गुरु सियाग योग

कुण्डलिनी शक्ति रीढ़ की हड्डी के आखिरी हिस्से में (जिसे अंग्रेजी में सेक्रम कहते हैं) होती है और सुषुप्ति में रहती है । गुरु द्वारा दिए गए मन्त्र का मानसिक जाप करने और ध्यान करने से वो जागृत हो जाती है। अब वो ऊपर बढे कैसे ? कुण्डलिनी विज्ञान भौतिक विज्ञान से भी परिष्कृत विज्ञान है | भौतिक साइंस तो अधूरी है ये पूर्ण साइंस है | जिस तरह से एक रोकेट ऊपर जाता है तो उसके नीचे स्पार्क होता है, झटका लगता है तो ऊपर खिसकता है | उसी प्रकार कुण्डलिनी को भी ऊपर खिसकाया जाता है |

योग में 5 प्रकार के वायु बताये गए हैं मोटे तौर से – प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान | हरेक वायु का शरीर के अलग अलग हिस्सों में काम होता है | अपान वायु नाभि से नीचे के discharges को शरीर से बाहर फेंकती है, गंदगी को बाहर फेंकती है | जब तक अपान वायु ऊपर नहीं उठेगी, कुण्डलिनी नहीं उठेगी। क्योंकि कुण्डलिनी तो रीढ़ की हड्डी के आखिरी हिस्से में है |

तो हमारे योग में 3 प्रकार के बंध लगते हैं | उसका संचालन कुण्डलिनी स्वयं करती है | वह चेतन सत्ता ध्यान की अवस्था में मनुष्य के शरीर, मन, प्राण, बुद्धि को अपने अधीन कर लेती है और सारी योगिक क्रियाएँ स्वयं करवाती है | साधक उसको चाह कर भी रोक नहीं सकता और न स्वयं कर सकता है | वो तो आँख बंद किये गुरु को आज्ञा चक्र पर देख रहा है दृष्टा भाव से। ये पातंजलि योग में वर्णित योग है |

भारतीय योग दर्शन त्रिविधि ताप शांत करने की बात करता है | आदि दैहिक, आदि भौतिक, आदि दैविक | अंग्रेजी भाषा में फिजीकल डिजीज, मेंटल डिजीज, और स्प्रिचुअल डिजीज, इससे बाहर कोई बीमारी नही होती | तो कोई भी रोग ऐसा नहीं है जिसे भारतीय योग दर्शन में cure करने की शक्ति नहीं है | आज जो योग करवाया जा रहा है वो तो शारीरिक कसरत है | आज जो योग करवाया जा रहा है उससे तो जो ओर्थोपेडिक और फिजियोथैरेपिस्ट बताते है वो ज्यादा करेक्ट हैं इन योग सिखाने वालों से, वो योग नही है |

योग का संचालन कुण्डलिनी करेगी | कुण्डलिनी उन्ही अंगों का मूवमेंट करेगी जो आपके पूर्ण रूप से काम नहीं कर रहे | उन्ही अंगों का योग करवाएगी जो अंग बीमार है, प्रोपरली काम नहीं कर रहे | इसलिए हरेक साधक को अलग अलग योग होता है | किसी को कोई गड़बड़ है किसी को कोई (और) गड़बड़ है | तो उस सिस्टम को फिजीकल बीमारियों को ठीक करने के लिए कुण्डलिनी योग करवाती है |

और जब तक वो सिस्टम बिलकुल स्वस्थ नहीं हो जाता तब तक वो ऊपर नहीं बढती | तो इस प्रकार आप ध्यान करोगे, ध्यान की स्थिति में योग होगा | चलते फिरते नहीं होगा | आपकी इच्छा के विपरीत कुछ काम नहीं | घबराने की जरूरत नहीं | हाँ योग जब होता है देखने वाला घबरा जाता है, पता नही इसको क्या तकलीफ होती होगी | मगर जिसको होता है उससे पूछिए उसको कैसा आनंद आता है | असली जीवन तो यहीं से शुरू होता है | तो इस प्रकार आप दो बार ध्यान कीजिये और निरंतर संजीवनी मंत्र का मानसिक जाप करते रहिये।

