियाग प्रत्यक्ष रूप में साधकों को दिव्य मंत्र देकर गुरु सियाग योग में दीक्षित करते हैं | ये मंत्र गुरुदेव के सामने उपस्थित रहकर, टी.वी द्वारा, सी.डी द्वारा, या ई-मेल द्वारा या whatsapp पर भी प्राप्त किया जा सकता है | पर हर प्रकार में आवाज़ गुरुदेव की ही कार्य करेगी |