प्रश्न: ध्यान नहीं लगता, मन में बहुत विचार आते हैं, या जब ध्यान में बैठते हैं तो मन में ऐसे ऐसे विचार आते हैं जो रूटीन में नहीं आते लेकिन ध्यान के समय आते हैं |
उत्तर: इस बात के लिए कई उत्तर हैं, सबसे पहले जरुरत है इस बात को याद रखने की, कि गुरुदेव ने आपको क्या कहा है? दो बार का ध्यान एवं अधिकतम नाम जप | ध्यान के लिए गुरुदेव ने कहा है कि ध्यान में गुरुदेव का फोटो या दादागुरदेव का फोटो सोचिये एवं मन ही मन मानसिक जाप करिए | इसके अलावा गुरुदेव ने ये नहीं कहा कि ये कुछ स्थिर करना है, कुछ रोकने का प्रयास करना है | तो पहला उतर तो यहीं मिल जाता है कि बिना इस बात की चिंता किये की विचार आते हैं या नहीं आते हैं, ये सोचना अपना काम ही नहीं है | अपने को तो सुबह शाम दो बार ध्यान करना है आँखे बन्द करके | जो भी होता है होने दो |
पर आप बोलते हैं कि विचार तो रुकने चाहिए, अब इसका उत्तर देखिये – जब आप ध्यान करते हैं तो क्या कान को सुनने से रोक सकते हैं? नहीं रोक सकते | नाक का काम क्या है? सूंघना, उस समय कोई महक आयेगी तो क्या नाक को सूंघने से रोक सकते हैं ? नहीं रोक सकते | तो उसी प्रकार मन का काम क्या है? सोचना | तो ये किसने बोला कि मन के विचारों को रोकना है, जब कान को सुनने से नहीं रोक रहे, नाक को सूघने से नहीं रोक रहे तो बिचारे मन ने क्या बिगाड़ा है जो केवल उसे सोचने से रोकना चाहते हो ? मन को अपना सोचने का काम करने दो |
अब रहा सवाल कि गुरुदेव का फोटो हट जाता है एवं मन विचारों में चला जाता है, आपको लगता है कि ध्यान नहीं लग रहा | अब आप कहते हैं कि मन में विचार आ रहे हैं, ध्यान के समय में ऐसे ऐसे विचार आते हैं जो नार्मल टाइम में नहीं आते | तो अब ये किस बात का संकेत है? इसके लिए आप छोटे छोटे 2 – 3 उदाहरणों पर गौर कीजिये | ऐसे विचार आना जो रूटीन में नहीं आते यानि अपना मन कहीं अन्दर से ऐसे विचार निकाल के ला रहा है जो सामान्य रूप से नहीं आते | अब इसे एक उदहारण से समझने का प्रयास करते हैं | आप समुद्र में किसी बहुत बड़े बर्फ के टुकड़े को तैरता हुआ देखें | उसका 10% या 15% हिस्सा तो ऊपर दीखता है और बाक़ी पानी में डूबा हुआ रहता है | अब बर्फ का टुकड़ा पानी पर तैर रहा है, तो ऊपर के दीखता हुआ हिस्सा अन्दर पानी में ढूबे हुए वाले को तैरा रहा है या अंदर पानी में डूबे हुए हिस्से के कारण ऊपर का हिस्सा गतिमान है | किसकी वजह से कौन तैर रहा है ? निश्चित रूप से डूबे हुए हिस्से की गति से ऊपर दीखता हुआ गतिमान हो रहा है क्यों कि 90% पानी में डूबा हुआ जिधर जायेगा, ऊपर का हिस्सा भी उसी तरफ गतिमान होगा | यानी अन्दर के डूबे हुए हिस्से की वजह से ऊपर वाले की गति हो रही है |
उसी प्रकार अपने दिमाग में 90% हिस्सा अचेतन एवं 10% चेतन होता है | विज्ञान भी कहता है कि हम अपने दिमाग का 10% भाग का ही उपयोग करते हैं बाकी 90% अचेतन रहता है | तो अपने सारे व्यवहार किस्से नियंत्रित हो रहे है? उस अचेतन मन में भरी हुई चीजों से | इसीलिए कई बार हम घटना घटित होने के बाद कहते हैं कि पता नहीं एसा क्या हो गया, कि मुझसे एसा कैसे हो गया ? मेरे ना चाहते हुए भी मेरे मुहं से एसा क्यों निकल गया ? मैं एसा बोलना चाहता था / चाहती थी, पर अनचाहे एसा बोलना निकल गया, आदि आदि | तो ये अनियंत्रित विचार कहाँ से आये? वो उस अचेतन मन में से आये जिनके ऊपर अपना नियन्त्रण नहीं है | तो अब इस बात को याद रखियेगा कि अपना नियन्त्रण केवल 10% मन पर है | 90% विचारों पर अपना नियन्त्रण नहीं है |