ध्यान के दौरान पहला बंध मूलाधार में लग जायेगा | अब अपान वायु नीचे नहीं जा सकेगा तो ऊपर उठाना शुरू हो जायेगा | खासतौर से रीढ़ की हड्डी की कसरत करवाई जा रही है कुण्डलिनी शक्ति द्वारा | क्योंकि सुषुम्ना नाड़ी में से, उसके अंदर से कुण्डलिनी को ऊपर चढ़ना होता है। और सहस्रार से सुषुम्ना जुड़ी हुई है | एक रोम भी ऐसा नहीं, जो जुड़ा हुआ नहीं हो सुषुम्ना से | एक रोम को आप खींचो आपको दर्द होगा | दर्द सहस्रार में होता है, और कहीं नहीं होता है | डाक्टर रीढ़ की हड्डी में इंजेक्शन लगा देते हैं नीचे का पोर्शन काट दो दर्द नहीं होता | क्योंकि यहाँ से डिसकनेक्ट हो गया, तो इस प्रकार रीढ़ की हड्डी को उसी एंगल से मोड़ा जायेगा, जिस सिस्टम को उस एंगल से ठीक होना है | डायबिटीज़ वालों का अलग योग होता है | अस्थमा वाले को अलग होता है, गठिया वाले को अलग होता है | और जब तक वो अंग बिलकुल स्वस्थ नहीं हो जाता, योग होता रहता है | तो इस प्रकार पहला बंध लग जायेगा मूलाधार में | खासतौर से रीढ़ की हड्डी कि एक्सरसाइज होगी | मगर सारा शरीर भी मूवमेंट करेगा साथ साथ | क्योंकि इंटरलिंक्ड है पूरा सिस्टम |

जैसे ही नाभि से ऊपर गयी कुण्डलिनी, दूसरा बंध लग जायेगा | उसे उड़ियान बंध कहते हैं। आटोमेटिक लगेगा आप चाह कर वो बंध लगा ही नहीं सकते | आप चाहे कितने भी मोटे हो, नाभि से रीढ़ की हड्डी चिपक जायेगी,

उसके बाद में उठती उठती कुण्डलिनी जब यहाँ से ऊपर उठ जायेगी, कंठकूप कहते हैं इसको, तो तीसरा बंध लग जायेगा, इसे कहते हैं जालन्धर बंध | अब इसके बाद में, यहाँ से ऊपर के पोर्शन की ऊपर के हिस्से की रीढ़ की हड्डी की कसरत सम्भव नहीं है | तब फिर प्राणायाम शुरू होता है | वो भी स्वतः ही | प्राणायाम भी सैकड़ों प्रकार के होते हैं | योग की पुस्तकों में तो बहुत थोड़े से वर्णित हैं| आसन भी बहुत थोड़े से बताये गए हैं पुस्तकों में । सैकड़ों प्रकार के अलग अलग आसन होते हैं |

 

अलग अलग अंग विशेष की बीमारी को ठीक करने के लिए, तो फिर जब प्राणायाम शुरू हो जाता है तो पूर्ण कुम्भक हो गया | कुण्डलिनी एक झटके से आज्ञाचक्र से ऊपर चली जाती है | फिर साधक समाधिस्त हो जाता है | तो ये योग होना जरूरी नहीं सबको | अगर शारीरिक दृष्टि से आप फिट हो, कोई बीमारी नहीं है तो योग नहीं होगा |

अगर कोई थोड़ी सी भी गडबड है, उसको ठीक करने के लिए योग होगा | तो इस प्रकार जो योग होता है उससे मनुष्य के सारे रोग ठीक हो रहे हैं | व्यवहारिक रूप से हो रहे हैं |

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