गुरूदेव ने स्वप्न में एक दृश्य देखा। दृश्य में उन्हें पुस्तक का एक अंश दिखलाया गया जिसे वह संदेह के साथ जान सके कि वह किसी पवित्र पुस्तक का हो सकता था, एक आकाशीय शब्दों के साथ “तू वही है, तू वही है”। कुछ दिनों के पश्चात् गुरुदेव के छोटे पुत्र राजेन्द्र जब स्कूल से घर आ रहे थे तो सड़क के किनारे एक मोची की दुकान से एक फटी पुरानी पुस्तक ले आये, जिसे उन्होंने गुरुदेव को दे दिया। जैसे ही गुरुदेव ने उस पुस्तक के पन्नों को पलटा, उन्होंने उसके एक पृष्ठ पर वह अंश देखा, जो उन्हें स्वप्न में दिखाया गया था अगले कुछ दिनों तक गुरुदेव ने उस किताब को बार-बार पढ़ा लेकिन उनको कुछ समझ नहीं आया| उनको केवल इतना ही समझ आया कि वह किताब बच्चो के लिए थी और चित्रों के माध्यम से ईसाई धर्म को बहुत सरल शब्दों में समझाया जा रहा था| दो वर्ष बाद उन्होंने पहली बार गुरू गंगाईनाथ जी की समाधि पर जाकर प्रार्थना की।
बीकानेर में गुरुदेव ने आसपास के लोगों से पूछा कि क्या ईसाई धर्म में कोई पवित्र ग्रन्थ होता है जैसे हिन्दुओं में “गीता” होती है। तब उन्हें बाइबल के बारे में पता चला। उन्हें बतलाया गया कि किताब के जो अंश उन्होंने दृश्य में देखे थे वह पवित्र पुस्तक के हैं तथा वह अंश सेन्ट जॉहन द्वारा लिखित बाइबल में ईसामसीह के सुसमाचार का एक हिस्सा हैं और स्वप्न में जो उन्होंने देखा था वह अध्याय 15-26-27 तथा 16-7-15 थे। फिर हिन्दू धर्म मानने के कारण गुरुदेव ने सोचा कि बाइबल का और आगे अनुसरण करना असंगत है और उस विषय में रुचि समाप्त कर दी। आन्तरिक संदेश व आवाज शीघ्र ही वापस लौटी, गुरुदेव से मूल अंग्रेजी में बाइबल को पढने की बार बार माँग हुई। एक मित्र जो स्थानीय लॉ कॉलेज में व्याख्याता था उससे बाइबल की एक प्रति उधार ली। अंग्रेजी की बाइबल पढना कोई मददगार साबित नहीं हुआ, पुस्तक का वह अंश जो उन्होंने स्वप्न में देखा था किताब में नहीं मिला। पूछताछ करने पर जो जानकारी मिली उससे वह आश्चर्यचकित हुए। ईसाइयत बहुत से भागों में बंटी हुई थी, उनमें से दो मुख्य कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेन्ट हैं, जबकि जो बाइबल उन्होंने पहले पढी थी वह कैथोलिक्स की थी तथा प्रोटेस्टेन्ट द्वारा जो अपनाई गई है वह सेन्ट जॉहन द्वारा लिखित है तथा जो अंश उन्होंने स्वप्न में देखे थे वह उस पुस्तक के थे।