अब आप इसी से जुड़े हुए एक और उदाहरण पर गौर करिए | आप ट्रेन में अपने साथी के साथ बैठे हुए बातचीत कर रहे है, आपके आस पास वाले भी अपनी अपनी बातचीत में लगे हैं | कुछ समय बाद आपसे पूछा जाये कि आपके आस पास वाले क्या बातें कर रहे थे? तो आप कहेंगे कि वो तो पता नहीं कि क्या बात कर रहे थे पर बातें जरुर कर रहे थे | आपसे कहा जाये कि आपके कानों में उनकी बातों की आवाज़ नहीं आ रही थी ? आप कहेंगे कि आवाज़ भी आ रही थी | फिर आपसे पूछा जाये की जब आवाज़ भी आ रही थी तो बातें क्यों नहीं बता पा रहे हैं ? तो आप कहेंगे की चूँकि हम खुद उस समय आपस में बातें कर रहे थे इसलिए नहीं बता पा रहे | यानि जब आप स्वयं बातें कर रहे हैं तो दूसरों की आवाज़ आ रही पर बातें नहीं सुन पा रहे | अब इसी सीन में आप बिना बात किये चुप चाप बैठे हुए हैं, फिर कुछ समय बाद आपसे पूछा जाये कि आसपास वाले क्या बात कर रहे थे ? आप तुरंत बता पाएंगे जैसे सामने वाला मकान की बातें, या पीछे वाले किसी मूवी के बारे में बाते कर रहे थे | यानि अब आसपास वाले जिस बारे में बात कर रहे थे वो आप बता पाएंगे | आपसे पूछा जायेगा कि आप अब कैसे बता पा रहे हैं ? आप कहेंगे, क्यों कि मैं चुप था/ थी इसलिए उनकी बातें सुनाई पड़ रही थीं | इसका मतलब जब आप चुप या शांत हुए तो आपको आसपास की आवाजें सुनाई पड़ने लग गयीं |
अब इस घटना से मेडीटेशन को जोड़ के देखें, जब आपने ध्यान शुरू किया तो आपका जो 10% चेतन मन था वो गुरुदेव के फोटो का ध्यान करते ही तुरंत कुण्डलिनी शक्ति के नियन्त्रण में आया और वो 10% मन तुरंत शांत हो गया, जैसे ही वो चेतन मन शांत हुआ, आपके बैकग्राउंड में अचेतन मन में चल रहे विचार, जो 24 घंटे चलते रहते हैं वो आपको सुनाई पड़ने लगते हैं | वो ही ध्यान में दिखने लगे |
तो अब आपका प्रश्न बिलकुल सिम्पल हो गया, आपको तो लग रहा है कि मेरा ध्यान नहीं लग रहा, जबकि हो क्या रहा है, ध्यान आपका लग रहा है पर वो 10% चेतन मन गुरुदेव की शक्ति के द्वारा तुरंत नियन्त्रण में ले लिया गया | बाकी 90% अचेतन मन में चलते हुए (अनियंत्रित) विचार सामने आ गए | तो सब एकदम सरल हो गया | ध्यान आपका लग रहा है पर आपको लग रहा है कि आपका ध्यान नहीं लग रहा | ये इस बात का प्रमुख उत्तर है कि आप इस बात की चिंता ना करें कि आपका ध्यान नहीं लग रहा है, ये शक्ति है वो अपने नियन्त्रण में लेती है |
अब प्रश्न ये भी आता है कि ध्यान लगता है पर विचार आते हैं | एक पक्ष कहता है कि उन विचारों को शांत करना है | जैसे आप एक पानी के गिलास में मिट्टी डालिए, उसे चम्मच से हिलाइए | पानी हिलाते ही मिट्टी हिल रही है, थोड़ी देर बाद आप देखेंगे कि मिट्टी शांत होकर पेंदे में सेटल हो जाती है | अब गिलास का पानी साफ दिखने लगा, तो क्या मिट्टी उस गिलास से बाहर निकल गयी? मिट्टी तो अभी भी उसी गिलास में ही है | लेकिन पानी फिर भी साफ़ हो गया |
तो ये गुरु सियाग का ध्यान अभी प्रारम्भिक अवस्था में आपको एकदम विचार शुन्यता की अवस्था में नहीं लायेगा | विचार शुन्यता समाधि की स्तिथि में होगी | लेकिन फिलहाल अपन चाहते हैं कि अपना मन शांत होना चाहिए | ये ध्यान अपने मन को शांत करने का तरीका है | विचार अचेतन मन में ही पड़े रहेंगे पर मन शांत रहेगा | जैसे मिट्टी गिलास में ही है बाहर नहीं गयी पर पानी का गिलास साफ दिख रहा है | इस प्रकार मन शांत ही जायेगा जो अपनी ध्यान आरम्भ करने की सबसे बड़ी उपलब्धी है | कि अपन सबसे पहले शांति तो पायें | शांति पाएंगे तो दूसरी चीजें भी पाएंगे | उस पानी को निथार भी पाएंगे और पूरा गिलास मिट्टी रहित भी बना पाएंगे | लेकिन पहले शांत तो हों | इसलिए आप ये चिंता छोड़ दीजिये कि आपका ध्यान लग रहा है या नहीं | आप तो बस दो बार सुबह शाम नियमित ध्यान कीजिये |